अब राहुल गांधी ने भी अडानी और अंबानी को निशाना बनाया है। पंजाब में केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ राहुल गांधी ने पंजाब में ट्रैक्टर रैली निकाली। राहुल ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि केंद्र सरकार के पूंजीपति मित्र अदानी औऱ अंबानी के लिए किसान विरोधी कृषि कानून बनाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों को खेती से बेदखल करना चाहते है। लेकिन अहम सवाल यह है कि किसानों की खेती बचाने के लिए राहुल के पास वैकल्पिक योजना क्या है ?
फिलहाल पंजाब और हरियाणा के किसान कांग्रेस की विरोध रैलियों को लेकर भी सवाल कर रहे है। क्योंकि एपीएमसी एक्ट में बदलाव की बाद कांग्रेस भी करती रही है। कांट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर कांग्रेस का स्टैंड स्पष्ट नहीं है। राहुल गांधी कहते है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आयी है तो एनडीए सरकार के किसान विरोधी कृषि कानूनों को खत्म करेंगे। पर कैसे ? दरअसल कांग्रेस भी सवालों के घेरे में इसलिए है कि अडानी और अंबानी की घुसपैठ कांग्रेस में भी है।
कांग्रेस शासित राज्यों मे अडानी और अंबानी के प्रभाव में कहीं कमी नहीं आयी है। हरियाणा में और पंजाब में कांग्रेस के राज में भी अडानी और अंबानी से संबंधित औधोगिक समूह लाभ उठाते रहे है। छतीसगढ़ में अडानी का प्रभाव बरकरार है। दरअसल पंजाब के किसानों का तर्क है कि समस्या की जड़ 1990 के दशक का न्यू लिबरल इकनॉमिक पॉलिसी है। इस न्यू लिबलर इकनॉमिक पॉलिसी की जड़ में मनमोहन सिंह थे। आम किसान यह मान रहा है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों को कारपोरेट कंट्रोल कर रही है। इन परिस्थितियों में राहुल गांधी को ठोस आश्वासन देना होगा।
राहुल गांधी के पंजाब में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रमों में आम किसानों की उपस्थिति नहीं थी। रैली में कांग्रेस से जुड़े किसान ही आए। लगभग यही स्थिति अकालियों के धरने और प्रदर्शनों की है। अकाली दल भी खिसकते आधार से चिंतित होकर एनएडी के कृषि कानूनों का विरोध कर रहा है। लेकिन अकाली दल के धऱने प्रदर्शन में आम किसान नहीं आ रहे है। अकाली दल के कार्यक्रमों से अकाली दल से जुड़े किसान ही भाग ले रहे है। एक तरफ जहां कांग्रेस और अकाली दल किसानी के मुद्दे पर राजनीति कर रही है, वहीं किसान अपने आंदोलन को मजबूत कर रहे है।
भाजपा के नेताओं की परेशानी बढ़ गई है। क्योंकि भाजपा के नेताओं के घरों का घेराव भी किसानों ने शुरू कर दिया है। भाजपा नेता बड़े शहरों में प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी जिम्मेवारी निभा रहे है। केंद्र सराकर ने भाजपा नेताओं की जिम्मेवारी लगायी है कि वे किसानों को नए कानून का लाभ बताए। हरदीप सिंह पुरी जैसे लोग पंजाब के किसानों को नए कानूनों का लाभ बता रहे है। वे भी चंडीगढ़ जैसे शहर में प्रेस कांफ्रेंस कर। हरदीप पुरी किसान परिवार से नही है। उन्हें कृषि क्षेत्र की जानकारी न के बराबर है। पुरी खुद नागरिक उड्डयन मंत्रालय में विफल रहे है। एयर इंडिया जैसी कंपनी को सम्हाल नहीं पाए।
पंजाब के किसानों ने केंद्र सरकार की रणनीति विफल कर दी है। किसान आंदोलन को कमजोर करने के लिए केंद्र सरकार ने नियत तिथि से पहले मंडियों में खरीद के आदेश दिए थे। पंजाब और हरियाणा में मंडियों में धान की खरीद शुरू हो गई। केंद्र सरकार को उम्मीद थी कि नियत तिथि से पहले खरीद शुरू करवाने के बाद किसान मंडियों में फसल ले जाने में व्यस्त हो जाएंगे। फिर किसानों को यह भी विश्वास हो जाएगा कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी रखेगी। लेकिन किसानों ने केंद्र सरकार की चाल समझ ली है। उन्होंने खासी समझदारी दिखायी। किसानों के परिवारों ने अपनी जिम्मेवारी बांट ली है। किसान परिवार के कुछ सदस्य मंडियों में जा रहे है। कुछ सदस्य धरने में शामिल हो रहे है।
दरअसल पंजाब के किसान किसी भी कीमत पर आंदोलन को कमजोर नहीं होने देना चाहते है। उधर हरियाणा में हरियाणा सरकार की हालत खराब है। मंत्रियों और विधायकों को भारी विरोध का सामना करना प़ड़ रहा है। भारी पुलिस सुरक्षा में राज्य सरकार के मंत्री दौरे कर रहे है। राज्य सरकार के तर्क से किसान संतुष्ट नहीं है। बड़ौदा विधानसभा मे उपचुनाव भी होना है। राज्य सरकार की परेशानी इसलिए और बढ़ गई है। चुकिं इस बार भाजपा को दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी का भी समर्थन इस उपचुनाव में है,इसलिए दोनों पार्टियों के गठजोड की लोकप्रियता आंकी जाएगी।
भाजपा सरकार के कारपोरेट समर्थक कृषि कानूनों ने कुछ दबे हुए मुद्दों फिर से उठा दिए है। पंजाब और हरियाणा में किसान अपने कार्यक्रमों में फेडरल स्ट्रक्चर की चर्चा कर रहे है। पिछले कुछ सालों से फेडरल स्ट्रक्चर पर चर्चा खत्म हो गई थी। बहस ही नहीं हो रही थी। धीरे-धीरे केंद्र राज्यों के संविधान प्रदत अधिकार क्षेत्रों में अतिक्रमण कर रहा है। केंद्र के अतिक्रमण के कारण राज्यों के पास संसाधनों की कमी हो गई। राज्यों की केंद्र पर निर्भरता काफी ज्यादा बढ़ गई।
जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों के राजस्व को नुकसान पहुंचा है। राज्यों के उपर सामाजिक उतरदायित्व और जन कल्याण के कार्य ज्यादा है। लेकिन टैक्स संबंधी अधिकार काफी कम हो गए है। आखिर राज्य जन कल्याण और सामाजिक उतरदायित्व से संबंधी योजनाओं के लिए पैसे कहां से लाएंगे ? केंद्र सरकार दवारा हाल ही में बनाए गए कृषि कानून भी राज्यों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण माना जा रहा है।
