हरदोई में बंदी बनाए गए आठ नमाजियों का आज तक नहीं हुआ कोरोना टेस्ट


बीते शुक्रवार को नमाजि़यों की गिरफ्तारी से बेनकाब हुए खौफनाक सच को सरकार से छिपाने का प्रयास किया है सीएमओ डॉ. एसके रावत ने। संकट काल में समस्या का समाधान करने और सभी बंदी नमाजि़यों का अनिवार्य कोरोना टेस्ट कराने के बजाय डॉ. रावत झूठा खंडन पत्र बांटकर सिर्फ अपनी खाल बचाने के लिए खंडन की राजनीति कर रहे हैं।



हरदोई। हरदोई के सीएमओ डॉ. एसके रावत ने दैनिक भास्कर के दिनांक 18 अप्रैल 2020 में छपी खबर का खंडन भेजा है। यह खबर है कातिल-ए-कारगुजारी कानून से बेखौफ होकर नमाज़ अता करते 8 मुसलमान सिर्फ गिरफ्तार, कोरोना जांच नहीं….। हरदोई में नमाजि़यों ने मुख्यमंत्री के लॉकडाउन को बुरी तरह रौंदा। 

बीते शुक्रवार को नमाजि़यों की गिरफ्तारी से बेनकाब हुए खौफनाक सच को सरकार से छिपाने का प्रयास किया है सीएमओ डॉ. एसके रावत ने। संकट काल में समस्या का समाधान करने और सभी बंदी नमाजि़यों का अनिवार्य कोरोना टेस्ट कराने के बजाय डॉ. रावत झूठा खंडन पत्र बांटकर सिर्फ अपनी खाल बचाने के लिए खंडन की राजनीति कर रहे हैं। दरअसल सीएमओ द्वारा प्रधान संपादक के नाम भेजे गए खंडन पत्र में उन्हें ही नहीं मालूम कि वह किस तथ्य और किस खबर का खंडन कर रहे हैं। प्रकाशित खबर में सीएमओ डॉ. रावत से संबंधित सिर्फ इतना मामला है कि उन्होंने बीते 17 अप्रैल को मझिला थाने में सामूहिक नमाज़ पढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किए गए 8 नमाजि़यों का कोरोना टेस्ट कराया है, या नहीं? आज तक का सच यह है कि गिरफ्तार कर जेल में बंद किए गए आठों नमाजि़यों का कोरोना टेस्ट नहीं कराया गया है।

गिरफ्तार किए गए आठों नमाजि़यों का कोरोना टेस्ट न कराने की जिम्मेदारी किसकी है? यदि टेस्ट जरूरी नहीं समझा गया, तो आखिर किस अथॉरिटी ने यह प्रमाणित किया कि गिरफ्तार किए गए लोगों को कोरोना नहीं है। मुख्यमंत्री द्वारा घर में नमाज़ अता करने के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए ये लोग हरदोई जेल में बंद हैं।

इन मुसलमानों का कोरोना टेस्ट ना होने की वजह से यह खौफनाक आशंका हर बंदी को रहेगी कि कहीं इनके आने से वे लोग कोरोना संक्रमित ना हो जाएं। दिन के उजाले की इस गंभीर सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि जेल में बंद ये नमाज़ी कोरोना के संक्रमण से मुक्त हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में खुल्लमखुल्ला लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाने वाले इन बंदी नमाजियों का कोरोना टेस्ट किया जाना बेहद जरूरी है।
सीएमओ डॉ. एसके रावत का शासकीय दायित्व था कि वे कानून की धज्जियां उड़ाकर अराजकता पर उतारू बंदी बनाए गए आठों मुसलमानों का जेल जाने से पहले किसी भी स्थिति में कोरोना टेस्ट कराते। इस संबंध में जब भास्कर के इस प्रतिनिधि ने सीएमओ डॉ. रावत से फोन पर बातचीत की तो उन्होंने साफ कहा था कि मैं सिर्फ वही करूंगा जो प्रशासन मुझसे कहेगा और गोलमोल बात करते रहे। स्पष्ट जवाब न मिलने पर इस संवाददाता ने एसीएमओ डॉ. धीरेंद्र सिंह से भी फोन पर बात की, लेकिन वे भी सीएमओ के कंधे पर सारा कुछ डालते हुए बातचीत को कोरोना की जांच के विषय से बाहर कर सीधे जवाब को टाल गए। प्रश्न आज भी वही है और उत्तर जिला प्रशासन और राज्य सरकार के सामने हैं कि गिरफ्तार 8 नमाजियों की कोरोना जांच आज तक नहीं हुई है।

सीएमओ डॉ. एसके रावत ने समाचार प्रकाशित होने के बाद 18 अप्रैल की दोपहर प्रधान संपादक से नोएडा में बात की। इस बातचीत में कोरोना की जांच पर कोई बात नहीं की और सिर्फ अपनी पीठ को ठोकने वाली स्वयं की शाबाशी वाली कहानी गढ़ी। इस वार्ता में प्रधान संपादक ने एक ही सलाह दी कि सरकार के निर्देशों का पालन कीजिए और हम लोग आपकी मदद के लिए हमेशा तैयार हैं।

सारे तथ्यों पर गौर करने से साफ जाहिर है कि सीएमओ डॉ. रावत इस भीषण संकट काल में भी सरकारी तंत्र में झूठ बोलने के चैंपियन बने हुए हैं। बेहद सख्ती के माहौल में अपनी नौकरी बचाने की मंशा से सीएमओ डॉ. रावत ने खंडन की राजनीति करने का सिर्फ एक पैंतरा भर चला है। अपनी वाहवाही की चाहत में सीएमओ साहब यह भी भूल गए कि वे आखिर खंडन किस खबर का कर रहे हैं और उसका स्पष्टीकरण क्या है। गिरफ्तार मुसलमानों की कोरोना जांच क्यों नहीं हुई? 

सीएमओ का मसला सिर्फ कोरोना की मेडिकल जांच तक ही सीमित है। मगर बेहद हास्यास्पद तथ्य यह है कि सीएमओ ने अपने खंडन में कोरोना की जांच के बारे में कोई बात ही नहीं की। इतना ही नहीं सीएमओ के झूठ और तथ्यों को छिपाने की असली शातिराना कहानी वहां से शुरू होती है जब खंडन पत्र में सीएमओ ने इस संवाददाता और प्रधान संपादक से हुई अपनी बातचीत का कोई जिक्र ही नहीं किया। सरकारी तंत्र और समाज को शातिराना हरकत से गुमराह करने की जीती-जागती मिसाल है कि सीएमओ ने अपने बचाव में इस संवाददाता और प्रधान संपादक से हुई अपनी बातचीत को ही छिपा लिया। हो सकता है कि खंडन किसी दबाव में हो, लेकिन शासकीय मान्यताओं, परंपराओं और दायित्वों का चीर-हरण निजी स्वार्थों के लिए, वह भी किसी अधिकारी द्वारा न केवल निंदनीय, बल्कि अक्षम्य अपराध भी है।

 



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