नई दिल्ली। सरकार कोई सी भी हो वह अपने हर बदलाव को सुधार का नाम देती है। लेकिन हरबार बदलाव को सुधार नहीं कहा जा सकता। कुछ बदलाव भविष्य के विनाश का कारण बन जाया करती है। देश ऐसे कई बदलावों का गवाह इससे पहले भी बना है चाहे वह नोटबंदी के नाम पर बदलाव हो या GST के नाम पर हो या फिर अभी का ताजा उदहारण दें तो कोरोना से लड़ने के नाम पर पूरे देश में महज 4 घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन कर दिया गया हो। जिसे 21 दिन की अभूतपूर्व लड़ाई बताई गई। कोरोना तो खत्म नहीं हुआ। लेकिन, हजारों प्रवासी मजदूरों की जिंदगियां देश की सड़कों पर खत्म हो गईं। लाखों नौकरियां चली गई। अर्थव्यवस्था ऐसी धराशायी हुई की अबतक उठ न पाई।
अब क्रांतिकारी इतिहास बनाने के नाम पर देश की रीढ़ माने जाने वाले हमारे किसानों को चुना गया है। तमाम हो-हल्ले के बीच किसानों की नई आर्थिक आजादी की कहानी लिखी जा चुकी है। एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने द्वारा लाए गए सुधारों को नई आजादी और सभी के भलाई के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया है लेकिन, सच कितना है, इसे लेकर सभी के मन में कई सवाल हैं और उन्हीं सवालों के जवाब में हमारे किसान ‘दिल्ली चलो’ नारे के साथ देश के हरकोने से दिल्ली में कूच कर रहे हैं और सरकार जवाब से बचने के लिए बॉर्डर सील से लेकर जवानों को सड़कों पर उतार रही है ताकि खुद बच सके।
आखिर क्या है कृषि विधयक बिल में –
संसद ने किसानों के लिए 3 नए कानून बनाए हैं-
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) एक्ट,
2. 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार एक्ट,
3. 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) एक्ट 2020
इन तीनों ही बिल का किसान विरोध कर रहे हैं और इन तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किसान संगठनों की शिकायत है कि नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा।
किसान और किसान संगठनों को डर है कि कॉरपोरेट्स कृषि क्षेत्र से लाभ प्राप्त करने की कोशिश करेंगे। साथ ही किसान कानून का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि बाजार कीमतें आमतौर पर न्यूनतम समर्थन (एमएसपी) कीमतों से ऊपर या समान नहीं होतीं । सरकार की ओर से हर साल 23 फसलों के लिए MSP घोषित होता है।
किसानों को चिंता है कि बड़े प्लेयर्स और बड़े किसान जमाखोरी का सहारा लेंगे जिससे छोटे किसानों को नुकसान होगा, जैसे कि प्याज की कीमतों में ।एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है जो इन पारंपरिक बाजारों को वैकल्पिक विकल्प के रूप में कमजोर करता है।
कहाँ -कहाँ से किसान होंगे शामिल –
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों पर हरियाणा और पंजाब में किसानों का गुस्सा भड़क उठा है। किसान मोर्चा ने यहां पर राजस्थान के किसानों के अलावा राज्य के नूंह, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी एवं गुरुग्राम जिले के किसानों को पहुंचने का संदेश दिया है। यहां पर सभी जगह के करीब पांच हजार किसानों के एकत्रित होने की संभावना है। इस संबंध में मोर्चा की ओर से सभी जिला पुलिस को अवगत करा दिया है। किसान आंदोलन में आंदोलनकारियों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए गुरुवार को दिल्ली मेट्रो ने अपनी सेवाओं में बदलाव किया है। दिल्ली से नोएडा, गाजियाबाद समेत एनसीआर के सभी शहरों को जोड़ने वाली लाइनों पर बार्डर के दो स्टेशनों के बीच मेट्रो सेवा दोपहर दो बजे तक बंद रहेगी।
आपको बता दें कि हालात देखते हुए सभी बॉर्डर पर भारी फोर्स तैनात है। पुलिस को साफ निर्देश हैं कि किसानों को दिल्ली में घुसने न दिया जाए। फिलहाल किसान करनाल के पास हैं। फरीदाबाद में धारा 144 लागू कर दी गई है। किसान राशन-पानी साथ लेकर आए हैं और उनकी योजना है कि जहां पुलिस उनको रोकेगी, वहीं धरने पर बैठ जाएंगे। पुलिस के अनुमान के अनुसार, पंजाब के लगभग 2,00,000 किसान 26 नवंबर से अपने ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन के तहत दिल्ली रवाना होने के लिए तैयार हैं। किसानों के प्रदर्शन के चलते कई जगहों पर भारी जाम लग सकता है।