किसान हारे तो जल, जंगल और जमीन पर कारपोरेट का कब्जा हो जायेगा : बल्ली सिंह चीमा


उत्तर भारत के लगभग हर आंदोलन और राजनीतिक जलसे में बल्ली सिंह चीमा की कविता ‘ले मशालें चल पड़े हैं, लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के’ और ‘तय करो किस ओर हो तुम, आदमी की ओर हो, या कि आदमखोर हो तुम’ का सामूहिक गायन होता है। जनकवि बल्ली सिंह चीमा से किसान आंदोलन और किसानों की समस्या पर प्रदीप सिंह ने बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत का मुख्य अंश :


प्रदीप सिंह प्रदीप सिंह
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प्रश्न : दिल्ली और देश में तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन को आप किस रूप में देखते हैं ?

बल्ली सिंह चीमा : वर्तमान समय में दिल्ली और देश में चल रहा किसान आंदोलन महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। अभी तक देश में जितने भी बड़े आंदोलन हुए व्यापकता और प्रभाव में यह आंदोलन सबको पीछे छोड़ दिया है। जेपी आंदोलन, राम मंदिर और अन्ना हजारे के आंदोलन के परिपेक्ष्य में किसान आंदोलन की तासीर को समझा जा सकता है। यह उक्त तीनों से बड़ा आंदोलन है।

पहला, जेपी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरोध में खड़ा हुआ था। जेपी उसका नेतृत्व कर रहे थे और समूचा आंदोलन छात्रों पर आधारित था। आंदोलन में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया गया। इंदिरा गांधी की सरकार बदली लेकिन व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। साहित्यकार जेपी आंदोलन के साथ भी थे। हमारे आदर्श बाबा नागार्जुन भी उस आंदोलन में शामिल हुये थे। नागार्जुन ने बाद में कहा था कि, मैं रंडियों के कोठे पर चला गया था। दरअसल, उस आंदोलन से सरकार तो बदली लेकिन व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ जबकि लोग व्यवस्था बदलने के लिये आंदोलन में शामिल हुये थे।

दूसरा, आप राम मंदिर आंदोलन को देख सकते हैं। राम मंदिर के लिए पूरा गोलबंदी नफरत पर आधारित था। उसमें धर्म का दुरुपयोग किया जा रहा था। इससे भारतीय समाज को कोई फायदा नहीं हुआ। समाज में नफरत फैली और दो समुदायों के बीच दूरी बढ़ी।

तीसरा, भ्रष्टाचार के विरोध में अन्ना हजारे का आंदोलन था। इस आंदोलन के पीछे की ताकतों पर भी सवाल उठते रहे हैं। आरोप लगा कि आंदोलन औऱ अन्ना हजारे को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का समर्थन प्राप्त है। इस आंदोलन से किसी का फायदा नहीं हुआ। अरविंद केजरीवाल तो पार्टी बनाकर सत्ता तक पहुंच गये लेकिन जनता पहले जहां थी वहीं पर आज भी है।

अब देश औऱ दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन की बात करें। ये आंदोलन पूरे देश के लाभ के लिये है अगर तीनों कानून हट गये तो पूरे देश का फायदा होगा।

प्रश्न: इस आंदोलन की आंतरिक संरचना क्या है। आप इसकी सबसे बड़ी खासियत क्या मानते हैं ?

बल्ली सिंह चीमा : किसान आंदोलन के आंतरिक संरचना की बात करें तो इसने किसानों के बीच वर्गभेद को खत्म कर दिया है। इसने बड़े-छोटे किसान का फर्क मिटा दिया है। यहां पर पचास एकड़ वाला किसान भी जमीन पर बैठा है और पांच बीघे वाला भी । मैं यह नहीं कह रहा कि अब बड़े-छोटे किसान का भेद मिट गया है लेकिन दोनों तरह के किसानों के अंदर यह डर बैठ गया है कि उनकी जमीन छिन जायेगी। अगर ये तीनों कानून नहीं हटाया गया।

दूसरा, यह आंदोलन किसी पूंजीपति के सहारे नहीं बल्कि किसानों के सहारे ही चल रहा है। किसान राशन-पानी सबकी व्यवस्था कर रहे हैं। जिसके पास जो है वह स्वेच्छा से दे रहा है। सबको खाना-पीना मुफ्त में मिल रहा है। लोग आ-जा रहे हैं। इतने लोगों के इकट्ठा होने के बावजूद कहीं कोई अप्रिय वारदात अभी तक सुनने में नहीं आयी। यह इस आंदोलन की खासियत हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर भाई-चारा मजबूत हो रहा है। हरियाणा के जो जाट किसान यहां पर आये हैं वे धरनास्थल पर बैठकर हुकका पी रहे हैं जबकि सिख हुक्का को पसंद नहीं करते हैं। यह साझा लड़ाई है।

प्रश्न : सरकार और मौसम दोनों किसानों के प्रतिकूल हैं, तब भी किसान डटे हैं, इसकी प्रेरणा कहां से मिल रही है?

बल्ली सिंह चीमा : किसान तो प्रतिकूल मौसम में काम करने का आदी है। ठंड, बरसात और गर्मी उसके लिये कोई मायने नहीं रखता है। इस ठंड के मौसम में ही किसान गेहूं में पानी लगाता है। बरसात के समय धान की खेती होती है। जब इरादे बहुत बड़े हो तो फिर ये चीजें छोटी हो जाती है। ठंडी-गर्मी नहीं किसानों के सामने उनकी जमीन छिनने का खतरा है। कांट्रैक्ट खेती शुरू होगी तो तीन-चार साल में किसानों की जमीन पूंजीपतियों के हवाले हो जायेगी।

मोदी की समस्या ये है कि देश का किसान उनके तीनों कानून का मतलब समझ गया है। ये कानून अगर लागू हुआ तो सस्ते गल्ले की दुकानें खत्म हो जायेगी। सरकारी मंडियां समाप्त हो जायेंगी। खाद्य पदार्थों की कीमत आसमान पर पहुंच जायेगी। तब गरीबों की जीना दुश्वार हो जायेगा।

प्रश्न: अभी तक किसानों के प्रति सरकार का क्या रवैया रहा। अभी तक के बातचीत से क्या निष्कर्ष निकला?

बल्ली सिंह चीमा : सरकार तीनों कानूनों को रद्द करने से मना कर रही है। सरकार का रूख अड़ियल है। जबकि कारपोरेट मीडिया लिख-बोल रहा है कि किसानों ने अड़ियल रूक अपना रखा है। सही बात तो यह है कि अभी तक सरकार को लगता था कि हम किसानों को थका देंगे। ठंड बढ़ेगी तो किसान अपने घर चले जायेंगे। लेकिन अभी भी वे डटे हुए हैं बल्कि उनकी संख्या बढ़ रही है। जैसे-जैसे लोगों की समझ में आ रहा है कि यह कानून किसानों और कृषि से जुड़े लोगों के भाग्य का फैसला करने जा रहा है औऱ बढ़-चढकर वे शामिल हो रहे हैं। इसमें कोई पीछे हटने वाला नहीं है।

किसान और किसान नेता हर परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। जिन किसान नेताओं के अंदर कमजोरी भी है वो भी डटे हुये हैं कि अगर हम पीछे हटे तो जनता आगे निकल गायेगी और वे पीछे छूट जायेगे। ये आंदोलन ये तय करेगा कि 65 प्रतिशत लोगों का किस्मत क्या होगा। ये आंदोलन अगर किसान हार गये तो जल, जंगल और जमीन कारपोरेट के हाथ में आ जायेगा।

प्रश्न : आपकी नजर में भारतीय कृषि का मुख्य संकट क्या है ?

बल्ली सिंह चीमा : देश के किसानी का मुख्य संकट यह है कि खेती में लागत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। किसानों को उनके उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है जिससे खेती घाटे का सौदा बन गया है। अब आप इसे एक उदाहरण से समझिये। पहले जानवर बांधने के लिए जो सांकल मिलता था उसकी कीमत 10 रुपये थी और दूध भी 10 रुपये लीटर था। अब सांकल 200 रुपये का है और दूध 35 रुपये लीटर। कृषि में जो चीजें उपयोगी होती हैं उनका कीमत भी बढ़ गया है। सिवाय उपज का सही दाम नहीं मिल रहा है।

प्रश्न : आपकी नजर में केमिकल खेती कोई समस्या नहीं है?

बल्ली सिंह चीमा : बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन किसान करे क्या? यदि खेती में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का प्रयोग न करे तो कुछ पैदा ही नहीं होगा। किसान का इसमें क्या दोष है। अब सरकार रासायनिक खेती से हाथ खींच रही है। धीरे-धीरे किसान जैविक खेती की तरफ बढ़ेंगे।

प्रश्न : आप जनकवि हैं और किसान भी। आंदोलन में कवि के रूप में शामिल हुए हैं या किसान के रूप में ?

बल्ली सिंह चीमा : देखिये ! मैं तो हाशिए का कवि हूं। देश के कई आंदोलनों में मैं शामिल रहूं या नहीं मेरी कविता, ‘ले मशालें चल पड़े हैं, लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे, लोग मेरे गांव के’, गायी जाती रही है। मैं खुद किसान हूं और इस आंदोलन में शुरू से ही शामिल हूं मगर पहली बार ऐसा हुआ है कि गांव के लोग वाकई चल पड़े हैं और इस कविता को सार्थक कर दिया है।