देश के सर्वोच्च विधायी निकाय भारतीय संसद के दो सदनों-लोकसभा और राज्य सभा का संसदीय कार्य व्यवहार में बराबर का और महत्वपूर्ण योगदान है। हमारी संवैधानिक व्यवस्था के तहत संसद के किसी एक सदन की अनुपस्थिति में संसदीय कामकाज की कल्पना नहीं की जा सकती। संसद के दोनों की सदन अलग होते हुए भी एक दूसरे के पूरक हैं। 14 सितम्बर से शुरू होने वाले संसद के विशेष पावस सत्र में संसद के उच्च सदन राज्यसभा की एक ऐसी ही विशेषता के दर्शन होंगे।
संसद का यह सत्र केंद्र में सत्तारूढ़ प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार गठित सरकार के दूसरे साल का पहला सत्र होगा। केंद्र की मौजूदा सरकार का पहला साल इस वर्ष मई में पूरा हुआ था और इससे पहले मार्च के महीने में संपन्न संसद का बजट सत्र दूसरी मोदी सरकार के पहले साल का अंतिम संसद सत्र था। दूसरे साल का यह पहला संसद सत्र इसलिए भी ख़ास है क्योंकि संसद के इसी सत्र के पहले ही दिन राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव भी होना है। राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव राज्यसभा के सांसदों द्वारा ही किया जाता है इसलिए जिस पार्टी या गठबंधन का सदन में बहुमत होता है उसके उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित ही मानी जाती है।
इस लिहाज से देखें तो सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार की जीत इस बार भी सुनिश्चित ही दिखाई देती है लेकिन विपक्ष भी साझा उम्मीदवार खड़ा कर शक्ति परीक्षण के लिए ताल ठोके हुए है। पक्ष और विपक्ष की तैयारियों को देख कर ऐसा लगता है कि बिहार विधान सभा के चुनाव से पहले राज्य की दो प्रमुख पार्टियों- सत्तारूढ़ जनता दल (एकीकृत) और मुख्य विपक्षी दल राष्टीय जनता दल के बीच एक मुकाबला राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव रूप में भी देखने को मिलेगा।
गौरतलब है कि उपसभापति पद के लिए यह चुनाव बिहार से राज्य सभा के जद (एकीकृत) सांसद हरिवंश सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के कारण होना है। हरिवंश का सदस्य के रूप में कार्यकाल विगत 9 सितम्बर को पूरा हो गया था। इसके साथ ही राज्य सभा के उपसभापति का स्थान भी रिक्त हो गया। हरिवंश जद ( एकीकृत) के उम्मीदवार के रूप निर्विरोध चुनाव जीत कर एक बार फिर राज्यसभा के सदस्य बन चुके हैं इसलिए उपसभापति का चुनाव होना है। केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने एक बार फिर हरिवंश सिंह को इस पद के चुनाव में अपना साझा उम्मीदवार बनाया है और विपक्ष ने भी बिहार के ही मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज कुमार झा को उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया है।
राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव में राजग बनाम संप्रग के उम्मीदवार दरअसल जद (एकीकृत) के हरिवंश सिंह बनाम राजद के मनोज झा उम्मीदवारों के रूप में आमने-सामने होंगे। कह सकते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच राजनीतिक लड़ाई का एक ट्रेलर 14 सितंबर को संसद में देखा जा सकता है। यही वो दिन है जिस दिन संसद का पावस सत्र शुरू होना है और सत्र के पहले ही दिन उपसभापति का चुनाव होगा। राज्यसभा के कामकाज में उपसभापति की भूमिका बहुत निर्णायक इसलिए भी होती है क्योंकि देश के उपराष्ट्रपति जो राज्य सभा के सभापति भी होते हैं अन्य प्रशासनिक कार्यों में भी व्यस्त रहते हैं, ऐसे में राज्यसभा की बैठकों का संचालन ज्यादातर समय उपसभापति को ही करना होता है।
जनता दल यूनाइटेड जेडीयू सांसद हरिवंश इस चुनाव के लिए उम्मीदवारी का पर्चा पहले ही भर चुके हैं। विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रीय जनता दल सांसद मनोज कुमार झा को अपना उम्मीदवार बनाया है। मनोज झा के 11 सितंबर को उपसभापति के लिए नामांकन दाखिल किया। विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर मनोज झा के चुनाव लड़ने की सम्भावना तब परवान चढ़ी थी जब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के सांसद तिरुचि शिवा ने उपसभापति का चुनाव लड़ने से मन कर दिया था, गौरतलब है कि विपक्ष ने पहले तिरुची शिवा को ही उम्मीदवार बनाने की सोची थी, लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था।
मनोज झा पहली बार राज्यसभा पहुंचे हैं, उनको उनकी इमानदार और वाकपटु छवि के लिए जाना जाता है। राज्यसभा के कुल मौजूदा 245 सदस्यों में से 116 सांसद सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के हैं। इसके अलावा बीजू जनता दल (बीजद), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति सहित अन्य दलों से समर्थन मिलने की संभावना है। इस तरह एनडीए के उम्मीदवार को राज्यसभा के कमसे कम 140 सदस्यों का समर्थन मिलने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में एनडीए उम्मीदवार की जीत की संभावना प्रबल है।
चुनाव 14 सितंबर दोपहर तीन बजे तक होगा। इसके लिए 11 सितंबर को 12 बजे तक अपना नामांकन दाखिल करना जरूरी था। साल 2018 में राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए हुए चुनाव में हरिवंश ने कांग्रेस के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को हराया था। भाजपा उनकी जीत के लिए आवश्यक आकंड़े जुटाने को लेकर आश्वस्त है। भाजपा के रणनीतिकारों की कोशिश, उपसभापति के चयन को लेकर आम सहमति बनाने की भी रही है ताकि हरिवंश निर्विरोध जीत सकें। लेकिन विपक्ष ने अपने साझे उम्मीदवार की घोषणा कर मामले को रोचक बनाने की कोशिश जरूर की है।
प्रसंगवश भारत की संसद के उच्च सदन राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव के बारे में जानना भी कम दिलचस्प नहीं होगा। यह चुनाव भारतीय 89 में यह व्यवस्था है कि उपसभापति का पद रिक्त होने पर भारतीय संसद का उच्च सदन अपने एक मौजूदा सदस्य को अपने उपसभापति के रूप में चुन सकता है। यह पद उपसभापति के इस्तीफा देने, पद से हटाए जाने या इस पद पर आसीन राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म होने पर खाली हो जाता है।
राज्यसभा उपसभापति का चुनाव करने की प्रक्रिया बहुत ही सहज और सरल है। कोई भी राज्यसभा सांसद इस संवैधानिक पद के लिए अपने किसी साथी सांसद के नाम का प्रस्ताव आगे बढ़ा सकता है। इस प्रस्ताव पर किसी दूसरे सांसद का समर्थन भी जरूरी है। इसके साथ ही प्रस्ताव को आगे बढ़ाने वाले सदस्य को सांसद द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणा प्रस्तुत करनी होती है जिनका नाम वह प्रस्तावित कर रहा है। इसमें इस बात का उल्लेख रहता है कि निवार्चित होने पर वह उपसभापति के रूप में सेवा करने के लिए तैयार हैं।
प्रत्येक सांसद को केवल एक प्रस्ताव को आगे बढ़ाने या उसके समर्थन की अनुमति है।अगर किसी प्रस्ताव में एक से ज्यादा सांसद का नाम हैं तो इस स्थिति में सदन का बहुमत तय करेगा कि कौन राज्यसभा के उपसभापति के लिए चुना जाएगा। अगर सभी राजनीतिक दलों में किसी एक सांसद के नाम को लेकर आम सहमति बन जाती है, तो इस स्थिति में सांसद को सर्वसम्मति से राज्यसभा का उपसभापति चुन लिया जाएगा।राज्यसभा उपसभापति पद के लिए अबतक कुल 19 बार चुनाव हुए हैं। इनमें से 14 मौकों पर सर्वसम्मति से इस पद के लिए उम्मीदवार को चुन लिया गया, मतलब चुनाव की नौबत ही नहीं आई। 1969 में पहली बार उपसभापति के पद के लिए चुनाव हुआ था।
राज्यसभा उपसभापति को पूरी तरह से राज्यसभा के सांसद ही निवार्चित करते हैं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है। उपसभापति को सभापति/उपराष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में राज्यसभा का संचालन करना होता है। इसके साथ ही तटस्थता के साथ उच्च सदन की कार्यवाही को भी सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।
राज्य सभा के भूतपूर्व उपसभापति
नाम अवधि
श्री एस. वी. कृष्ण मूर्ति राव 31/05/1952 to 02/04/1956,25/04/1956 to 01/03/1962
श्रीमती वायलेट अल्वा 19/04/1962 to 02/04/1966,07/04/1966 to 16/11/1969
श्री भाऊराव देवाजी खोब्रागडे 17/12/1969 to 02/04/1972
श्री गोदे मुराहरी 13/04/1972 to 02/04/1974,26/04/1974 to 20/03/1977
श्री राम निवास मिर्धा 30/03/1977 to 02/04/1980,
श्री श्याम लाल यादव 30/07/1980 to 02/04/1982,28/04/1982 to 29/12/1984
डा. नजमा ए. हेपतुल्ला 25/01/1985 to 20/01/1986
श्री एम.एम. जेकब 26/02/1986 to 22/10/1986
श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल 18/11/1986 to 05/11/1988
डा. नजमा ए. हेपतुल्ला 18/11/1988 to 04/07/1992,10/07/1992 to 04/07/1998,09/07/1998 to 10/06/2004
श्री के. रहमान खान 22/07/2004 to 02/04/2006,12/05/2006 to 02/04/2012
प्रो. पी. जे. कुरियन 21/08/2012 to 01/07/2018
श्री हरिवंश 09/08/2018 to 09/04/2020