COVID-19: खुलेगा लॉकडाउन


देश की यह सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था विगत 25 मार्च से रक दी गई थी। इसको रोकने में किसी व्यक्ति अथवा सरकार का कोई हाथ नहीं था बल्कि चीन से आये कोरोना वायरस के जानलेवा विस्तार को रोकने की गरज से देश की अन्य गतिविधियों के साथ ही रेलवे की रफ़्तार को भी रोकना एक मजबूरी हो गई थी। इसी मजबूरी के चलते रेल का चक्का पिछले 49 दिन से जाम था जिसे आज से धीरे- धीरे खोलने की कोशिश की जा रही है।



आज 12 तारीख है और आज से देश में रेलों की रफ़्तार को एक बार फिर से गति देने की कोशिश की जा रही है। भारतीय रेल देश में आवागमन का सबसे बड़ा और किफायती साधन माना जाता है। जिस तरह देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में लोकल को इस महानगर की लाइफ लाइन कहा जाता है उसी तरह भारतीय रेल देश की लाइफ लाइन कही जा सकती है और है भी। देश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए जितनी लम्बी दूरी का सफ़र रेल से किया जाता है वो आवागमन के किसी भी अन्य साधन से संभव ही नहीं है चाहे वो हवाई जहाज, बस या फिर जलमार्ग ही क्यों न हो। 

इसकी वजह यह है कि तमाम कोशिशों के बावजूद हवाई सफ़र आज भी इतना महंगा है कि आम आदमी सफ़र करना तो दूर सफ़र करने की बात सोच तक नहीं सकता। जल मार्ग से कुछ सीमित स्थानों के बीच की ही दूरी तय की जा सकती है क्योंकि एक तो देश के सभी इलाके जल मार्ग से जुड़े हुए नहीं हैं, दूसरा जो स्थान जुड़े भी हैं तो वहां जल मार्ग से सुगम यातायात की व्यवस्था नहीं है। कहना गलत नहीं होगा कि आजादी के बाद देश में जल मार्गों को व्यवस्थित करने की तरफ किसी भी सरकार का ध्यान नहीं गया क्योंकि किसी की भी प्राथमिकता जलमार्गों को विकसित करने की ही नहीं थी।

सड़क परिवहन यानी बस और कार के माध्यम से दिल्ली- मुंबई, चेन्नई – मुंबई, कोलकाता – दिल्ली, कोलकाता – चेन्नई। कोलकाता- बंगुलुरु जैसे लम्बी दूरी का सफ़र माल ढोने के मामले में तो संभव है लेकिन जरूरत से ज्यादा समय लगने के कारण सड़क परिवहन का इस्तेमाल यात्री परिवहन के रूप में नहीं हो सकता। माल ढ़ोने के लिए भी सड़क मार्ग का इस्तेमाल कम ही होता है और ट्रक के जरिये जो माल ढ़ोया जाता है वो भी केवल उन स्थानों तक ही सीमित है जहां या तो पटरियों की सुविधा उपलब्ध नहीं है या फिर किसी अन्य वजह से उन दूरियों के बीच रेल सेवा उपलब्ध नहीं है। इन सेक्टर्स में भी ट्रक सेवा रेलवे की एक फीडर सेवा ही मानी जाती है। 

लिहाजा यह कहने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए कि रेल हमारी दिनचर्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा है और देश की आर्थिकी में इसका योगदान सबसे अधिक ही है। देश की यह सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था विगत 25 मार्च से रक दी गई थी। इसको रोकने में किसी व्यक्ति अथवा सरकार का कोई हाथ नहीं था बल्कि चीन से आये कोरोना वायरस के जानलेवा विस्तार को रोकने की गरज से देश की अन्य गतिविधियों के साथ ही रेलवे की रफ़्तार को भी रोकना एक मजबूरी हो गई थी। इसी मजबूरी के चलते रेल का चक्का पिछले 49 दिन से जाम था जिसे आज से धीरे- धीरे खोलने की कोशिश की जा रही है। 

रेल परिचालन शुरू होने का मतलब यह भी है कि देश में करीब 50 दिन से बंद सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों का सिलसिला एक बार फिर शुरू होने जा रहा है। मलतब यह कि कोरोना वायरस की वजह से देश में उद्योग, व्यापार और बाजार की बंद गतिविधियों में फिर से हलचल पैदा होगी और एक नई व्यवस्था के तहत देश में कामधाम के सिलसिले की फिर से शुरुआत होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बातचीत के आधार पर भी देश में राज्यों की जरूरतों को देखते हुए कारोबार को शुरू करने पर भी सहमति बनी है। 

प्रधानमंत्री के साथ हुई मुख्य मंत्रियों की बैठक से पहले केन्द्रीय केबिनेट सचिव राजीव गौबा ने भी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ बातचीत के बाद उन बिदुओं पर सहमति हासिल कर ली थी जो राज्यों की जरूरतों के हिसाब से लॉक डाउन की दिशा बदलने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। वैसे तो पूरे देश में लॉकडाउन का यह सिलसिला 25 मार्च से शुरू हुआ था लेकिन इससे दो दिन पहले जब 22 मार्च को प्रधानमंत्री की ही पहल पर एक दिन के जनता कर्फ्यू का एलान किया गया था, देश के ज्यादातर राज्यों में लॉकडाउन का सिलसिला उसी दिन से शुरू हो गया था। इस लिहाज से देखें तो सोमवार 11 मई तक लॉकडाउन की बंदी के 51 दिन पूरे हो चुके हैं।

इतने समय तक देश में सब कुछ बंद रहने की वजह से ओद्योगिक उत्पादन, व्यापार और बाजार की गतिविधियाँ भी पूरी तरह से बंद रहीं और इसका प्रतिकूल असर सर देश की अर्थव्यवस्था पर भी स्वाभाविक रूप से पड़ने लगा है। व्यापार में घाटा होने के साथ ही मांग भी कम हो गई है जिसकी वजह से बेरोजगारी की समस्या भी नए सिरे से खडी हुई है। कोरोना एक समस्या है, उससे हर हाल में निपटना ही है लेकिन साथ ही सच्चाई यह भी है कि कोरोना के सामने हथियार डाल कर अंतहीन समय तक हाथ पर हाथ रख कर खाली हाथ भी नहीं बैठा जा सकता। कभी न कभी कोरोना के साथ जीने की आदत तो डालनी पड़ेगी। 

लगता है कोरोना के साथ लड़ते – लड़ते उसके साथ जीने का समय भी आ गया है। देश की कमोबेश सभी पार्टियों के नेता, सरकार और राज्यों के मुख्य मंत्रियों के साथ ही विषय विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि देश को आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाने की दृष्टि से  हर तरह की आर्थिक गतिविधियों को फिर से  शुरू करने का सही समय आ गया है। इससे यह उम्मीद भी बनती है कि रविवार 17 मई को तीसरे चरण के लॉकडाउन की जो अवधि समाप्त हो रही है वो अब शायद ही आगे बढ़े। यह हो सकता है कि कुछ और शर्तों के साथ इसके अनुपालन पर जोर दिया जाए लेकिन लॉक डाउन नाम शायद न रहे।