कोरोना, दावा और हकीकत


वैश्विक महामारी में काम कर रहे डॉक्टर्स और उनके परिजनों के स्वस्थ और सुरक्षा के बदतर हाल के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री को लिखे गए इस पत्र में उन सरकारी दावों की पोल खोली गई है जिनमें कोरोना को लेकर सब कुछ ठीक-ठाक होने और परिस्थिति के पूरी तरह नियंत्रण में होने की बात कही गई है।



देश की केंद्र से लेकर तमाम राज्यों तक की सरकारों ने कोरोना महामारी से पैदा हुए स्वास्थ्य संकट को हल करने और वक़्त रहते परिस्थिति को नियंत्रित करने के दावे किये हैं। इसमें दो राय नहीं कि इस अभूतपूर्व संकट से निपटने में में हमारी सरकारों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया और इसी वजह से महानगरी मुंबई स्थित एशिया के सबसे बड़े स्लम धारावी में कोरोना को नियंत्रित करने में मदद मिली। इसी तरह तमिलनाडु के चेन्नई शहर को काफी हद तक इस महामारी से मुक्ति मिल सकी, देश की राजधानी तो आज 90 से ज्यादा फीसदी की रिकवरी और सक्रिय मरीजों की संख्या में आने वाली भारी कमी के चलते देश में पहले पायदान पर पहुंचने को तैयार है। 

राज्य सरकारों के साथ ही केंद्र सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय भी विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे वैश्विक संगठनों के सहयोग से देश भर में कोरोना को काबू में करने के हर संभव प्रयास कर रहा है। इन्हीं प्रयासों की वजह से ही कोरोना नियंत्रित होता हुआ दिखाई देता है और कोरोना पर काबू करने की ये जानकारियां भी इन्हीं एजेंसियों के माध्यम से ही जनता तक पहुंच भी रही हैं। आम आदमी, आम तौर पर सरकार की बात पर यकीन करता है इसीलिए उसे कोरोना संबंधी इस जानकारी को लेकर भी सरकार पर भरोसा करना ही पड़ेगा लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब कोई अन्य एजेंसी इन आंकड़ों के विपरीत जानकारी जुटा कर सामने रख देती है। ऐसा ही कुछ कोरोना के मामले में भी हुआ है।

देश की जनता ने सरकार के आंकड़ों पर पूरा भरोसा किया लेकिन तभी किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की खबर आ गई कि भारत में कोरोना के सक्रिय मरीजों की संख्या एक बार फिर तेजी से बढ़ रही है और हर बीस दिन में कोरोना मरीजों की संख्या दोगुनी हो रही है। भारत में  कोरोना मरीजों की संख्या में वृद्धि होना भी बड़ी समस्या नहीं है इससे बड़ी समस्या तो यह है कि इस मामले में हमारी स्थिति पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांगला देश से भी गई-गुज़री है। अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में जहां कोरोना के सक्रिय मरीज 20 दिन में दोगुने हो रहे हैं, वहीं बांग्लादेश में मरीजों के दुगने होने की रफ़्तार 58 दिन और पाकिस्तान में यह रफ़्तार 100 से अधिक दिन है। 

इस वैश्विक रिपोर्ट को भी झूठ का पुलिंदा कह कर नकारा जा सकता था और यह माना जा सकता था कि कोरोना के नाम पर यह भारत को बदनाम करने की कोई अंतर्राष्ट्रीय चाल है लेकिन कोरोना का कडवा सच तब सामने आया जब भारत के डॉक्टर के अखिल भारतीय संगठन, “इंडियन मेडिकल एसोसिएशन” ने प्रधानमंत्री को लिखे एक पत्र के माध्यम से यह जानकारी दी कि भारत में कोरोना इलाज की व्यवस्था कुछ इस तरह की है कि यहां सरकारी अस्पतालों में कोरोना के संक्रमित डॉक्टर्स को ही पर्याप्त मात्रा में बिस्तर और दवाइयां ही उपलब्ध नहीं हैं तो फिर कोरोना के आम मरीज की हालत का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

वैश्विक महामारी में काम कर रहे डॉक्टर्स और उनके परिजनों के स्वस्थ और सुरक्षा के बदतर हाल के सम्बन्ध में प्रधानमंत्री को लिखे गए इस पत्र में उन सरकारी दावों की पोल खोली गई है जिनमें कोरोना को लेकर सब कुछ ठीक-ठाक होने और परिस्थिति के पूरी तरह नियंत्रण में होने की बात कही गई है। गौरतलब है कि यह संस्था देश भरा के करीब साढ़े तीन लाख से अधिक निजी और सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर्स का प्रतिनिधित्व करती है। अपने पत्र के साथ आईएमए ने 7 अगस्त 2020 तक कोविड-19 का शिकार होने वाले डॉक्टर्स के नाम और उनके विवरण भी प्रधान मंत्री को उपलब्ध कराये हैं। संस्था का कहना है कि कोरोना के इलाज से जुड़े डॉक्टर्स हर रोज इसका शिकार हो रहे हैं और ऐसे लगभग 200 डॉक्टर इस महामारे के चलते अपनी जान भी गवां चुके हैं।  

प्रधानमंत्री को उपलब्ध कराई गई डॉक्टर्स की इस सूची में  से 170 डॉक्टरों की उम्र 50 साल से ज्यादा है और 40 प्रतिशत जनरल प्रैक्टिशनर हैं। पत्र में यह भी बताया गया है कि सबसे पहले इन्हीं लोगों को साधारण बुखार से लेकर हर तरह के मरीजों के संपर्क में आना पड़ता है। ऐसे ही डॉक्टर्स जब कोविड का शिकार होकर अस्पतालों की शरण में जाते हैं तो उन्हें न बिस्तर मिल पाता है और न दवा ही मिल पाती है। एसोसिएशन के  इस पत्र में प्रधानमंत्री से यह सुनिश्चित करने की मांग की गई है  कि स्वास्थ्यकर्मियों और उनके परिजनों को संक्रमित होने के बाद समय से और मानक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हों, और साथ ही उन्हें राज्य-प्रायोजित स्वास्थ्य तथा बीमा सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।