जनरल सुनीथ फ्रांसिस रोड्रिग्स, पीवीएसएम, वीएसएम, भारतीय सेना एक सेवानिवृत्त अधिकारी, जिन्होंने 1990 से 1993 तक सेना प्रमुख और 2004 से 2010 तक पंजाब के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। तारा ऐनी फोन्सेका-एक भारतीय मॉडल और मिस एशिया पैसिफिक 1973 की विजेता प्रतियोगिता, जॉन अब्राहम-एक सफल भारतीय अभिनेता, मथाई जॉर्ज मुथूट जूनियर- एक भारतीय उद्यमी, लाल थनहवला- एक भारतीय राजनेता और मिजोरम के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले राजनेता हैं। सूची लंबी है और सभी में कुछ न कुछ समान है। उन्होंने भारत में अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त की है। सभी ईसाई धर्म को मानते हैं। हालांकि, राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय मीडिया शायद ही कभी उन पर रिपोर्टिंग करते समय उनके धर्म का उल्लेख करते हैं। वैसे तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत में होने वाले उन तमाम परिवर्तनों के खिलाफ विश्व मीडिया मुखर रही है लेकिन हाल के दिनों में यह ज्यादा देखने को मिल रहा है।
फिलहाल भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय मीडिया घरानों के निशानों पर है। वर्तमान सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी करार दिया जा रहा है। इसी कड़ी में नवीनतम ‘द इकोनॉमिस्ट’ अखबार का एक लेख है, जिसमें भारत की सरकार अल्पसंख्यकों की अनदेखी कर रही है, और कभी-कभी अल्पसंख्यकों से घृणा को प्रोत्साहित भी करती है, शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया गया है। समाचार के शीर्षक पर खरा उतरते हुए, द इकोनॉमिस्ट ने भारत सरकार पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्वाग्रह रखने का आरोप लगाया है। लेख में विशेष रूप से ईसाई और मुसलमानों को अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा का सबसे बड़ा शिकार बताया गया है। अपनी बात को साबित करने के लिए, लेख में यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला दिया गया है। यूसीएफ एक कथित विद्वानों का समूह है, जो ईसाइयों के लिए एक हॉटलाइन चलाता है, जिसमें ईसाइयों को धर्म के प्रति कट्टरता सिखाई जाती है।
चूंकि लेख का मूल तर्क यूसीएफ द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों पर आधारित है, इसलिए यूसीएफ की विश्वसनीयता कहां खड़ी है, उसे खुद परखा या जाना जा सकता है। यूसीएफ ने वर्ष 2020 के दौरान अपनी वेबसाइट पर ईसाइयों के खिलाफ कथित लक्षित हिंसा और शत्रुता की 122 घटनाओं का विवरण जारी किया है। एक स्वतंत्र एजेंसी पर यदि भरोसा करें तो 23 (18.85 प्रतिशत) घटनाएं ही वास्तविक हैं। 42 (34.42 प्रतिशत) घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया था, शेष 57 (46.73 प्रतिशत) घटनाएं हुई ही नहीं है जिसे इस संगठन ने अपनी रिपोर्ट में शामिल कर लिया है।
जरा इनके द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर गहराई से पड़ताल करें। मिर्जापुर गांव, बोकारो, झारखंड की एक ईसाई महिला को यूसीएफ द्वारा (2021) ईसाई विरोधी धर्मयुद्ध की शिकार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें उसे उसके धर्म के लिए सताया गया बताया गया है। मामले के सत्यापन में वह एक पारिवारिक मुद्दा पाया गया, जिसे सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया और महिला ने अपने धर्म का खुलकर पालन करना जारी रखे हुए है। एक अन्य मामले में, यूसीएफ ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में एक पादरी को प्रार्थना करने से रोक दिया गया और हिंदुत्व चरमपंथियों द्वारा जेसीबी का उपयोग करके उसके घर को ध्वस्त कर दिया गया।
यह घटना 2019 का बताया गया है। इस घटना के सत्यापन में भी वह मामला पादरी और एक हिंदू परिवार के बीच भूमि विवाद का निकला। यूसीएफ द्वारा रिपोर्ट की गई घटनाओं पर नजदीकी नजर डालने से पता चलता है कि उनमें से अधिकतर घटनाएं सांप्रदायिक के बजाय आपराधिक प्रकृति की पायी गयी। कुछ गुप्त उद्देश्यों से कारण यूसीएफ ने सभी आपराधिक मामलों को ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के रूप में प्रस्तुत किया है, जो झूठा है और हिंदुओं और ईसाइयों के बीच सांप्रदायिक माहौल को खराब करने का लक्षित षड्यंत्र हैं।
यूसीएफ की विश्वसनीयता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उनके द्वारा अपने टोल फ्री नंबर के बारे में प्रचार करने के लिए इस्तेमाल किए गए पोस्टर/पम्पलेट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संबंधित गलत जानकारी दी गयी है। पैम्फलेट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक आपातकालीन फैसला सुनाया है, ‘‘यदि कोई धर्म के नाम पर ईसाइयों को परेशान करता है, या उन पर हमला करता है, तो दस साल की जेल होगी।’’ एक साधारण गूगल सर्च से पता चलेगा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई फैसला कभी सुनाया ही नहीं। अपने देश में भारतीय अपराध संहिता के द्वारा अपराधों का वर्गीकरण किया जाता है। उसमें दर्ज धारा 295, 295ए, 153ए हैं, धार्मिक मामलों के विवाद के लिए दंड तय करता है, उसमें क्रमशः 2 साल, 3 साल और 5 साल की जेल की सजा की की बात कही गयी है।
इस प्रकार के अपराधों के लिए तो भारत में 10 साल की सजा का तो कहीं विधान ही नहीं है। यूसीएफ ने एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स के साथ अक्टूबर 2021 में एक रिपोर्ट जारी की जिसमें उसने जनवरी से अक्टूबर तक ईसाइयों पर हमले की 305 व्यक्तिगत घटनाओं का दावा किया। पूछताछ करने पर, यूसीएफ केवल 92 घटनाओं (केवल 30 प्रतिशत) का विवरण ही प्रदान करने में अपनी सक्षमता दिखाई। इन 92 घटनाओं में से केवल 34 की सच्चाई सिद्ध हो पायी है। बाकी या तो झूठी थीं या गलत तरीके से पेश की गयी थी। दिसंबर 2021 में यूसीएफ द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट में, ईसाइयों के खिलाफ 486 घटनाओं की सूचना दी गई थी परन्तु इस बार भी यूसीएफ केवल 258 मामलों के बारे में पूरा विवरण प्रस्तुत किया। इन 258 मामलों में से अधिकांश बाद में मामूली या छिटपुट प्रकृति के निकले जिसमें पुलिस ने उचित प्रक्रिया कर हिंदू कार्यकर्ताओं सहित दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की।
ईसाई विरोधी हिंसा पर आंकड़ों तक पहुंचने के लिए यूसीएफ द्वारा प्रदान की गई वेबसाइट (mapviolence.in) फिलहाल बंद बताया जा रहा है। वेबसाइट पर जाने पर बताया जाता है कि इसे तत्काल मेंटेनेंश मोड में रखा गया है। यूसीएफ के फेसबुक पेज पर पिछले दो वर्षों में केवल एक पोस्ट डाला गया है। यूसीएफ द्वारा दी गयी आंकड़ों को चुनौती देने के लिए कोई भी प्लेटफार्मों मौजूद नहीं है। मसलन यूसीएफ भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं का दावा करता रहेगा, जिसकी जमीनी हकीकत कुछ भी नहीं है। आम आदमी को इससे वाकफ होना चाहिए। हमारे देश की मीडिया को भी पश्चिमी और ईसाई परस्थ मीडिया से सावधान रहना चाहिए। इस रिपोर्ट पर प्रचार से यह साबित हो गया है कि पश्चिमी समाचार माध्यम साम्राज्यवादी पूंजीवादी हथकंडा के अलावा और कुछ भी नहीं है।
भारत आकार में संयुक्त राज्य अमेरिका से थोड़ा बड़ा है लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका की जनसंख्या के लगभग 3 गुना से भी अधिक है। 27.8 मिलियन ईसाई (2011 की जनगणना) भारत में रहते हैं। यदि यूसीएफ द्वारा वर्ष 2021 के लिए ईसाई उत्पीड़न पर उपलब्ध कराए गए आंकड़ों को मूल्यांकन किया जाए तो यह कुल ईसाई आबादी का 0.00175 प्रतिशत बनता है। हालांकि, निहित स्वार्थ वाले संगठन/पार्टियां इन नकारात्मक पहलुओं को उजागर करने पर आमादा हैं, जबकि इस तथ्य की अनदेखी करते हुए कि शेष 99.99825 प्रतिशत ईसाई भारत में शांतिपूर्ण और समृद्ध जीवन का आनंद ले रहे हैं। हमें यह भी सोचना पड़ेगा कि आखिर ये शक्तियां इस प्रकार के अनर्गल प्रलाप आखिर करते क्यों हैं? इसके पीछे के हेतु को समझने की जरूरत है।