भारतीय त्योहारों का बदलता परिदृश्य और ‘विश्वकर्मा पूजा’

बबली कुमारी बबली कुमारी
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भारत को तीर्थों की भूमि माना जाता है उसी प्रकार यह देश पर्वों और तीज-त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। भारत को अकसर त्योहारों का देश कहकर पुकारा जाता रहा है जहाँ नाग से लेकर गाय और तुलसी तक को पूजने की प्रथा और मान्यता है। भारत में विवध धर्म रहते हैं। और हरेक धर्म के कुछ न कुछ पर्व त्यौहार हैं न सिर्फ धर्म बल्कि हमारे देश में क्षेत्र के आधार पर भी पर्व और त्यौहार मनाये जाते हैं। केरल में जहाँ ओणम मनाया जाता है , वहीं असम में बीहू, बिहार में छठ महाराष्ट्र में गणेश पूजा तो बंगाल में दुर्गा पूजा बहुत ही धूम-धाम से मनाई जाती है। हमारे यहाँ जितने राज्य हैं उतनी ही संस्कृति है और सभी राज्यों का अपना एक रंग है और उनके अपने त्योहार हैं ।

हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाले सभी त्योहार धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द, भाईचारा, प्रेम और एकता का संदेश देते हैं अर्थात हम यह कह सकते हैं कि प्रत्येक पर्व किसी न किसी विशेष उद्देश्य के लिए मनाया और हर पर्व का अपना एक महत्व है। हिन्दू धर्म में सैंकड़ों पर्व व त्यौहार मनाएँ जाते हैं। ये उत्सव भौगोलिक और सामाजिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न स्थानों और अलग-अलग मौसम में मनाये जाते हैं। भारत देश आस्थाओं का देश है यहाँ हर एक चीज़ से चाहें वो नदी हो या पेड़-पौधे हो या फसलें सभी चीज़ों से किसी न किसी विशेष वर्ग की आस्था जुड़ी हुई है। भारत ऐसा देश है जहां हर दिन त्योहार के रूप में मनाया जाता है, लेकिन धीरे-धीरे सभी पर्व – त्योहारों के बदलते परिवेश में आज की पीढ़ी इन त्योहारों की महत्ता से अनभिज्ञ होती जा रही है। आंचलिक पर्व – त्यौहार या किसी प्रांत विशेष में मनाये जाने वाले त्योहार धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार पर है । खासकर वे सभी त्यौहार जो सिर्फ और सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करते है । ऐसे कई त्योहारों के तरीके बदल गए ,कई त्यौहार अपना महत्त्व खो बैठे और कई त्यौहार वक्त की मार नहीं झेल पाए। ऐसे भी बहुत त्यौहार है जो बचे हुए तो है लेकिन वक़्त के साथ सिमटते चले जा रहे है।

जहाँ लोहड़ी का त्यौहार पूरे पंजाब की खुशबू लिए आती थी वहीं आज इस त्यौहार का भी स्वरुप बदल गया है अब न ही वो ढोलक की थाप रही और न ही औरतों के तालियों की गूंज अब इन सबकी जगह डीजे ने ले ली है। रक्षाबंधन और भाईदूज के आलावा बिहार में सामा-चकेवा भी भाई-बहिन के प्रेम को दर्शाने वाला एक त्यौहार है। मिथिला का यह पारम्परिक त्यौहार दुर्भाग्यवश देश के कई अन्य त्योहारों और परम्पराओं की तरह ही यह भी समाप्त होने की कगार पर है। ऐसे कई अनगिनत त्यौहार है जो अब लुप्त होने के कगार पर है चाहे वो सरस्वती पूजा हो ,नागपंचमी हो ,तुलसी विवाह हो,तीज हो या मकर संक्रांति और गोवर्धन पूजा जैसे हज़ारों पर्व है जो अब शायद ही अगली पीढ़ी तक पहुंच पाए और पहुंच भी जाएंगी ये सभी त्यौहार तो ये अपने वास्तविक रूप में कितनी रहेंगी यह सबसे बड़ा सवाल है।

इन्हीं सभी विलुप्त होती त्योहारों में से एक आज है जो ‘ विश्कर्मा पूजा ‘ के नाम से जाना जाता है – देश के कई हिस्सों में आज विश्वकर्मा पूजा मनाया जा रहा है। हमारे हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को ही सृष्टि का निर्माणकर्ता या शिल्पकार माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा को ही विश्व का पहला इंजीनियर भी कहा गया है। इसके साथ ही साथ विश्वकर्मा जी को यंत्रों का देवता भी माना गया है। विश्वकर्मा पूजा इस साल 17 सितंबर को मनाई जा रही है। विश्वकर्मा पूजा खासकर देश के पूर्वी प्रदेशों में मनाई जाती है, जैसे वेस्ट बंगाल, ओड़िशा, बिहार, झारखंड। कहा जाता है कि विश्वकर्मा ने ही ब्रह्मा जी की सृष्टि के निर्माण में मदद की थी और पूरे संसार का नक्शा बनाया था। इस दिन लोग सभी प्रकार के यंत्रों की पूजा करते हैं।

 

प्रधानमंत्री मोदी ने भी ‘विश्वकर्मा पूजा ‘ की बधाई देशवासियों को दी। वहीं लोकसभा सांसद और भोजपुरी के सुपरस्टार रवि किशन ने भी ट्वीट कर विश्वकर्मा पूजा की बधाई सभी को दी।