बिहार विधानसभा चुनाव: पहले चरण में एनडीए क्यों है परेशान?


हालांकि एनडीए चुनाव प्रचार में जंगल राज का डर लोगों को दिखा रहा है। पर 1995 से 2000 के बीच पैदा हुए युवाओं को जंगल राज का मतलब समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि वे सुशासन के राज में अच्छी शिक्षा और रोजगार से वंचित है।



बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 71 सीटों पर तस्वीर कुछ साफ होती नजर आ रही है। एनडीए के नेताओं के चेहरे पर उत्साह कम होता नजर आ रहा है। वहीं महागठबंधन के प्रत्याशियों के चेहरे पर उत्साह साफ नजर आ रहा है। पिछले तीन चार दिनों में स्थिति बदली है। कई जगहों पर एनडीए के प्रत्याशियों का जोरदार विरोध हुआ है। विरोध के कई वीडियों वायरल हुए है। इसमें लोग एनडीए के प्रत्याशियों से रोजगार और विकास को लेकर सवाल पूछ रहे है।

चुनाव नजदीक है, लेकिन एनडीए समर्थक अगड़ी जातियां आक्रामक नहीं है। कई जगहों पर अगड़ी जातियां बंटी नजर आ रही है। कोरोना का साइड अफेक्ट चुनाव में दिख रहा है। लॉकडाउन के कारण लोग परेशान हुए। अब उसकी नाराजगी सामने नजर आ रही है। इसका खामियाजा भाजपा और जद यू प्रत्याशियों को भुगतान पड़ रहा है। कोरोना के कारण बिहार में बेरोजगारी दर खासी बढ़ी। इसका असर चुनाव में दिख रहा रहा है।

हालांकि एनडीए चुनाव प्रचार में जंगल राज का डर लोगों को दिखा रहा है। पर 1995 से 2000 के बीच पैदा हुए युवाओं को जंगल राज का मतलब समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि वे सुशासन के राज में अच्छी शिक्षा और रोजगार से वंचित है। बिहार में एनडीए के राज में भारी विकास के बावजूद एक करोड़ से ज्यादा लोग रोजगार के तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर गए है। एनडीए समर्थक अगड़ी जाति के युवा भी अब देश के बड़े शहरों में चौकीदारी कर रहे है। मजदूरी कर रहे है। फैक्ट्रियों में 10 हजार रुपये के मासिक पर काम कर रहे है।

पहले फेज में राज्य के 16 जिलों में चुनाव होगा। पहले फेज में एनडीए के प्रमुख भागीदार भाजपा की चिंता यह है कि भाजपा को उसके मजबूत गढ़ में भी चुनौती मिल रही है। वहीं नीतीश का अगड़ा-पिछड़ा सामाजिक समीकरण फेल होता नजर आ रहा है। शहरों में विकास को लेकर सरकार से सवाल हो रहा है। शहरों में भाजपा परेशान है। पटना शहर में कोरोना महामारी के दौरान सरकार के बदइंतजामी से परेशआन लोग भाजपा प्रत्याशियों से सवाल पूछ रहे है।

पटना में पिछले साल आयी बाढ़ को अभी तक पटना के लोग नहीं भूल पाए है। बेरोजगारी तो शहर से लेकर गांव तक मुद्दा बना हुआ है। एनडीए के प्रत्याशी जंगलराज के बहाने इन मुद्दों को पीछे ढकेलने की कोशिश कर रहे है। पर फिलहाल सफलता मिलती नजर नहीं आ रही है। भाजपा और नीतीश की रैलियों में लोगों की कम उपस्थिति ने एनडीए की चिंता बढ़ा दी है। उधर जातीय गुणा गणित बिहार के चुनावों में महत्वपूर्ण होता है। एनडीए समर्थक अगड़ी जाति के मतदाताओं में फिलहाल उत्साह नहीं है।

अगड़ी जाति वहीं ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है, जहां उनकी जाति के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे है। वहीं कई दूसरी मजबूत जातियां बैठकों का आय़ोजन कर रही है। दलितों में मजबूत पासवान और पासी समाज की बैठक हो रही है। पिछड़ों में मजबूत यादव और कुर्मी वोटरों को लेकर कोई शंका नहीं है। यादवों का 90 प्रतिशत से ज्यादा वोट राजद को जाएगा। कुर्मी जाति के 90 प्रतिशत से ज्यादा वोट नीतीश लेंगे। मुसलमान वोट की स्थिति इभी स्पष्ट है। पर फिलहाल कोयरी समाज की बैठकें हो रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कोयरी जाति स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों के हिसाब से फैसला लेगी। कोयरी जाति के बड़े नेता उपेंद्र कुशवाहा का अपमान राजद और नीतीश दोनों ने किया है। उधर अगड़ों में मजबूत भूमिहार और राजपूत आदि जातियां स्थानीय स्तर पर अपनी बैठकें कर रही है। यह तय है कि इस बार इन दो मजबूत जातियों का वोट एकमुश्त एनडीए की तरफ नहीं जाएगा। इनका वोट बंटना तय है। इसका नुकसान एनडीए को होगा।

गया जिले के बोधगया विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से जुड़े नेता बताते है कि पिछले तीन चार दिनों में एकाएक भाजपा का ग्राफ नीचे आया है। स्थानीय स्तर पर पासवान समाज की हुई बैठक में राजद को समर्थन देने का फैसला लिया गया है। बोधगया विधानसभा सीट पर भाजपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे है। वैसे तो चिराग पासवान खुले तौर पर जद यू का विरोध कर रहे है। जबकि वे भाजपा का समर्थन कर रहे है।

लेकिन बोधगया में जहां भाजपा का प्रत्याशी है, वहां स्थानीय पासवान समाज भाजपा के खिलाफ है। इसका एक कारण राजद के प्रत्याशी का पासवान जाति से होना है। वैसे आसपास के कई और विधानसभा सीटों पर पासवान समाज का महागठबंधन की तरफ झुकाव नजर रहा है। ये संकेत एनडीए के लिए अच्छे नहीं है। पूरे राज्य में पासवान जाति की आबादी 5 प्रतिशत है। कुछ दूसरी दलित जाति भी राजद के पक्ष में नजर रही है।

गया जिले में पासी समाज के लोगों की भी बैठक हुई है, जिसमें राजद के समर्थन पर सहमति बनती नजर आ रही है। दरअसल जातीए बैठकों में हो रहे फैसले भाजपा के लिए अच्छे संकेत नही है। स्थानीय भाजपा नेताओं के अनुसार एनडीए की उम्मीद सिर्फ नरेंद्र मोदी है। नरेंद्र मोदी चुनाव पलटने की क्षमता रखते है। उनकी आयोजित होने वाली रैलियों से माहौल बदल सकता है।

औरंगाबाद जिले के ओबरा और गोह विधानसभा क्षेत्र में अजीब स्थिति बनी हुई है। ओबरा में चिराग पासवान की पार्टी लोजपा को छोड़ सारे प्रमुख दलों ने यादव जाति का उम्मीदवार उतारा है। इस विधानसभा क्षेत्र की अगड़ी जातियों में एनडीए के प्रति रोष साफ नजर आ रहा है। ओबरा विधानसभा क्षेत्र के मतदाता अनिल कुमार बताते है कि वे एनडीए के समर्थक है। अनिल कुमार के अनुसार अभी तक उनकी जाति एनडीए को वोट देती रही है।

भूमिहार जाति से संबंधित अनिल कुमार के अनुसार दाउद नगर में नीतीश कुमार की रैली थी। नीतीश कुमार को सुनने वे रैली में खुद गए थे। लेकिन रैली में पांच सौ लोगों की भीड़ मुश्किल से जुटी। अनिल कुमार के अनुसार खुद उनके गांव के भूमिहार जाति के लोग लोजपा के बनिया उम्मीदवार को वोट दे रहे है। ओबरा के साथ लगे गोह विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के भूमिहार जाति के सीटिंग विधायक मनोज शर्मा के खिलाफ भूमिहारों ने विद्रोह कर दिया है।

गोह विधानसभा के मतदाता पप्पू शर्मा के अनुसार ज्यादातर भूमिहार पूर्व विधायक रणविजय सिंह के साथ खड़े है। रणविजय सिंह उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से चुनाव ल़ड़ रहे है। पहले वे दो बार विधायक रह चुके है। पप्पू शर्मा के अनुसार पिछली बार मनोज शर्मा ने रणविजय सिंह को चुनाव हराया था। लेकिन चुनाव जीतने के बाद मनोज शर्मा इलाके में नजर नहीं आए। जबकि रणविजय सिहं पांच साल इलाके में सक्रिय रहे। मनोज शर्मा और रणविजय सिंह की आपसी लड़ाई से राजद के यादव उम्मीदवार यहां खुश नजर आ रहे है।

वैसे तो भाजपा चिराग पासवान की बगावत से अभी तक खुश थी। भाजपा को लग रहा था कि चिराग का विद्रोह नीतीश का कद कम कर देगा। इसमें कोई शक नहीं है कि चिराग पासवान नीतीश को नुकसान पहुंचा रहे है। चिराग ने नीतीश कुमार के उम्मीदवारों के खिलाफ अगड़ी जातियों के उम्मीदवार अच्छी संख्या में उतारे है। इससे नीतीश के वोट बैंक में सेंध लग रही है। लेकिन अब चिराग पासवान कई जगहों पर भाजपा को भी नुकसान पहुंचाते नजर आ रहे है।

चिराग के चचेरे भाई प्रिंस पासवान की तेजस्वी से हुई मुलाकात के बाद नए गठबंधन के कयास लगाए जा रहे है। प्रिंस की तेजस्वी से मुलाकात ने पासवान समाज को नया संकेत दिया है। हालांकि लोजपा ने सफाई दी है कि प्रिंस रबड़ी देवी के निवास पर रामविलास पासवान के ब्रहमभोज का आमंत्रण देने गए थे। उधर नीतीश के बगावती तेवर भाजपा के खिलाफ नजर आना लगा है। नीतीश समर्थक समझ गए है कि नीतीश को भाजपा खासा नुकसान पहुंचा चुकी है। वैसे में नीतीश समर्थक अब भाजपा को नुकसान पहुंचाने में लग गए है।