गंगा को स्वच्छ बनाने को आवंटित धन के समय पर उपयोग को लेकर जवाबदेही तय करने की जरूरत: एनजीटी

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नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कहा कि पिछले 36 वर्षों से निगरानी के बावजूद गंगा की सफाई चुनौती बनी हुई है और अब समय आ गया है कि नदी को स्वच्छ बनाने के लिए आवंटित धन के उचित एवं समय पर उपयोग के लिए जवाबदेही तय की जाए।

अधिकरण ने कहा कि प्रदूषण कम करने के नतीजे प्राप्त करने के लिए आवंटित धन एवं इसके उपयोग के संबंध में उचित जांच की आवश्यकता है।

अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि हालांकि, केंद्र सरकार के स्तर पर गंगा एक्शन प्लान एक और दो के जरिये और उसके बाद राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की स्थापना के माध्यम से पहल की गई है, गंगा का प्रदूषण अभी भी बना हुआ है।

हरित अधिकरण ने कहा कि जवाबदेही और प्रतिकूल परिणामों के बगैर ही समय सीमा का उल्लंघन किया जाता है।

पीठ ने कहा, ‘‘निगरानी और जवाबदेही तय करने में विफलता से केवल सार्वजनिक धन की बर्बादी, निरंतर प्रदूषण और इसके परिणामस्वरूप मौतें और बीमारियां होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित प्रशासन के शीर्ष स्तर को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के कामकाज में संरचनात्मक परिवर्तनों पर विचार करने की आवश्यकता है, ताकि समयसीमा बनाये रखने के लिए जवाबदेही तय की जा सके और निकट भविष्य में लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबंधन रणनीति का पता लगाया जाए।’’

एनजीटी ने कहा कि प्रदर्शन मापदंडों और समयसीमा स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और कार्य संपादन के ऑडिट की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘विफलता के कारणों और जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें उचित रूप से जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। प्रदर्शन में विफलता के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान करने के संबंध में एक तंत्र को निरंतर आधार पर संचालित करने की आवश्यकता है। अनुशासनात्मक और गुणवत्ता नियंत्रण के बिना मिशन की सफलता की संभावना बहुत कम हो सकती है।’’

अधिकरण ने कहा कि आंतरिक समीक्षा तंत्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता है जो वर्तमान में प्रतीत नहीं होता है।

पीठ ने कहा कि यदि यह पाया जाता है कि प्रदूषण उपशमन और नियंत्रण योजना को क्रियान्वित करने के लिए एनएमसीजी द्वारा नियोजित एजेंसियां ​​ठीक तरह से प्रदर्शन नहीं कर पा रही हैं, तो एक उपयुक्त एजेंसी – सरकारी, निजी, या हाइब्रिड को काम सौंपकर संरचनात्मक परिवर्तनों पर विचार करने की आवश्यकता है, जिन्हें शर्तों के अनुसार प्रदर्शन और लक्ष्यों को प्राप्त करने के संबंध में जवाबदेह ठहराया जा सके।

अधिकरण ने कहा, ‘‘संक्षेप में, प्रदर्शन का मूल्यांकन करने और जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है। आवंटित धन और प्रदूषण कम करने के लिए निर्धारित लक्ष्य हासिल करने में हुई प्रगति और अन्य मापदंडों का विवरण देने वाली तिमाही रिपोर्ट एनएमसीजी की वेबसाइट पर डाली जा सकती है ताकि समुदाय की भागीदारी एवं समर्थन को बढ़ाया जा सके। क्षतिपूर्ति, जैसा कि पिछले आदेश में निर्देशित किया गया है, अब केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और एनएमसीजी द्वारा दो महीने के भीतर सकारात्मक रूप से एकत्र किया जा सकता है।’’

पीठ ने अपने हाल के आदेश में कहा, ‘‘गैर-अनुपालन के मामले में, एनजीटी अधिनियम, 2010 की धारा 26 के तहत उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा शुरू करने सहित दंडात्मक उपाय किए जाएं। एनएमसीजी और सीपीसीबी 31 मार्च, 2022 तक की प्रगति के संबंध में रिपोर्ट 15 अप्रैल, 2022 तक दाखिल कर सकते हैं। इसे साथ ही उनकी संबंधित वेबसाइटों पर भी अपलोड किया जा सकता है।’’

अधिकरण ने इस मामले को 28 अप्रैल, 2022 को आगे विचार के लिए सूचीबद्ध किया है।

एनजीटी ने इससे पहले देश की सभी 350 नदियों के कायाकल्प के लिए एक राष्ट्रीय योजना तैयार करने और उस पर अमल के लिए केन्द्रीय निगरानी समिति गठित की थी।

अधिकरण ने उत्तरी राज्यों के मुख्य सचिवों को समय-समय पर गंगा कायाकल्प की निगरानी करने का निर्देश दिया था। हरित अधिकरण ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिवों को समय-समय पर कायाकल्प कार्य की निगरानी करने का भी निर्देश दिया था।