एक अक्टूबर की सुबह जब मैं गांव में चारपाई पर बैठा हुआ कुछ सोच रहा था, उसी समय मेरा भतीजा उज्ज्वल एक गोल और चपटी सी कोई चीज लेकर मेरे पास आया। वह उसके बारे में जानना चाह रहा था, लेकिन मेरा मन तो ग्रामयुग अभियान के टाइम टेबल में उलझा हुआ था। संक्षेप में दोहराऊं तो ग्रामयुग अभियान का पहला चरण सात वर्षों का है। इन सात वर्षों के नियोजन के लिए हमने प्रबंधन की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया है, उसे OODA लूप कहते हैं। इसमें पहले दो वर्ष आब्जर्वेशन के लिए थे जो आज विजयदशमी के दिन पूरे हो गए। इसके बाद दो वर्ष ओरिएंटेशन के लिए, एक वर्ष डिसिजन के लिए और अंत में दो वर्ष एक्शन के लिए निर्धारित हैं।
जब हम किसी ऐसे काम की योजना बना रहे हों जिसमें अनिश्चितता बहुत अधिक हो, वहां OODA लूप की कार्यपद्धति काफी कारगर होती है। इसमें अपने आस-पास निर्मित हो रही नित नई परिस्थितियों से तालमेल बिठाने की गुंजाइश अधिक होती है। यह पद्धति अनियोजित घटनाओं को नजरंदाज करने की बजाए उन्हें समझने पर जोर देती है। इसमें सभी प्रकार के बाह्य कारकों पर बहुत पैनी नजर रखनी पड़ती है। इन बाह्य कारकों का प्रकटीकरण कभी उज्ज्वल जैसे छोटे बालक की जिज्ञासा के रूप में तो कभी किसी सुलझे हुए व्यक्ति की सलाह के रूप में भी हो सकता है।
सलाह की बात पर मैं एक विशेष उल्लेख करना चाहूंगा। गत माह सितंबर में मेरे मित्र जीवकान्त जी और विवेक जी गांव आए हुए थे। जीवकान्त जी की एक खासियत है कि वे धार्मिक आस्था और व्यवहारिक सूझ-बूझ को बड़ी खूबसूरती से एक में मिला देते हैं। तिरहुतीपुर में घूमते हुए उन्होंने मुझसे कहा था कि ग्रामयुग अभियान को अब विष्णु तत्व की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि सार्थक सृजन के पीछे तीन तत्वों का योगदान होता है।
पहला ब्रह्मा तत्व, दूसरा विष्णु तत्व और तीसरा शिव तत्व। सृजन की पहली कड़ी ब्रह्म तत्व अर्थात विचार है। इसे परिपक्व करने के लिए सरस्वती जी अर्थात ज्ञान की साधना करनी पड़ती है। सृजन की दूसरी कड़ी में विष्णु तत्व का स्थान है और यहां लक्ष्मी जी केन्द्रीय भूमिका में होती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हमें अपने विचार को जमीन पर उतारने के लिए भौतिक संसाधन जुटाने पड़ते हैं। सृजन की श्रृंखला में अंतिम कड़ी शिव तत्व की होती है जिसके मूल में दुर्गा जी अर्थात शक्ति हैं। शिव तत्व को आम तौर पर संहार का कारक माना जाता है, लेकिन इसका एक पहलू रक्षा का भी है। हमारा सात्विक सृजन तब तक बेमानी होगा जब तक हम उसकी रक्षा के लिए पर्याप्त शक्ति न जुटा लें।
यह सच है कि सार्थक सृजन के लिए तीनों तत्व आवश्यक हैं किन्तु साथ में यह भी सच है कि एक व्यक्ति में तीनों तत्वों को अकेले साधने की क्षमता प्रायः नहीं होती है। अधिकतर लोग किसी न किसी एक तत्व में ही प्रवीण होते हैं। अगर मैं अपनी बात करूं तो मैं ब्रह्म तत्व की साधना में सहज हूं लेकिन शेष दो तत्वों में मेरी गति बहुत अच्छी नहीं है। एक अक्टूबर की सुबह जब उज्ज्वल मेरे पास आया, तब मैं विशेष रूप से यही सोच रहा था कि अपनी इस कमी को कैसे दूर करूं? क्योंकि इस कमी को दूर किए बिना ग्रामयुग अभियान के टाइम टेबल का पालन कर पाना मुश्किल होगा।
उज्ज्वल की उपस्थिति से जब मेरी विचार शृंखला टूटी तब मैंने देखा कि वह अपने हाथ में मधुमक्खियों का एक पुराना छत्ता लेकर घूम रहा है। यह छत्ता कुछ दिन पहले ही घर के सामने वाली नीम से अपने आप नीचे गिर गया था। मधुमक्खियां काफी पहले ही इस छत्ते को छोड़कर चली गई थीं। वह छत्ता मुझे इतना आकर्षक लगा कि मैं उसे अपने हाथों में लेकर गौर से देखने लगा। मधुमक्खियों के किसी छत्ते को इतना नजदीक से मैं पहली बार देख रहा था। सबसे पहले मेरा ध्यान छत्ते की षट्कोणीय आकृतियों पर गया। मैं जिस जिओडेसिक डोम के बारे में प्रायः चर्चा करता रहता हूं, उसका स्वरूप भी काफी कुछ ऐसा ही होता है।
मधुमक्खी के उस छत्ते को देखते-देखते अचानक मुझे अपनी मूल समस्या का भी समाधान मिल गया। मुझे समझ में आ गया कि विष्णु तत्व की साधना में मधुमक्खियों की तकनीक बहुत कारगर साबित होगी। हम सभी जानते हैं कि मधुमक्खी अपना मधु आस-पास के हजारों फूलों से इकट्ठा करती है किंतु यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं होती। इसमें एक पक्ष परागण का भी होता है जिससे पेड़-पौधों को सीधे लाभ होता है।
कहने का मतलब यह कि अगले दो वर्षों में हमें विचार और सूचनाओं का परागण करते हुए संसाधन रूपी मधु इकट्ठी करनी है। इसके लिए हमें तिरहुतीपुर से बाहर निकलना होगा। इन दो वर्षों में हमें उन लोगों तक पहुंचना होगा जिनके पास विष्णु तत्व की बहुतायत है। विचारों का परागण अच्छे से हो, इसके लिए हम मीडिया के सभी औजारों का आगे बढ़कर उपयोग करेंगे। अगले एक महीने के भीतर भारतीय पक्ष डिजिटल पत्रिका और वेबसाइट शुरू हो जाएगी। इसी के साथ ग्रामयुग के सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स को भी सक्रिय किया जा रहा है। जल्दी ही gramyug.com वेबसाइट भी शुरू हो जाएगी।
2020 से 2022 तक का समय हमने गांव को देखने-समझने में बिताए। अब ओरिएन्टेशन के लिए तय अगले दो वर्षों में हमें इसी समझ का इस्तेमाल करते हुए कुछ स्केलेबल माड्यूल बनाने हैं। हम जिन माड्यूल को विकसित करना चाहते हैं, उनकी पहली शर्त है गतिशील होना। हमें ऐसे माड्यूल बनाने हैं जो सहज रूप से आस-पास के गांवों से होते हुए पूरे देश में तेजी से फैल जाएं। किसी एक गांव को फर्श से अर्श तक अर्थात शून्य से शिखर तक ले जाने में हमारी कोई रुचि नहीं है। चारों ओर के बदहाल गांवों को नजरंदाज करते हुए एक गांव पर अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर देना, हमें उचित नहीं लगता। हम तो वन परसेन्ट बेटर के सिद्धांत को मानते हैं। देश के सभी गांव आज जहां है, वहीं से वे यथाशीघ्र एक कदम आगे बढ़ जाएं, और फिर धीरे-धीरे एक-दूसरे का हाथ थाम कर आगे बढ़ते रहें, यही हमारा एजेंडा है।
ओरिएन्टेशन के लिए तय दो वर्षों में हम देश भर घूमने और अधिकाधिक लोगों से संपर्क करने का प्रयास करेंगे। लेकिन यह सब करते हुए हमारे तार हमेशा तिरहुतीपुर गांव से जुड़े रहेंगे। हम घूम-घाम कर जो भी जानेंगे और जुटाएंगे, उसे तिरहुतीपुर में सहेजने की कोशिश की जाएगी। हमारी योजना में तिरहुतीपुर एक बेस कैम्प की तरह है। देश भर से ताकत जुटाने और फिर उस ताकत को समायोजित करके देश भर में वापस बांटते रहने का काम यहीं से संचालित होगा।
अगले दो वर्षों के लिए यदि हमारी कार्यशैली में बदलाव हो रहा है तो उसका असर ग्रामयुग डायरी पर भी पड़ना तय है। आगे से यह डायरी रविवार को दोपहर बारह बजे नहीं, बल्कि हिंदी तिथि के अनुसार प्रत्येक दशमी को रात में जारी की जाएगी। अर्थात महीने में दो बार। यह बदलाव अनायास ही नहीं है। ओरिएन्टेशन के दौर में जो ढेर सारे प्रयोग होने हैं, उस दिशा में यह भी एक छोटा सा प्रयोग है। उचित समय आने पर इसके बारे में विस्तार से बताऊंगा। लेकिन अभी इतना बता दूं कि इस प्रयोग के निशाने पर कोई और नहीं बल्कि आप स्वयं हैं। मैं देखना चाहता हूं कि आपके ऊपर मनोविज्ञान का एक सिद्धांत नज (Nudge) कैसे काम करता है।
(विमल कुमार सिंह, संयोजक, ग्रामयुग अभियान।)