विश्व गौरैया दिवस : अब नहीं दिखती आंगन में फुदकने वाली वो नन्ही चिड़िया


घर की महिलाएं खाना बनाने से पहले उस चिड़िया के लिए चावल के दाने आंगन में बिखेर देती थीं। नन्ही चिड़ियों का झुंड आंगन में कलरव करते दिखता था। वो नन्ही सी फुदकने वाली चिड़िया गौरैया है। गौरैया एक ऐसी पक्षी जिसके साथ घर के बचपन की यादें जुड़ी हुई है।


Ritesh Mishra Ritesh Mishra
देश Updated On :

नई दिल्ली। आज भी गांव में बड़े-बुजुर्गों की नींद मोबाइल या घड़ी के अलार्म से नहीं बल्कि चिड़ियों की चीं-चीं से खुलती है। शहर का परिवेश इससे बिल्कुल अलग है। बचपन में हम सभी ने अपने घर के आंगन में एक छोटी नन्ही सी चिड़िया को फुदकते और चहकते हुए जरूर देखा होगा। घर की महिलाएं खाना बनाने से पहले उस चिड़िया के लिए चावल के दाने आंगन में बिखेर देती थीं। नन्ही चिड़ियों का झुंड आंगन में कलरव करते दिखता था। वो नन्ही सी फुदकने वाली चिड़िया गौरैया है।

बचपन में हम सभी आंगन में फुदकने वाली नन्ही गौरैया को देखकर कितने खुश होते थे। उनके लिए आंगन में चावल के दाने बिखेर दिए जाते थे। दाने चुग रही इस चिड़िया को पकड़ने का प्रयास भी विफल हो जाता था। वो चिड़िया फिर आंगन में उतर आती और दाना चुगती। ऐसा लगता था कि वो हमसे खेल रही है। तब उसे किसी तरह का भय नहीं था।

गौरैया एक ऐसी पक्षी जिसके साथ घर के बचपन की यादें जुड़ी हुई है। आज ये गौरैया बहुत कम दिखाई देती है। शहर में तो इसकी संख्या इतनी कम है कि गाहे-बगाहे ही इसकी चंचल आवाज़ कानों में सुनाई दे। आज इस पक्षी संख्या में बेहद कम होती जा रही है, जिसका कारण है जलवायु परिवर्तन और रेडिएशन है। वो खूबसूरत पक्षी जिसने हमारे बचपन को बेहद खूबसूरत बनाया था, वो मानव के महत्वाकांक्षा का शिकार हो गई है।

इनके रहने के लिए कोई जगह शेष बची ही नहीं है। गांव में पेड़ और वन होने के चलते इनकी कुछ प्रजाति बची हुई है लेकिन शहर में इनके लिए कोई और जगह नहीं बची है। शहर के चकाचौंध और बढ़ रहे विकास के दायरे ने इनके घरौंदे को छीन लिया है। अब इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्व गौरैया दिवस पर ट्वीट कर इन्हें संरक्षित करने की अपील की है।

शिवराज सिंह ने ट्वीट किया कि ‘गौरेया के मधुर कलरव से अंतर्मन के साथ आसपास का वातावरण भी अनंत सकारात्मकता से भर जाता है। ईश्वर प्रदत्त इस अनुपम उपहार का अस्तित्व संकट में है, आइये हम सब इसे बचाने का संकल्प लें और प्रकृति के सौंदर्य के साथ धरा के संतुलन को बनाये रखने में योगदान दें।’

विश्व गौरैया दिवस पूरी दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।

मोबाइल टावर से निकलने वाली हानिकारक रेडिएशन को भी गौरैया की कम होती संख्या के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। अध्ययन बताते हैं कि रेडिएशन के दुष्परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं व पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो चली हैं और भारत में अब पक्षियों की 42 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। इसमें गौरैया, तोता, मैना सहित कई प्रजातियां हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि मोबाइल रेडिएशन का सबसे ज्यादा असर गौरैया पर पड़ा है और इनकी संख्या कम होती जा रही है।

साल 2010 में वैज्ञानिक सर्वे के अनुसार पाया गया कि गौरैया की संख्या लगातार घटती चली जा रही है इसलिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस यानी World sparrow day मनाया जाता है। गौरैया संरक्षण के लिए और इनकी घटती जनसंख्या को देखते हुए चिंता जताई गई और इसलिए देश की राजधानी दिल्ली में 2012 और बिहार में 2013 में गौरैया को राजकीय पक्षी का दर्जा दिया गया। तब से बिहार और दिल्ली का राजकीय पक्षी गौरैया बना।

पाठ्य-पुस्तकों में गौरैया को लेकर कई कहानियां भी बच्चों को पढाई जाती है। माना जा रहा है कि गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। इनकी संख्या में लगातार कमी देखी जा रही है, इसलिए इन्हे संरक्षित करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता हो गई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास का प्राणी बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले।



Related