
नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी में डोगरी एवं हिंदी कवयित्री पदमा सचदेव की स्मृति में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सभा के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अकादेमी की तरफ से पदमा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वह डोगरी भाषा और संस्कृति को केंद्र में लाईं और उसके विकास के लिए उन्होंने आजीवन निःस्वार्थ सेवा की।
प्रख्यात लेखक एवं विद्वान डॉ. कर्ण सिंह ने उन्हें याद करते हुए कहा कि उन्होंने डोगरी भाषा को केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक में पहचान दिलाई। उनका जाना केवल एक साहित्यकार का जाना नहीं बल्कि एक पूरे संस्थान का जाना है।
कहानीकार ममता कालिया ने उन्हें अपनी दबंग और दिलकश दोस्त के रूप में याद करते हुए कहा कि उनकी उपस्थिति किसी भी समारोह में जान डाल देती थी। एक अच्छे लेखिका के साथ-साथ वह अच्छी इंसान भी थीं। उनकी ज़िंदादिली उनकी रचनाओं में भी झलकती है। उनका सबसे बड़ा योगदान लोकजीवन को साहित्य से जोड़ना है। वे हम सबको विरासत में अपनी किताबें और खुशदिली छोड़ गई हैं।
चंद्रकांता ने उन्हें एक उदार और विनम्र व्यक्तित्व की धनी लेखिका के रूप में याद करते हुए कहा कि वह जो ठान लेती थी, अवश्य करती थीं। उनकी रचनाओं में उनका वतन हमेशा रहा।
असमिया लेखिका कार्बी डेका हाजरिका ने कहा कि अपनी भाषा के लिए उनकी लड़ाई हम सबके लिए मार्गदर्शक बनी रहेगी। पंजाबी कवयित्री वनिता ने उनको भारतीय भाषाओं की बड़ी लेखिका के रूप में याद करते हुए कहा कि उनकी उपस्थिति हम सबके बीच एक माँ की तरह थी जो सबको अपनत्व से रोमांचित करती थी।
अंग्रेजी एवं हिंदी लेखक हरीश त्रिवेदी ने कहा कि उन्होंने संस्मरण और साक्षात्कार दोनों विधाओं को मिलाकर एक नई विधा का आविष्कार किया जो बेहद रोचक और आत्मीयता से भरपूर थी। उन्होंने लोकगीत की परंपरा को आधुनिक कविता में ढालकर लोकप्रिय बनाया। वह केवल जम्मू को ही नहीं बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर को प्यार करने वाली थीं। उनका दृष्टिकोण बहुत व्यापक था।
डोगरी कवि ललित मगोत्रा ने अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि उनका जाना डोगरी भाषा-भाषियों को जो घाव दे गया है उसकी पूर्ति असंभव है। पद्मा कभी भी किसी लीक पर नहीं चलीं बल्कि उन्होंने हमेशा खुद और दूसरों के लिए भी नए रास्ते तैयार किए। जबतक डोगरी रहेगी उनकी याद बनी रहेगी। उनका जाना जैसे घर से बुजुर्ग का चले जाना है।
प्रख्यात तेलुगु कवि ए. कृष्णाराव ने उनकी कविताओं के अनुवाद के समय जो अनुभव किए थे, उन्हें साझा करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में गहरी अंदरूनी संवेदनाओं ने काफी प्रभावित किया। डोगरी लेखक मोहन सिंह ने उन्हें डोगरी की पुरजोर आवाज के रूप में याद करते हुए कहा कि उन्होंने डोगरी को अपने क्षेत्र में ही नहीं देश-विदेश में भी मंच प्रदान किया। उन्होंने केवल रिश्ते बनाए ही नहीं बल्कि निभाए भी, उनके बिना डोगरी जैसे अनाथ हो गई है।
गुजराती कवि सितांशु यशश्चंद्र ने उनके शब्दों के सृजन के विलक्षण यत्नों को याद करते हुए कहा कि उनके लेखन पर विश्वास करना ही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
नसीब सिंह मन्हास ने उन्हें डोगरी भाषा के राजदूत के रूप में याद किया। पदमा के भाई ज्ञानेश्वर शर्मा ने उन्हें ऐसी प्रेरणादायक स्त्री के रूप में याद किया जो हमेशा आम लोगों के शोषण के खिलाफ खड़ी रही।
पदमा सचदेव के पति सरदार सुरिन्दर सिंह ने सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त करते हुए कहा कि पद्मा के आने से जो खुशनसीबी उनके जीवन में आई थी, अब वे उसकी कमी महसूस करेंगे।