प्रवासी, कोरोना वैक्सीन और भविष्य का बाइडेन प्रशासन


अमेरिका ने ही बताया है कि किसी भी मुल्क के विकास में प्रवासियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। वैसे कई भारतीय मूल के अमेरिकियों को अलग-अलग क्षेत्र में नोबल भी मिल चुका है।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
मत-विमत Updated On :

अमेरिका पर कोविड-19 की भीषण मार पड़ी है। दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। आज कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। लेकिन कोविड-19 के भीषण मार के बीच अमेरिका में प्रवासी लोग इस समय चर्चा का विषय बने हुए है। क्योंकि कोरोना वैक्सीन विकसित करने में जहां प्रवासियों की अहम भूमिका है। वहीं जनवरी माह से अमेरिका की कमान संभालने वाला बाइडेन प्रशासन में भी प्रवासियों की अहम भूमिका होगी।

दरअसल डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में लगातार प्रवासियों को मुद्दा बनाया। प्रवासियों के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग किया। प्रवासियों को उन्हें अपने मूल देश में भेजने की वकालत की। क्योंकि ट्रंप नस्ली भावनाओं को खासा सम्मान देते रहे। पिछले 100 सालों में दूसरे मुल्कों से अमेरिका पहुंचे लोगों को डोनाल्ड ट्रंप नापसंद करते रहे।

जब कुछ प्रवासियों ने अमेरिकी कांग्रेस में अपनी जगह बनायी तो ट्रंप का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। कमला हैरिस समेत कई अफ्रीकी और एशियाई मूल के अमेरिकी नेताओं के प्रति ट्रंप का व्यवहार निंदनीय था। उनका व्यवहार अफ्रीकी और एशियाई प्रवासियों के लिए जगजाहिर है।

लेकिन कोविड-19 के दौरान अमेरिका में प्रवासियों का महत्व समझ में पूरी दुनिया को आया। कोरोना से अमेरिका की हालत खराब हुई तो प्रवासियों ने अमेरिका में जोरदार मेहनत की। कोविड-19 की वैक्सीन का पहला लाभ अमेरिका को मिला है। पर कोविड-19 की वैक्सीन विकसित करने में उन्हीं प्रवासियों की अहम भूमिका रही है, जिनसे ट्रंप नफरत करते रहे है। अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर की वैक्सीन अमेरिकी नागरिकों को लगना शुरू हो गया है। इस वैक्सीन के विकास प्रवासी वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही है।

हालांकि ट्रंप की नस्ली भावना को दुनिया ने अमेरिकी चुनावों में देखा। उनके प्रवासी विरोधी नीतियों को अमेरिकी जनता ने जोरदार जवाब दिया। ट्रंप ने नस्ली आधार पर अमेरिका में हिंसा भड़काया। सत्ता में आने के बाद वे प्रवासियों को लगातार निशाने पर लेते रहे। लेकिन उनकी तमाम नीतियों पर जबरजस्त चोट अमेरिकी जनता ने मारी।

अफ्रीकी-एशियाई मूल की कमला हैरिस अमेरिका को उपराष्ट्रपति चुन लिया। अब बात कोविड की करें। जिन दो कंपनियों की कोविड-19 वैक्सीन का इस्तेमाल फिलहाल अमेरिका और ब्रिटेन ने किया है, उसे विकसित करने में प्रवासियों की भूमिका अहम रही है। यही नहीं इन कंपनियों को बनाने में प्रवासियों का अहम भूमिका रही है। अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर दवारा बनायी गई वैक्सीन अमेरिकी आबादी को लगना शुरू हो गया है।

फाइजर अमेरिका को 20 करोड़ वैक्सीन की आपूर्ति जल्द ही करेगा। कोविड-19 की वैक्सीन विकसित करने वाली दूसरी कंपनी माडर्ना भी जल्द ही अमेरिकी लोगों को वैक्सीन उपलब्ध करवाएगी। इस वैक्सीन को भी विकसित करने में प्रवासियों की अहम भूमिका रही है। माडर्ना की वैक्सीन को विकसित करने में भी कनाडा से लेकर लेबनान तक के प्रवासियों की भूमिका है।

अमेरिका में कोविड से निपटने के लिए फाइजर की वैक्सीन लांच हो चुकी है। अब यह जरूर जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आखिर अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर के संस्थापक कौन थे? अमेरिकी फार्मा कंपनी फाइजर के संस्थापक जर्मन मूल के प्रवासी चार्लस फाइजर थे, जिन्होंने 1849 में फाइजर की स्थापना की थी। इस समय फाइजर के चीफ एग्क्यूटिव ऑफिसर अलबर्ट बर्नला ग्रीस मूल के है। फाइजर ने वैक्सीन जर्मन कंपनी बायोएनटेक के साथ मिलकर विकसित किया है।

बॉयोएनटेक जिसने कोविड 19 का वैक्सीन विकसित करने में फाइजर के साथ सहयोग किया है, उसके सह संस्थापक उगुर शाहिन तुर्की मूल के जर्मन है। जबकि उगुर शाहिन की सहयोगी और कंपनी की चीफ मेडिकल ऑफिसर ओजलेम टुरेकी भी तुर्की मूल की जर्मन है। हालांकि ट्रंप प्रवासियों से नफरत करते थे। लेकिन उन्हें यह पता था कि अमेरिका जैसे देश में एक तिहाई वैज्ञानिक प्रवासी ही है। कनाडा जैसे देश में तो शोध के काम में लगे 35 प्रतिशत वैज्ञानिक प्रवासी है। जबकि वहां प्रवासियों की संख्या 20 प्रतिशत है।

डोनाल्ड ट्रंप की नीति नफरत को बढावा दे रही थी। ट्रंप ने अमेरिका में नस्ली भेदभाव को बढाया। गोरे और कालों के बीच नस्ली भेद को और तीखा किया। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए हाल ही में चुने गए जो बाइडेन ने संकेत दिए है कि वे ट्रंप की नस्ली भेदभाव और प्रवासी विरोधी नीतियों को खत्म करेंगे।

जो बाइडेन प्रशासन ट्रंप की गलतियों में सुधार करेगा। बाइडेन प्रशासन में एशियाई मूल के लोगों की भरमार होगी। बाइडेन ने अपनी प्रशासनिक टीम की घोषणा कर दी है। इसमें भारतीय मूल के लोगों को महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है। सबसे पहले जो बाइडेन ने भारतीय मूल से संबंधित कमला हैरिस को उप राष्ट्रपति पद के लिए नामित कर दिया। कमला हैरिस जीत भी गई।

हालांकि बाइडेन और हैरिस का कई मुद्दों पर आपसी मतभेद भी रहा। चुनाव जीतने के बाद जो बाइडेन ने भविष्य के अमरेकी प्रशासन का खाका बता दिया है। बाइडेन प्रशासन में जनवरी से कामकाज सम्हालने वाले महत्वपूर्ण नामों की घोषणा बाइडेन ने कर दी है।

बाइडेन प्रशासन में भारतीय मूल के 25 लोगों को अहम जिम्मेवारी मिलने जा रही है। जिन भारतीय मूल के लोगों को बाइडेन प्रशासन में अहम भूमिका मिलेगी उसमें विवेक मुर्ति, अली जैदी, नीरा टंडन, भारत राममूर्ति, वेदांत पटेल, विनय रेड्डी, गौतम राघवन शामिल है। विवेक मूर्ति को बाइडेन ने कोविड टास्क फोर्स की जिम्मेवारी दी है।

विवेक मूर्ति बराक ओबामा के प्रशासन में सर्जन जनरल थे। नीरा टंडन को बजट प्रशासन विभाग दिया गया है। वहीं भारत राममूर्ति बाइडेन के प्रशासन में नेशनल इकनॉमिक काउंसिल में डिप्टी डायरेक्टर होंगे। बाइडेन ने अपने प्रशासन में भारतीय मूल के अलावा अफ्रीकी और लैटिनों मूल के लोगों को भी अहम भूमिका देने की घोषणा की है। कुल मिलाकर अमेरिका ने ही बताया है कि किसी भी मुल्क के विकास में प्रवासियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। वैसे कई भारतीय मूल के अमेरिकियों को अलग-अलग क्षेत्र में नोबल भी मिल चुका है।