यूक्रेन युद्ध से बचकर आए एमबीबीएस फाइनल ईयर के 4000 छात्रों के पास नहीं है कोई विकल्प


कम आबादी होने के बावजूद यूक्रेन में करीब 20 मेडिकल यूनिवर्सिटी हैं। यूक्रेन में तीन तरह की यूनिवर्सिटी हैं इनमें नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी, नेशनल यूनिवर्सिटी और स्टेट यूनिवर्सिटी शामिल हैं।


प्रदीप सिंह प्रदीप सिंह
देश Updated On :

नई दिल्ली। यूक्रेन से भारत लौटने वाले छात्रों की मुसीबत अभी कम नहीं हुई है। अधिकांश भारतीय छात्र यूक्रेन में हो रही रूस की भंयकर बमबारी से बच गए हैं लेकिन उनका भविष्य अधर में लटक गया है। यूक्रेन से लौटने वाले इन छात्रों में करीब 4000 छात्र ऐसे हैं जो एमबीबीएस फाइनल ईयर के स्टूडेंट हैं। जीवन के महत्वपूर्ण 4 वर्ष और लाखों रुपए एमबीबीएस की पढ़ाई पर खर्च कर चुके इन छात्रों के सामने फिलहाल कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है।

देश में मेडिकल शिक्षा के एक बड़े विशेषज्ञ व मेंटर रहे देशराज आडवाणी का कहना है कि छात्रों के सामने सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि इस बात की पुष्टि भी कैसे होगी कि किस छात्र ने किस यूनिवर्सिटी में कितने वर्ष तक पढ़ाई की है। आखरी सेमेस्टर में उनका प्रदर्शन कैसा रहा। देशराज आडवाणी के मुताबिक छात्रों ने यूक्रेन में जो आधी अधूरी पढ़ाई की है, फिलहाल तो उसका भी ठोस प्रोविजनल प्रमाण इन छात्रों के पास नहीं है।

यूं तो इस प्रोविजनल प्रमाण की वैसे भी कोई मान्यता नहीं है लेकिन इससे छात्रों द्वारा अब तक की गई पढ़ाई की संतुति की जा सकती है और विकल्प बनने पर छात्र इसी स्तर से आगे की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं।

यूक्रेन से वापस लौट रहे कुछ छात्रों को उम्मीद है कि जल्द ही रूस और यूक्रेन के बीच यह लड़ाई समाप्त होगी और वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए वापस यूक्रेन जा सकेंगे। अगर ऐसा मान भी लिया जाए तो भी हर छात्र के लिए यह मुमकिन नहीं होगा। यूक्रेन से लौटे छात्र रणदीप ने बताया कि लुगांस्क स्टेट स्थित मेडिकल युनिवर्सिटी में पढ़ रहे है लेकिन उनका विश्वविद्यालय मिसाइल हमलों में तबाह हो चुकी है। ऐसे में जब उनका विश्वविद्यालय बचा ही नहीं, तो युद्ध समाप्त होने के बाद भी वह यूक्रेन में कहां जाएंगे।

भारतीय शिक्षाविद सीएस कांडपाल के मुताबिक यूक्रेन में करीब 18000 भारतीय छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे, भारत लौटने वाले इन सभी छात्रों को तुरंत यहां दाखिला प्रदान करना संभव नहीं है। कांडपाल का कहना है कि लगभग सभी मेडिकल कॉलेजों में सीटें पहले ही फुल हैं। ऐसी स्थिति में इन छात्रों के लिए तुरंत नई व्यवस्था हो पाना संभव नहीं लगता।

यूक्रेन से लौट रहे भारतीय छात्र भी मौजूदा स्थिति से भलीभांति अवगत हैं। यूक्रेन की विनितसिया नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रही श्रेया शर्मा ने कहा कि यह वास्तविकता है कि भारत सरकार सभी 18 हजार छात्रों को यहां जगह नहीं दे सकती।

इतना ही नहीं फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट को लेकर भारत के राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के नियम भी काफी सख्त हैं। साथ ही देश में ऐसा कोई नियम भी नहीं है जिसके अनुसार विदेश में एमबीबीएस की अधूरी पढ़ाई करके भारत लौटने वालों को यहां के मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल सके। यही नहीं विदेश से मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर चुके छात्रों को भारत में प्रैक्टिस करने के लिए भी सख्त मानदंडों को पूरा करना होता है।

कम आबादी होने के बावजूद यूक्रेन में करीब 20 मेडिकल यूनिवर्सिटी हैं। यूक्रेन में तीन तरह की यूनिवर्सिटी हैं इनमें नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी, नेशनल यूनिवर्सिटी और स्टेट यूनिवर्सिटी शामिल हैं।

गौरतलब है कि एमबीबीएस और बीडीएस की पढ़ाई करने वाले करीब 6 हजार भारतीय छात्र हर वर्ष यूक्रेन जाते हैं। दरअसल भारत में करीब 8 लाख छात्र एमबीबीएस के लिए परीक्षा देते हैं लेकिन इनमें से महज 1 लाख छात्रों को ही भारतीय मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल पाता है। यही कारण है कि हर वर्ष हजारों की तादात में भारतीय छात्रों को यूक्रेन समेत अन्य देशों का रुख करना पड़ता है।

भारत में सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की कुल 88120 और बीडीएस की 27498 सीटें हैं। इस हिसाब से देखा जा तो एमबीबीएस की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए भारतीय मेडिकल कॉलेजों में सीटों की उपलब्ता काफी कम है।

स्वयं भारत सरकार के मुताबिक देश में सरकारी और निजी कॉलेजों में एमबीबीएस की कुल 88120 और बीडीएस की 27498 सीटें हैं और इनमें भी एमबीबीएस की सीटों में करीब पचास प्रतिशत सीटें प्राइवेट कॉलेजों में हैं। नीट परीक्षा परीक्षा में शामिल होने वाले कुल छात्रों में से केवल पांच प्रतिशत बच्चों को ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल पाता है।

यूक्रेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर चुके भारतीय छात्र देवांश गुप्ता के मुताबिक भारत के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में जहां एमबीबीएस के 5 वर्ष की पढ़ाई का खर्च 15 से 20 लाख रुपए पर आता है। वहीं निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रत्येक छात्र को एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के लिए 80 लाख रुपए से अधिक की राशि खर्च करनी पड़ती है। कई भारतीय प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह खर्च 1 करोड़ से भी अधिक है। देवांश का कहना है कि वहीं दूसरी ओर यूक्रेन में बेहतरीन प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सालाना करीब 5 लाख तक फीस वसूलते हैं जिसके चलते यहां एमबीबीएस का पूरा कोर्स लगभग 25 से 30 लाख रुपये में पूरा हो जाता है।



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