नई दिल्ली। किसानों के प्रदर्शन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रविवार को कहा कि देश की आजादी के बाद से पहली बार ऐसी ‘‘अहंकारी’’ सरकार सत्ता में आई है, जिसे अन्नदाताओं की ‘‘पीड़ा’’ दिखाई नहीं दे रही है। साथ ही, उन्होंने नये कृषि कानूनों को बिना शर्त फौरन वापस लेने की मांग की।
कांग्रेस अध्यक्ष ने एक वक्तव्य में कहा, ‘‘लोकतंत्र में जनभावनाओं की उपेक्षा करने वाली सरकारें और उनके नेता लंबे समय तक शासन नहीं कर सकते। अब यह बिल्कुल साफ़ है कि मौजूदा केंद्र सरकार की ‘थकाओ और भगाओ’ की नीति के सामने आंदोलनकारी धरती पुत्र किसान मज़दूर घुटने टेकने वाले नहीं हैं।’’
सोनिया ने कहा, ‘‘अब भी समय है कि (नरेंद्र) मोदी सरकार सत्ता के अहंकार को छोड़कर तत्काल बिना शर्त तीनों काले क़ानून वापस ले और ठंड एवं बारिश में दम तोड़ रहे किसानों का आंदोलन समाप्त कराए। यही राजधर्म है और दिवंगत किसानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि भी।’’
उन्होंने कहा कि (केंद्र की) मोदी सरकार को यह याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र का अर्थ ही जनता एवं किसान-मज़दूरों के हितों की रक्षा करना है।
उन्होंने कहा, ‘‘हाड़ कंपा देने वाली ठंड और बारिश के बावजूद दिल्ली की सीमाओं पर अपनी माँगों के समर्थन में 39 दिनों से संघर्ष कर रहे अन्नदाताओं की हालत देखकर देशवासियों सहित मेरा मन भी बहुत व्यथित है। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘आंदोलन को लेकर सरकार की बेरुख़ी के चलते अब तक 50 से अधिक किसान जान गँवा चुके हैं। कुछ (किसानों) ने तो सरकार की उपेक्षा के चलते आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लिया। पर बेरहम मोदी सरकार का न तो दिल पसीजा और न ही आज तक प्रधानमंत्री या किसी भी मंत्री के मुँह से सांत्वना का एक शब्द निकला। ’’
सोनिया ने कहा, ‘‘मैं सभी दिवंगत किसान भाईयों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ईश्वर से उनके परिजनों को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करती हूँ।’’
I pay my homage to the farmers who have lost their lives & pray God gives their families strength in this time of grief.: Congress President Smt. Sonia Gandhi pic.twitter.com/IaKWGhq1mO
— Congress (@INCIndia) January 3, 2021
इससे पहले, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसान आंदोलन की तुलना अंग्रेजों के शासन में हुए चंपारण आंदोलन से करते हुए रविवार को कहा कि इसमें भाग ले रहा हर किसान एवं श्रमिक सत्याग्रही है, जो अपना अधिकार लेकर ही रहेगा।
गांधी ने ट्वीट कर आरोप लगाया, ‘‘देश एक बार फिर चंपारण जैसी त्रासदी झेलने जा रहा है। तब अंग्रेज ‘कम्पनी बहादुर’ था, अब मोदी-मित्र ‘कम्पनी बहादुर’ हैं।’’
देश एक बार फिर चंपारन जैसी त्रासदी झेलने जा रहा है।
तब अंग्रेज कम्पनी बहादुर था, अब मोदी-मित्र कम्पनी बहादुर हैं।
लेकिन आंदोलन का हर एक किसान-मज़दूर सत्याग्रही है जो अपना अधिकार लेकर ही रहेगा।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 3, 2021
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन आंदोलन में भाग ले रहा हर एक किसान-मजदूर सत्याग्रही है जो अपना अधिकार लेकर ही रहेगा। महात्मा गांधी ने 1917 में चंपारण सत्याग्रह का नेतृत्व किया था और इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक आंदोलन माना जाता है।
किसानों ने ब्रिटिश शासनकाल में नील की खेती करने संबंधी आदेश और इसके लिए कम भुगतान के विरोध में बिहार के चंपारण में यह आंदोलन किया था।
राहुल गांधी ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं दे पाने वाली मोदी सरकार अपने उद्योगपति साथियों को अनाज के गोदाम चलाने के लिए निश्चित मूल्य दे रही है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सरकारी मंडियां या तो बंद हो रही हैं या अनाज खरीदा नहीं जा रहा। किसानों के प्रति बेपरवाही और सूट-बूट के साथियों के प्रति सहानुभूति क्यूँ?’’
उधर, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि टीकरी बॉर्डर पर लगभग शून्य तापमान और बारिश के बीच किसान खुले में विरोध-प्रदर्शन करने को मजबूर हैं लेकिन सरकार उनकी मांगों के संबंध में कोई कदम नहीं उठा रही है।
प्रेसवार्ता के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने सरकार से अपील की कि वे किसानों के प्रति कुछ सहानुभूति दिखाए और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेकर एमएसपी की कानूनी गारंटी प्रदान करे।
कांग्रेस तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रही है। पार्टी का आरोप है कि नए कृषि कानूनों से खेती और किसानों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। कांग्रेस नए कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का समर्थन भी कर रही है।
उल्लेखनीय है कि गत बुधवार को छठे दौर की औपचारिक वार्ता के बाद सरकार और प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के बीच बिजली शुल्कों में बढ़ोतरी एवं पराली जलाने पर जुर्माने के मुद्दों पर सहमति बनी थी, लेकिन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी को लेकर गतिरोध बरकरार है।
हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद एक महीने से अधिक समय से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं।









