Lockdown 2.0 : विश्व के सबसे लंबे लॉकडाउन का भारत के 30 करोड़ मजदूरों पर क्या असर पड़ेगा ?


35 वर्षीय तारावती दक्षिणी दिल्ली के श्रीनिवासपुरी में अपने पति और 7 बच्चों के साथ रहती है. पति जूता पॉलिश का काम करते हैं और बच्चे कचरा बीनते है। लॉकडाउन के बाद से बच्चे पुलिस की लाठी के डर से कचरा बीनने नहीं जाते हैं और पति जूता पॉलिश कि दूकान सड़क किनारे नहीं लगा पाता है. परिवार के किसी भी सदस्य ने एक पैसा तक नहीं कमाया और अब परिवार में खाने की किल्लत हो रही है।



संदीप राणा 

35 वर्षीय तारावती दक्षिणी दिल्ली के श्रीनिवासपुरी में अपने पति और 7 बच्चों के साथ रहती है. पति जूता पॉलिश का काम करते हैं और बच्चे कचरा बीनते है। लॉकडाउन के बाद से बच्चे पुलिस की लाठी के डर से कचरा बीनने नहीं जाते हैं और पति जूता पॉलिश कि दूकान सड़क किनारे नहीं लगा पाता है. परिवार के किसी भी सदस्य ने एक पैसा तक नहीं कमाया और अब परिवार में खाने की किल्लत हो रही है। वह कहती है कि  वायरस के बिना संपर्क में आए उसका परिवार खत्म होने को आया है।
भारत समेत विश्व के अन्य विकासशील और गरीब देशों में तारावती जैसे लोगों कि संख्या लाखों नहीं, करोड़ों में है। जो इस लॉक डाउन के ख़त्म होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही हैं लेकिन मंगलवार की सुबह उनके लिए बुरी खबर लेकर आई है। PM मोदी ने देशभर में लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा की है जिसका मतलब तारावती समेत भारत के करोड़ों असंगठित क्षेत्र के लोगों को रोज की दिहाड़ी मजदूरी के लिए 19 दिन का इंतज़ार और करना होगा।
लेकिन जिस तरह से पश्चिम के कई देशों में लॉकडाउन होने के कारण ऑर्डर रद्द होने या स्थगित होने से बांग्लादेश में वस्त्र निर्माण में लगे 10 लाख कामगारों की छुट्टी हो चुकी है या बिना वेतन के उन्हें घर भेज देने के उदाहारण सामने आए, उन स्थितियों से निपटने के लिए सरकार को गरीब, मजदूर तबकों के लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं करनी चाहिए थी ?      

एक गैर सरकारी संगठन (NGO) जन साहन द्वारा कराए हालिया सर्वे के मुताबिक देश में पिछले तीन हफ्तों में करीब 90 फीसदी मजदूर अपनी आय के साधन खो चुके हैं। देशभर में निर्माण क्षेत्र से जुड़े 3196 श्रमिकों पर कराए सर्वे से पता चला है कि 94 फीसदी मजदूरों के पास सरकार के मुआवजे का लाभ उठाने के लिए जरूरी भवन और निर्माण श्रमिक पहचान पत्र नहीं है। सर्वे के मुताबिक ऐसे 5.1 करोड़ मजदूर हो सकते हैं जो मुआवजे के लिए अयोग्य रह हो सकते हैं। सर्वे कहता है, ‘आंकड़ों के मुताबिक देश में 5.5 करोड़ मजदूर निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हुए निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों को मुआवजा देने की घोषणा जरूर की है लेकिन इसके बावजूद 5.1 करोड़ मजूदरों को सरकारी सहायता का लाभ नहीं मिल पाएगा।’

कई मजदूर तो ऐसे भी हैं जिनका अब तक बैंक में खाता ही नहीं खुला है। सर्वे में शामिल 17 फीसदी मजदूरों के बैंक खाते नहीं है। ऐसे में इनके लिए सरकार से आर्थिक लाभ मिलने में मुश्किल हो सकता है। ज्यादातर मजदूरों को सरकार द्वारा किसी राहत पैकेज की घोषणा के बारे में जानकारी ही नहीं होती। उन्हें ये भी नहीं पता होता है कि सरकारी आर्थिक राहत को कैसे लिया जाए। सर्वे के मुताबिक 62 फीसदी श्रमिकों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि सरकार के आपातकालीन राहत उपायों तक कैसे पहुंचा जाए, जबकि 37 फीसदी ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सरकार की मौजूदा योजनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए।

इसके अलावा 42 फीसदी मजदूरों ने बताया कि उनके पास दिनभर का राशन भी नहीं बचा है और 33 फीसदी मजदूरों ने कहा कि उनके पास राशन खरीदने के लिए पैसे नहीं है। 14 फीसदी ने कहा कि उनके पास राशन कार्ड नहीं है। 12 फीसदी ने कहा कि वो राशन नहीं ले सकते क्योंकि मौजूदा स्थिति में वहां मौजूद नहीं थे।

ये हालात तो देश के कुछ हाजार श्रमिकों के हैं, अगर देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े करोड़ों मजदूरों के जीवन में झांकने की कोशिश की जाए तो तस्वीर और भी भयावह साबित होगी।

संयुक्त राष्ट्र भी दे चुका है चेतावनी 

संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘आईएलओ निगरानी- दूसरा संस्करण : कोविड-19 और वैश्विक कामकाज’ में कोरोना वायरस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट बताया है। आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने मंगलवार को कहा, ‘‘विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं में श्रमिकों और व्यवसायों को तबाही का सामना करना पड़ रहा है। हमें तेजी से, निर्णायक रूप से और एक साथ कदम उठाने होंगे.”

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने गरीबी में फंसने का संकट है.” इसके मुताबिक भारत में लागू किए गए देशव्यापी बंद से ये श्रमिक बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उन्हें अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर होना पड़ा है। अब लॉक डाउन और आगे बढ़ने पर यदि केंद्र सरकार द्वारा इनके हित में कुछ न सोचा जाए तो करोड़ों भारतीय मजदूर भुखमरी से मरने के कगार पर खड़े हो जाएंगे। 

ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के जटिल संकेत 

शुरुआत में बताई तारावती की कहानी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट से सामने आई। गरीबी उन्मूलन की दिशा में काम करने वाली एक अग्रणी संस्था ऑक्सफैम ने बृहस्पतिवार (9 अप्रैल) को चेताया कि विकासशील देशों की मदद के लिए अगर धनी देश त्वरित कदम नहीं उठाऐंगे, तो कोरोना वायरस के कारण करीब 50 करोड़ लोग गरीबी के भंवर में फंस जाएंगे। ऑक्सफैम ने विकासशील देशों की मदद के लिए अमीर देशों से अपने प्रयासों में तेजी लाने का अनुरोध किया है। ऐसा नहीं होने पर गरीबी खत्म करने का अभियान एक दशक पीछे चला जाएगा और अफ्रीका तथा पश्चिम एशिया सहित कुछ इलाके 30 साल तक पीछे जा सकते हैं।

ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अंतरिम कार्यकारी निदेशक जोस मारिया वेरा ने कहा, ”महामारी के कारण तबाह होती अर्थव्यवस्था की आहट दुनियाभर में महसूस की जा रही है।” उन्होंने कहा, ”लेकिन गरीब देशों में गरीब लोग, जो पहले ही भुखमरी का सामना कर रहे हैं, इस भंवर में जाने से खुद को बचा नहीं पाएंगे।” कोरोना वायरस से दुनिया भर में 88,981 की मौत; 193 देशों में मरीजों की तादाद 15 लाख के पार है।

विश्वभर में कोरोना वायरस कैसे बेरोजगारी को बढ़ावा दे रहा है ?  

ऑक्सफैम की 9 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के 53 प्रतिशत यानि कि 14 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में हैं और अब खाली बैठे हैं। महिलाएं अक्सर असंगठित क्षेत्र में ही काम करती हैं और उन्हें भी यही समस्या झेलनी पड़ रही है। अति गरीब देश की 92 फीसदी महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं।
यहां तक कि अमीर देश में भी टैक्सी ड्राइवर, सफाईकर्मी, डिलिवरी करने वाले लोग, वेटर, दुकानों पर काम करने वाले लोग, सिक्योरिटी गार्ड और सड़कों पर ठेला लगाने वाले लोग सहित कई ऐसे रोज कमाने खाने वाले लोगों पर अर्थव्यवस्था खराब होने का असर सबसे पहले हुआ है। उदाहरण के लिए फूल की मांग में कमी आने पर यूरोप में फूलों के व्यापार में लगे  30 हजार मजदूर एकाएक बेरोजगार हो गए। कंबोडिया और म्यांमार में कपड़ों के काम में लगे लोगों का रोजगार छिन गया।
ऑक्सफैम के मुताबिक 1990 के बाद पहली बार गरीबी रेखा के नीचे आने वाले लोगों में इजाफा हो सकता है। कुछ इलाकों में तो यह 30 साल पहले जितना भी हो सकता है। खराब स्थिति में विश्वभर में गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले लोगों की संख्या 43.4 करोड़ से बढ़कर 61.1 करोड़ हो जाएगी और इस बार अर्थव्यवस्था पर संकट 2008 के संकट से कहीं ज्यादा आ जाएगा।

गरीबों की मदद के लिए क्या हैं वो बड़े उपाय

1. डूबते व्यापारों को बचाने की कोशिश बेल आउट के जरिए हो सकती है, लेकिन इसमें भी छोटे व्यापार को प्रमुखता देनी होगी जिससे असंगठित क्षेत्र के लोग जुड़े हों।

2. इसमें गरीबों की सीधे मदद करना यानि गरीबों की पैसों से मदद सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।

3. गरीब देशों में कर माफी या उसकी वसूली में मोहलत देकर यह काम किया जा सकता है।

4. रिपोर्ट सुझाती है कि कम से कम 2.5 ट्रिलियन डॉलर की मदद से इस वैश्विक संकट से लड़ा जा सकता है।

5. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सरकारों को टैक्स में कटौती कर या उसे चुकाने के लिए वक्त देकर भी लोगों की मदद करनी चाहिए।

लॉक डाउन 2.0 के बीच राहत की ख़बरें 

1. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए दुनिया के 25 गरीब देशों को ऋण में बड़ी राहत दी है. कर्ज में मिली इस राहत की वजह से ये सभी देश कोविड19 से लड़ने के लिए अपने पास फंड जमा कर पाएंगे. अब तक दुनिया के 200 से ज्यादा देशों में कोरोना वायरस ने तबाही मचा दी है. कोरोना से मौत के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं. अमेरिका जैसे महाशक्ति माने जाने वाले देश ने भी कोरोना के सामने घुटने टेक दिए हैं. ऐसे में गरीब देशों की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने मदद का हाथ बढ़ाया है.

आईएमएफ ने जिन जिन देशों के कर्ज की माफी की है, उनमें अफ्रीका के लगभग सभी देशों के साथ अफगानिस्तान, यमन, नेपाल और हैती शामिल हैं. वर्ल्ड बैंक के साथ आई एमएफ ने अमीर देशों से 1 मई से लेकर जून 2021 तक गरीब देशों से कर्ज का भुगतान रोकने के लिए भी कहा है.

2. कोरोना के प्रकोप को देखते हुए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को सलाह दी है कि उनके कंस्ट्रक्शन वेलफेयर बोर्ड के सेस फंड में जो रकम जमा है उसे निर्माण मजदूरों में वितरित कर दिया जाए. अगर ऐसा हुआ तो हर मजदूर के खाते में डायरेक्टर बेनिफिट ट्रांसफर के द्वारा पैसा जा सकता है.

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस बारे में एडवाइजरी जारी की है. उन्होंने कहा कि इस फंड से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के द्वारा पैसा निर्माण मजदूरों के खाते में सीधे भेजा जाना चाहिए.



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