भारत को 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा निवेश की जरूरत होगी: CEEW-CEF

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नई दिल्ली। भारत को 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य को पाने के लिए कुल 10.1 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। इससे भारत के बिजली, औद्योगिक और परिवहन क्षेत्रों से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में मदद मिलेगी। यह जानकारी आज जारी किए गए सीईईडब्ल्यू-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के एक स्वतंत्र अध्ययन में दी गई है।

अपनी तरह के इस पहले अध्ययन में यह भी अनुमान लगाया गया है कि नेट-जीरो लक्ष्य को पाने के लिए भारत के सामने 3.5 ट्रिलियन डॉलर के महत्वपूर्ण निवेश की कमी आ सकती है। इसलिए इस अंतर को भरने के लिए जरूरी विदेशी पूंजी को जुटाने के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं से रियायती वित्त के रूप में 1.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश सहायता की आवश्यकता होगी।

सीईईडब्ल्यू-सीईएफ की ओर से आज जारी अध्ययन ‘इन्वेस्टमेंट साइजिंग इंडियाज 2070 नेट-जीरो टारगेट’ ने यह भी बताया है कि ज्यादातर निवेश की भारत के बिजली क्षेत्र में बदलाव के लिए जरूरत पड़ेगी। अक्षय ऊर्जा से बिजली उत्पादन बढ़ाने और इससे जुड़े एकीकरण, डिस्ट्रीब्यूशन व ट्रांसमिशन के बुनियादी ढांचे को विस्तार देने के लिए ऐसे कुल 8.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्रों से कार्बन उत्सर्जन घटाने के लिए जरूरी ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता स्थापित करने के लिए 1.5 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरूरत होगी।

सीईईडब्ल्यू की सीईओ डॉ. अरुणभा घोष ने कहा, “कॉप 26 में, भारत ने लघु और दीर्घकालिक अवधि के लिए जलवायु संबंधी साहसिक लक्ष्यों की घोषणा की है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि नेट-जीरो उत्सर्जन के बदलाव को पाने के लिए विकसित देशों से बड़े पैमाने पर निवेश के रूप में सहायता की जरूरत होगी।

विकसित देशों को आगामी वर्षों में जलवायु वित्त उपलब्ध कराने के लिए सख्त लक्ष्य तय करने होंगे। इसके साथ ही घरेलू मोर्चे पर आरबीआई और सेबी जैसे वित्तीय नियामकों की ओर से भारत को हरित अर्थव्यवस्था बनाने के लिए जरूरी वित्तपोषण के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत है। अंत में, आवश्यक निवेश के आकार को देखते हुए कहा जा सकता है कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही संस्थानों से आने वाले निवेश में निजी पूंजी का हिस्सा ज्यादा होना चाहिए, जबकि सार्वजनिक पूंजी को मौजूदा और उभरती हुई ग्रीन टेक्नोलॉजी में निवेश के जोखिम को दूर करने वाले उत्प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिए।”

सीईईडब्ल्यू-सीईएफ का अध्ययन यह भी बताता गया है कि भारत को जिस 1.4 ट्रिलियन डॉलर के सस्ती दर वाले वित्त या पूंजी की आवश्यकता है, वह 2070 तक अगले पांच दशकों में एक समान नहीं होगी। रियायती वितत की औसत वार्षिक आवश्यकता पहले दशक में 8 बिलियन डॉलर से लेकर पांचवें दशक में 42 बिलियन डॉलर तक फैली होगी।

वैभव प्रताप सिंह, प्रोग्राम लीड और अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा, “भारत का 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन पाने का लक्ष्य एक साहसिक प्रतिबद्धता है, जो न केवल वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को घटाने के प्रयासों में मदद करेगी, बल्कि यह भविष्य के कारोबार और नौकरियों की रूपरेखा भी निर्धारित करेगी। घरेलू बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) और स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय ऋण पूंजी बाजार जैसे घरेलू और विदेशी स्रोत अपने लिए बड़े पैमाने पर निवेश जुटाने में सक्षम नहीं होंगे। इसलिए, रियायती शर्तों के साथ विदेशी पूंजी की सुलभता को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।”

यह अध्ययन सीईईडब्ल्यू की 12 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट ‘इंप्लीकेशंस ऑफ ए नेट-जीरो टारगेट फॉर इंडियाज सेक्टोरल एनर्जी ट्रांजिशंस एंड क्लाइमेट पॉलिसी’ पर आधारित है, जिसमें आकलन किया गया है कि भारत को 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य पाने के लिए पांच प्रमुख क्षेत्रों को किस तरह से तैयार करना होगा। उस अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता को 2070 तक 5,630 गीगावाट तक बढ़ाने की जरूरत होगी।

खास तौर पर बिजली उत्पादन के लिए कोयले के इस्तेमाल को 2040 तक शीर्ष स्तर तक पहुंचाने और 2040 से लेकर 2060 के बीच 99 प्रतिशत तक घटाने की जरूरत होगी। इतना ही नहीं, सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत को 2050 तक शीर्ष या चरम पर पहुंचाने और 2050 से लेकर 2070 के बीच 90 प्रतिशत तक घटाने की भी जरूरत होगी। इसके साथ औद्योगिक क्षेत्र के लिए कुल ऊर्जा जरूरत में ग्रीन हाइड्रोजन 19 प्रतिशत हिस्से का योगदान कर सकता है। हाल ही में संपन्न हुए कॉप 26 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लिए 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य पाने की घोषणा की थी।

सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के बारे में

सीईईडब्ल्यू सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) का एक प्रयास है, जो एशिया के अग्रणी थिंक टैंकों में से एक है। सीईईडब्ल्यू-सीईएफ, बाजार का एक निष्पक्ष पर्यवेक्षक और ड्राइवर के रूप में कार्य करता है जो ऊर्जा संबंधी परिवर्तनों को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय समाधानों की निगरानी, विकास, आकलन और उपयोग के क्षेत्र में काम करता है।

इसका उद्देश्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बाजारों की सुलभता को बढ़ाने, पारदर्शिता लाने और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों के लिए पूंजी आकर्षित करने में सहायता करना है। यह सरकारों, उद्योग और वित्तीय संसाधनों को उपलब्ध कराने वालों के बीच दूरी घटाने के साथ-साथ ऊर्जा बाजारों की गतिविधियों की निगरानी, व्याख्या और प्रतिक्रिया के जरिए इन लक्ष्यों को प्राप्त करता है।