लखनऊ। राजस्थान के झुंझनू में एक कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक यह दावा कर राजनीतिक गलियारों में चर्चा के केंद्र बन गये हैं कि “मेरे कार्यकाल के दौरान मुझसे कहा गया था कि यदि मैं ‘अंबानी’ और ‘आरएसएस से संबद्ध’ एक व्यक्ति की दो फाइलों को मंजूरी दे दूं तो मुझे रिश्वत के तौर पर 300 करोड़ रुपये मिलेंगे, लेकिन मैंने सौदों को रद्द कर दिया”।
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन का समर्थन करके भी धारा के विपरीत चलने की अपनी पुरानी छवि दोहराई है और यहां तक ऐलान कर दिया कि यदि किसानों का प्रदर्शन जारी रहा तो वह अपने पद से इस्तीफा देकर उनके साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं।
मेरठ कॉलेज से बीएससी और एलएलबी की शिक्षा प्राप्त करने वाले सत्यपाल मलिक को खरी-खरी कहने की आदत है। पढ़ाई के दिनों में छात्रावास में सत्यपाल मलिक के रूम पार्टनर रहे पीजी कॉलेज नानकचंद, मेरठ के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र कुमार पुनिया ने दूरभाष पर ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, “सत्यपाल शुद्ध राजनीतिज्ञ हैं और जो बात उनके दिल में आती है, वह कह देते हैं।” बहुत लंबे समय तक मलिक के साथ रहे पुनिया बताते हैं, “वह (सत्यपाल मलिक) अपने सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं कर सकते और उनमें ईमानदारी कूट-कूट कर भरी है।”
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में 24 जुलाई, 1946 को सत्यपाल मलिक का जन्म हुआ। उनके पिता बुध सिंह किसान थे और सत्यपाल जब दो वर्ष के थे तभी पिता का निधन हो गया। पड़ोस के प्राथमिक विद्यालय से उनकी पढ़ाई शुरू हुई और इसके बाद ढिकौली गांव के इंटर कालेज से माध्यमिक शिक्षा पूरी कर वह मेरठ कॉलेज पहुंचे।
मलिक के मुताबिक जब वह दो साल के थे तो पिता का देहांत हो गया और बाद में वह खुद खेती करके पढ़ने जाते थे। उनकी राजनीतिक रुचि के बारे में पुनिया ने बताया कि डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित सत्यपाल छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और 1968 में मेरठ कॉलेज में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गये।
तेज तर्रार और बिना लाग लपेट अपनी बात कहने वाले सत्यपाल मलिक पर भारतीय क्रांति दल के चौधरी चरण सिंह की नजर पड़ी और उन्होंने सत्यपाल को राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ दिया। वर्ष 1974 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मलिक पहली बार बागपत से विधानसभा सदस्य चुने गये। वह एक बार चरण सिंह की अनुकंपा और दूसरी बार कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य रहे।
उनके करीबियों का कहना है कि अपने सिद्धांतों के लिए कुर्सी छोड़ देना उनकी फितरत रही है। तबके प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा था लेकिन वर्ष 1987 में जब बोफोर्स मामले की गूंज तेज हुई तो उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर वीपी सिंह का दामन थाम लिया। वर्ष 1989 में वह अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र से जनता दल के टिकट पर सांसद चुने गये और 1990 में केंद्र सरकार में पर्यटन एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाए गये।
सत्यपाल मलिक ने एक आयोजन में मंत्री पद की अपनी शपथ की याद करते हुए कहा था, “आदमी की सबसे बड़ी ताकत उसकी ईमानदारी है। जब मुझे मंत्री पद की शपथ दिलाई जा रही थी तो वीपी सिंह मुझे एक तरफ ले गये और कहे कि सत्यपाल संभलकर काम करना क्योंकि बेईमानी करने के बाद प्रधानमंत्रियों से नहीं लड़ा जा सकता और हमें-तुम्हें दोनों को प्रधानमंत्रियों से लड़ना है, लिहाजा पाक-साफ रहना है।”
मलिक ने कहा, “कश्मीर से लौटने के बाद मैंने किसानों के लिए बेधड़क बोल दिया, अगर मैं कश्मीर में कुछ कर लेता तो मेरे घर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और इनकम टैक्स (आयकर विभाग) पहले पहुंच जाता। मैं सीना ठोक कर कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री के पास बहुत सी संस्थाएं हैं, मेरी जांच करा लें, मैं इसी तरह बेधड़क रहूंगा।”
सत्यपाल मलिक वर्ष 1996 में समाजवादी पार्टी में चले गये और मुलायम सिंह यादव ने उन्हें सपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया। सपा के टिकट पर 1996 में वह लोकसभा का चुनाव हार गये। वर्ष 2004 में वह भाजपा में शामिल हुए और उन्होंने चौधरी अजित सिंह के सामने लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन इस बार भी हार गये। बाद में उन्हें अमित शाह की टीम में भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। वर्ष 2017 में मलिक बिहार के राज्यपाल बने और इसके बाद जम्मू-कश्मीर, गोवा का राज्यपाल बनने का भी मौका मिला। उनके पास उड़ीसा के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी रहा। इस समय वह मेघालय के राज्यपाल हैं।
सत्यपाल मलिक का विवाह दिसंबर 1970 में इकबाल मलिक से हुआ और उनके एक पुत्र हैं जो राजनीति से दूर हैं। मलिक को पुस्तकें पढ़ने, संगीत सुनने के साथ ही फोटोग्राफी का भी शौक है। मलिक ने वर्ष 1968 में सोफिया बुल्गारिया में आयोजित वर्ल्ड यूथ फेस्टिवल में भी भाग लिया था।