
सिंघु बॉर्डर अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। देश-दुनिया की मीडिया में रोज वहां की खबरें छप रही हैं। विगत सात महीनों से किसान वहां धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की मांग तीन नये कृषि कानूनों को समाप्त करने की है। किसान लामबंद हैं और दिल्ली के सभी सीमाओं पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसान आंदोलन के समय ही एक और नाम तेजी से मीडिया में उभरा, वह नवदीप कौर हैं। नवदीप कौर किसान नहीं मजदूर हैं और मजदूरों के हकों की लड़ाई लड़ते हुए जेल गयीं। नवदीप कौर मजदूरों के हकों की लड़ाई लड़ने के साथ ही किसानों के हक को दिलाने के लिए सिंघु बॉर्डर पर किसानों के साथ भी कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रही थीं। इसी दौरान उन्हें 12 जनवरी, 2021 को सिंघु बॉर्डर से हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 45 दिन जेल में रहने के बाद 26 फरवरी को नवदीप कौर रिहा हुईं। गिरफ्तारी के दौरान उन्हें असीम शारीरिक-मानसिक यातना से गुजरना पड़ा। उनके ऊपर हुए पुलिस अत्याचार की खबर से हर कोई परिचित है। उसे दोबारा यहां बताना जरूरी नहीं है। इस दौरान उन्हें मजदूरों की बेबसी, पुलिस-प्रशासन की असलियत, न्याय व्यवस्था की खामियों और राजनीतिक दलों के जनविरोधी चरित्र को समझने का अवसर मिला।
नवदीप कौर आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। लेकिन पुलिस की नजरों में वह संदिग्ध हैं। ऐसे में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि नवदीप कौर कौन हैं, पुलिस ने उन्हें क्यों गिरफ्तार किया था और उनका अपराध क्या था, क्या किसानों-मजदूरों के हित में आवाज उठाना ही उनका अपराध था, या कोई और कारण है?
नवदीप कौर बमुश्किल 25 वर्ष की नवयुवती हैं। 1996 में पंजाब राज्य के मुक्तसर जिले में एक भूमिहीन दलित सिख परिवार में उनका जन्म हुआ। पिता ड्राइबर हैं, चार बहन, दो भाई समेत आठ लोगों का परिवार पिता की कमाई पर ही निर्भर है। ओपेन स्कूल से दसवीं और बारहवीं करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गयीं और जीटीबी नगर में बड़ी बहन राजबीर कौर के साथ रहने लगी। राजबीर कौर दिल्ली विश्वविद्यालय से पंजाबी विषय में पीएचडी कर रही हैं। दिल्ली आकर आगे की शिक्षा प्राप्त करने की तैयारी के साथ नवदीप कौर “भगत सिंह छात्र एकता मंच” के बैनर तले छात्र राजनीति में भी सक्रिय हुई लेकिन घर की आर्थिक परेशानियों के चलते वह दाखिला नहीं ले सकीं, और आगे पढ़ाई जारी रखना मुश्किल हो गया, लिहाजा छात्र राजनीति की सक्रियता भी समाप्त हो गयी।
अधर में पढ़ाई छूटने के बाद नवदीप कौर के सामने अब जिंदगी का कटु यथार्थ था। लेकिन उनकी आंखों में सम्मानपूर्वक जिंदगी जीने का सपना जिंदा था। जीवन चलाने के लिए अब कुछ करने की हकीकत और जरूरत सामने थी। परिस्थितियों से दो-चार होते हुए नवदीप कौर ने 2019 में एक कॉल सेंटर में काम करना शुरू किया। लेकिन कुछ महीनों बाद अक्टूबर 2020 से वह सिंघु बॉर्डर पर स्थित फेम कंपनी में काम करने लगीं। फेम इटली की मशहूर मल्टीनेशनल कंपनी है जिसमें लाइट्स आदि बनते हैं। इस कंपनी में बाइक, कार और दूसरे वाहनों के हेडलाइट्स भी बनाये जाते हैं।
नवदीप बताती हैं कि फेम कंपनी में उनकों आठ घंटे के 8,500 रुपये मिलते थे। बीमारी या जरूरी कार्यवश अवकाश लेने पर वेतन काट लिया जाता था। लेकिन मजबूरी में अन्य मजदूरों के साथ वह काम करती रहीं। इसी दौरान कंपनी के प्रबंधक को पता चला कि वह “मजदूर अधिकार संगठन” से जुड़ी है। इससे कंपनी प्रबंधन में हाय-तौबा मच गया। कंपनी ने नवदीप से आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि वह मजदूर अधिकार संगठन से कोई जुड़ाव न रखें। इसी बीच नवंबर में किसान आंदोलन शुरू हो गया। वह अपने साथियों के साथ सिंघु बॉर्डर पर किसानों के धरना-प्रदर्शन में सक्रिय भागीदारी करने लगीं। कंपनी प्रबंधन को नवदीप के किसान आंदोलन में सक्रिय होने का पता चला। नवदीप के इस कदम ने आग में घी का काम किया। पहले से ही खुन्नस खाये कंपनी प्रबंधन ने नवदीप को नौकरी से निकाल दिया। इसके पहले कुछ मुद्दों पर नवदीप का कंपनी प्रबंधन से टकराव हो चुका था।
नवदीप कौर कहती हैं कि, “कॉल सेंटर, नेशनल औऱ मल्टीनेशनल कंपनियों में हर जगह मजदूरों का शोषण किया जाता है। श्रमिकों को निर्धारित वेतन न मिलना आज के दौर में आम बात हो गयी है। छुट्टी का वेतन काट लेना और राजनीतिक-सामाजिक कार्यों में भागीदारी की सूचना मिलते ही नौकरी से निकाल दिया जाता है।”
नवदीप आगे कहती हैं कि दिल्ली देश की राजधानी है लेकिन जब यहां श्रम कानूनों के मुताबिक काम नहीं होता है तो देश के सुदूर शहरों में मजदूरों के हित कैसे सुरक्षित होंगे।
किसान आंदोलन में शामिल होने पर नौकरी से निकाले जाने के बाद नवदीप कौर हताश-निराश नहीं हुई। अपनी और श्रमिकों की इस दशा के लिए वह वर्तमान राजनीतिक प्रणाली को दोषी मानते हुए मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक करने और एएएकताबद्ध करने में जुट गयीं। इसी दौरान उन्हें पता चला कि कई फैक्ट्री मालिक लॉकडाउन के दौरान मजदूरों का पांच-छह महीने का वेतन दबा कर बैठे हैं। नवदीप ने फैक्ट्री मालिकों से बात करना शुरू किया लेकिन फैक्ट्री मालिकों को नवदीप का यह कदम नाकाबिले बर्दाश्त लगा। पहले तो वे नवदीप को जब पुलिसिया डर शांत नहीं कर सका तो फैक्ट्री मालिक षडयंत्र कर सबक सिखाने की कोशिश में लग गए।
नवदीप मजदूरों के हकों के दिलाने के रास्ते पर आगे बढ़ चुकी थीं। कई फैक्ट्री मालिकों पर लॉकडाउन के दौरान मजदूरों का बकाया वेतन देने के लिए बातचीत की। लेकिन फैक्ट्री मालिकों को यह बातचीत दबाव लगा। वे किसी सूरत में बकाया वेतन न देने पर अड़े थे। मजदूर अधिकार संगठन श्रमिकों के बकाया वेतन दिलाने के लिए सक्रिय हुआ, कई स्थानों पर पुलिस फैक्ट्री मालिकों के शोषण को जायज ठहराते हुए रक्षा कवच बन कर सामने आयी और मजदूर अधिकार कार्यकर्ताओं को ही गलत ठहराया। पुलिस-प्रशासन फैक्ट्री मालिकों को बचाती रही। इस प्रक्रिया में कई स्थानों पर मजदूर अधिकार कार्यकर्ताओं की पुलिस से झड़प भी हुई। ऐसे ही एक मामले में सिंघु बॉर्डर के नजदीक कुंडली थाने की पुलिस से नवदीप और दूसरे कार्यकर्ताओं की झड़प हुई और पुलिस ने फैक्ट्री मालिकों से दबाव बनाकर पैसा वसूली करने का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया। नवदीप को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस शांत नहीं बैठी वह उसके अन्य साथियों को भी सबक सिखाना चाहती थी।
पुलिस अब शिवकुमार की तलाश में लग गयी। नवदीप और शिवकुमार साथ-साथ मजदूर अधिकार संगठन में काम करते हैं। लिहाजा पुलिस ने 16 जनवरी, 2021 को शिवकुमार को भी गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। शिवकुमार हरियाणा के सोनीपत जिले के देवड़ू गांव के रहने वाले हैं। आईटीआई करने के बाद वह कई कंपनियों में काम किए। इस दौरान उन्हें मजदूरों के बेइंतहा शोषण की तस्वीर देखने को मिली। कुछ दिन काम करने के बाद वह 2018 में मजदूर अधिकार संगठन के माध्यम से मजदूरों के हकों की लड़ाई लड़ने लगे।
शिवकुमार कहते हैं कि सिंघु बॉर्डर के आस-पास 4 हजार फैक्ट्रियां हैं जिसमें लगभग 1,50,000 प्रवासी मजदूर काम करते हैं। प्रवासी मजदूरों में ज्यादातर पूर्वांचल, बिहार और कुछ पंजाब-हरियाणा के हैं। मजदूरों को न तो न्यूनतम मजदूरी दी जाती है और काम के दौरान दुर्घटना होने पर कोई क्षतिपूर्ति भी नहीं दिया जाता है। मजदूरों में एकता औऱ सशक्त संगठन न होने के कारण हर जगह मजदूर शोषण और हिंसा के शिकार होते हैं। मनमाना वेतन और 12-12 घंटे काम के बदले मजदूरों को कुछ खास नहीं मिलता है। दिल्ली और दिल्ली से सटे इलाकों में खुलेआम श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही है।
शिवकुमार कहते हैं कि श्रमिकों के पास जहां कोई संगठन नहीं है वहीं फैक्ट्री मालिकों ने “कुंडली इंडस्ट्री एसोसिएशन” बनाया है। कंपनियों के पास बाउंसर हैं जिसमें पहलवान नुमा गुंडे नियुक्त किये गये हैं। फैक्ट्री मालिकों ने इस गुंडा दल का नाम “क्यूक रिस्पांस टीम” रखा हैं। एक टीम में 15-20 पहलवान होते हैं जिनकों फैक्ट्री मालिक हर महीने मोटी रकम अदा करते हैं, जरूरत पड़ने पर इसी टीम से मजदूरों को पिटवाया जाता है औऱ पुलिस मूकदर्शक बन सब देखती रहती है।
शिवकुमार आगे कहते हैं कि ऐसे मामलों में अधिकांशत: पुलिस फैक्ट्री मालिकों और असामाजिक तत्वों के साथ ही होती है। 28 दिसंबर, 2020 को कुंडली में जब मजदूर अपने हक की मांग कर रहे थे तो पुलिस ने फायरिंग कर मजदूरों को डराकर भगा दिया।
नवदीप कहती हैं कि देश में मजदूर और किसान परेशान और खस्ताहाल हैं। सिंघु बॉर्डर पर वह किसानों के समर्थन में आयी और मजदूरों के मुद्दे को भी उठाती रही। क्योंकि किसान और मजदूर का मुद्दा अलग-अलग नहीं है। वह कहती हैं कि मजदूरों में राजनीतिक चेतना और अधिकारों के प्रति सजग करके ही उनके हक को दिलाया जा सकता हैं।
सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार और हरियाणा के करनाल जेल में 45 दिन बिता कर जमानत पर बाहर आने वाली नवदीप कौर का हौसला अब भी बुलंद है। वह मजदूरों के हकों की लड़ाई को आगे बढ़ाना चाहती हैं। नवदीप कौर मजदूर अधिकार संगठन की सदस्य हैं। उन्हें हरियाणा के सोनीपत में अन्य के साथ मिलकर एक औद्योगिक इकाई का कथित रूप से घेराव करने को लेकर 12 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था।
नवदीप की बड़ी बहन राजवीर बताती हैं कि नवदीप कौर राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं के परिवार से आती हैं। हमारी जाति की स्थिति और हमारे आर्थिक अभाव ने हमें बचपन से सिखाया है कि हमें अपने अधिकारों के लिए कैसे लड़ना है। नवदीप अलग नहीं हैं, वह एक फाइटर हैं।