भारत की साहित्यिक परंपरा सबसे प्राचीन और जीवंत है : भालचंद्र नेमाडे


भालचंद्र नेमाडे ने कहा कि भारत एकवचनीयता की जगह बहुवचनीयता का समर्थक और पोषक है और यह देश की विविध संस्कृति, व्यवहार, खानपान, भाषा आदि में हम आसानी से देख सकते हैं।


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नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2021 अर्पण समारोह कमानी सभागार में सम्पन्न हुआ। समारोह के मुख्य अतिथि भालचंद्र नेमाडे ने कहा कि भारत एकवचनीयता की जगह बहुवचनीयता का समर्थक और पोषक है और यह देश की विविध संस्कृति, व्यवहार, खानपान, भाषा आदि में हम आसानी से देख सकते हैं। यह भारत की बहुवचनीयता का सौंदर्य है, जो पूरे विश्व में अनूठा तथा विशिष्ट है। भारत की साहित्यिक परंपरा सबसे प्राचीन और जीवंत है।

आगे उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति की जड़े बहुत गहरी और मज़बूत हैं। उन्होंने युवा लेखकों से अनुरोध किया कि हमें अपनी जीवनी शक्ति का रस अपनी संस्कृति से लेना चाहिए लेकिन यदि इसमें अन्य संस्कृतियों और भाषाओं के साहित्य का रस भी मिलता जाए तो इससे हमारी संस्कृति और विस्तृत तथा समन्वयकारी साबित होगी।

उन्होंने कहा कि अपनी देशीयता को हमें पहचानना चाहिए तथा उसको अपने विचार, साहित्य और जीवन में अंगीकार करना चाहिए। यह हमारे मौजूदा समय की आवश्यकता भी है और हमारी वास्तविकता की पहचान का एक सशक्त रूपक भी। इसे साक्ष्य की तरह प्रस्तुत करने का दायित्व बौद्धिक वर्ग और साहित्यकारों को निभाने की आवश्यकता है।

समारोह के प्रारंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि आज मंच पर बैठे सभी पुरस्कृत साहित्यकार विश्व साहित्य परंपरा के प्रतिनिधि है। साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि आजादी के दौरान भारत के ग्रामीण अंचलों में जो लोक साहित्य हमने रचा उसने हमारे जनमानस को अभी तक प्रभावित किया हुआ है। उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान भी साहित्य अकादेमी द्वारा साहित्य को निरंतर सक्रिय रखने के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की।

समापन वक्तव्य में अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि एक लघु भारत का दर्शन, आप साहित्य अकादेमी पुरस्कार अर्पण मंच को देखते हुए आसानी से कर सकते हैं। अकादेमी कई अन्य पुरस्कारों की तुलना लेखकों को राशि भले कम देती हो लेकिन प्रतिष्ठा बड़ी देती है। यही इस पुरस्कार की गरिमा और विशिष्टता है।

पुरस्कृत रचनाकार थे – अनुराधा शर्मा पुजारी (असमिया), ब्रात्य बसु (बाङ्ला), मोदाय गाहाय (बोडो), राज राही (डोगरी), यज्ञेश दवे (गुजराती), दया प्रकाश सिन्हा (हिंदी), वली मुहम्मद असीर किश्तवारी (कश्मीरी), संजीव वेरेंकार (कोंकणी), जगदीश प्रसाद मण्डल (मैथिली), जोर्ज् ओणक्कूर (मलयाळम्), थॉकचॉम ईबॉहनबी सिंह (मणिपुरी), किरण गुरव (मराठी), छविलाल उपाध्याय (नेपाली), हृषीकेश मल्लिक (ओड़िआ), ख़ालिद हुसैन (पंजाबी), मीठेश निर्मोही (राजस्थानी), विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र ‘विनय’ (संस्कृत), अर्जुन चावला (सिंधी), अबइ (तमिऴ), मोरटि वेन्कन्ना (तेलुगु), चंद्रभान ख़याल (उर्दू)। पुरस्कृत रचनाकारों में नमिता गोखले (अंग्रेजी), डि.एस. नागभूषण (कन्नड) एवं निरंजन हांसदा (संताली) के पुरस्कार उनके परिजनों द्वारा लिए गए।



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