1 – द हैंडमेडेन (2016)
द हैंडमेडेन एक इरोटिक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है। सैरा वाटर के नावेल फिंगरस्मिथ पर आधारित ये एक पीरियड फिल्म है। इस फिल्म में जो माहौल इसके निर्देशक पार्क चान-वूक ने बनाया है उसकी तुलना अक्सर अल्फ्रेड हिचकॉक की रेबेका से की जाती है। कहानी की सेटिंग सन् १९३० की है जब कोरिया जापान के अधीन था। कहानी एक चोर के बारे में है जो कुछ तिकड़म लगा कर एक खूबसूरत अमीर औरत के यहाँ हैंडमेडेन की नौकरी करने लगता है। फिल्म के बीच मे इस बात का इल्म होता है कि ये दोनों मिले हुए है और अपना उल्लू सीधा करना चाहते है। लेकिन आगे का रास्ता इन दोनों के लिए उतना आसान नहीं है।
2 – ओल्डबॅाय (2003)
ओल्डबॅाय के भी निर्देशक पार्क चान वूक है और ये फिल्म उनकी बदला ट्रिलजी का हिस्सा है। कहानी के मुख्य किरदार में है चोई मिन-सिक जिनको एक दिन अटानक कुछ लोग अगुवा कर लेते है। 15 साल तक उसकी जिंदगी एक कमरे के चारदीवारी के बीच बीतती है। शायद ये पढ़ने के बाद आपको कुछ याद आ गया होगा, जी हाँ विदेशी फिल्मो की कहानियों को उठाने मे माहिर निर्देशक संजय गुप्ता ने इसी फिल्म को हिंदी में जिन्दा के नाम से बनाया था जिसमे संजय दत्त और जॉन अब्राहम मुख्य भूमिका में थे।
3 – पोएट्री (2011)
मिजा एक 60 साल की औरत है जो अपने पोते के साथ एक मामूली फ्लैट में रहती है। जब उसे पता चलता है की उसके अंदर डिमेंशिया के शुरूआती लक्षण आ गये है तब वो पोएट्री क्लासेज लेने की सोचती है। उसकी सिर्फ यही इच्छा है की इसके पहले की वो चीज़ो को पूरी तरह से भूल जाए, वो कम से कम एक कविता जरूर लिख ले। फिल्म का ट्रैजिक मिजाज उसके पोते की हरकतों से आता है।
4 – स्प्रिंग, समर, फॅाल, विंटर…एंड स्प्रिंग (2003)
इस फिल्म को निर्देशित किया है किम की-डक ने जो की कोरियन फिल्मो के जाने माने निर्देशक है। 2018 में इनका नाम मी टू मूवमेंट के दौरान उछला था लेकिन उनके उपर लगे आरोप साबित नही हो पाये थे। इस घटना से वो इतने दुखी हो गये थे कि उसके बाद से उन्होनें अभी तक कोई फिल्म नहीं बनाई। इस फिल्म का हर फ्रेम एक पेंटिंग सरीखा जान पडता है। कहानी एक बच्चे के बारे में है जो मानेस्ट्री मे एक भिक्षु के साथ रहता है। जब वो छोटे जानवरो को परेशान करता है तब भिक्षु उसे सजा देता है। जैसे जैसे मौसम बदलता है बच्चे की अवस्था भी बदलती है और एक मौका ऐसा भी आता है जब वो अपने मेंटर के आयु के करीब पहुंच जाता है।
5 – सीक्रेट सनशाइन (2007)
ये फिल्म धर्म और क्रिश्चियनिटी के मुद्दे का टटोलती है। इस फिल्म की कहानी एक 30 साल की युवती के बारे में हैं जिसके बेटे के अपहरण के बाद उसकी हत्या कर दी जाती है। अपने अंदर के गुस्से और तकलीफ को दबाने के लिए वो धर्म के शरण में जाती है। जब उसे अपने बेटे के हत्यारे से मिलने के मौका मिलता है तब फिल्म में एक जबरदस्त टिव्सट आता है।
6 – स्नोपियर्सर (2013)
पैरासाइट बनाने वाले बोंग जून-हो की ये फिल्म एक साईं फाई फिल्म है जिसमे समाज के अलग वर्गों की बात की गयी है। हिम युग के दौरान एक ट्रेन समाज के अलग अलग तबकों को लेकर जब अपने सफर पर निकलती है तब वो सफर कोई मामूली सफर नहीं रहता है। रिलीज़ के दौरान इस फिल्म को कम लोगो ने ही देखा था लेकिन सात सालो के बाद इस फिल्म की अब एक कल्ट फालोइंग बन चुकी है। इस फिल्म के डिस्ट्रीब्यूशन का जिम्मा हार्वे वाइंस्टीन के पास था लेकिन जब हार्वे ने फिल्म की अवधी को २५ मिनट कम करने बात बोंग जून-हो को बताई तब ये बात निर्देशक को नागवार गुजरी। इसका खामियाजा फिल्म को भुगतना पड़ा जब वाइंस्टीन ने इसकी रिलीज़ लिमिटेड कर दी और बेहद कम प्रिंट्स सिनेमाघरों मे भेजें। इस फिल्म में हॉलीवुड के कुछ बड़े सितारों का जमावड़ा आपको देखने को मिलेगा।
7 – द वे होम (2002)
कम शब्दों में अगर इस फिल्म के बारें में कहे तो ये फिल्म सीधे दिल में उतरती है। फिल्म के दुसरे हॅाफ मे डायलॉग्स ना के बराबर है। कहानी एक किशोर के के बारे में है जिसको उसके नानी के घर भेज दिया जाता रहने के लिए। शादी में कुछ उलझनों के चलते उसके माँ बाप ये फैसला लेते है। आगे चल कर ये फिल्म लड़के और नानी के रिश्ते को परदे पर ले आती है जो दिल को छू लेने वाला है।
8 – व्हिस्परिंग कोर्रिडोर्स (1998)
इस हॉरर फिल्म को कोरियाई सिनेमा में एक क्लासिक का दर्जा मिला है। इसी फिल्म की सफलता के बाद हॉलीवुड ने एशिया के हॉरर फिल्मो की क्षमता को सलाम किया था। इस फिल्म के कुल चार सीक्वल अब तक बन चुके है।
9 – मदर (2009)
बोंग जून-हो इस फिल्म के निर्देशक है और ये एक सस्पेंस थ्रिलर है जिसका दायरा फॉरेंसिक की दुनिया है। फिल्म के केंद्र बिंदु में है एक अधेड़ औरत जो अपने बेटे के ऊपर लगे हत्या के आरोप को हटाने की पुरजोर कोशिश करती है।
10 – मेमोरीज ऑफ़ मर्डर (2003)
ये फिल्म भी बोंग जून-हो के दिमाग से निकली हुई है। मुमकिन है की इस फिल्म को देख कर आपको डेविड फिंचर की फिल्म जोडिएक की याद आ जाये। ये फिल्म एक सत्य घटना पर आधारित है जब एक सीरियल किलर ने १९८६ और १९९१ के बीच सियोल मे १० औरतो की हत्या की थी और फिर भी पुलिस उसको पकड़ने में कामयाब नहीं हो पायी थी।