कोविड के दो रूप : जन्म दर में गिरवाट के संकेत


सर्वे के अनुसार फ्रांस और जर्मनी के पचास फीसदी से अधिक युवा दम्पति महामारी के चलते बच्चे की योजना को टाल रहे हैं। इसी तरह ब्रिटेन के 58 फीसदी युवा दम्पति परिवार बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। इटली के 38 फीसदी और स्पेन के 60 फीसदी से ज्यादा युवाओं ने यह भी कहा कि अभी उनकी आर्थिक और मानसिक स्थिति इतनी स्थिर नहीं है कि वो परिवार बढ़ाने के बारे में सोच भी सकें।



आम धारणा है कि किसी भी वस्तु, कहानी, परिस्थिति, घटनाक्रम और परिदृश्य के सामान्यतः दो रूप या दो पहलू होते हैं जैसे एक सिक्के के दो पहलू हुआ करते हैं। इन दो रूपों में एक उसका एक पक्ष, अन्तरिक्ष के सितारों की गति की वजह से बनने वाला कृष्ण होता है जिसमें रात के समय चन्द्रमा की रोशनी पृथ्वी तक नहीं आ पाती तो दूसरा पक्ष चंद्रमा की दूधिया रोशनी से नहाया हुआ शुक्ल पक्ष होता है। यानी हर चीज का एक स्याह पक्ष होता है तो दूसरा उसका उजला पक्ष होता है। पिछले छः माह से भी अधिक समय से स्वास्थ्य की दृष्टि से आतंक का पर्याय बना कोरोना वायरस भी इस लिहाज से अपवाद नहीं है। 

कोरोना वायरस या फिर यूं कहें कोविड -19 की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। कोविड-19 का पूरा मतलब अंग्रेजी भाषा के हिसाब से कोरोना वायरस डिजीज-19 है जिसे संक्षेप में कोरोना वायरस भी कहा जाता है। कहने का मतलब यह है कि साल 2019 में कोरोना नाम के जिस विषाणु ने इस महामारी को जन्म दिया है वो कोरोना रोग ही है। सबसे पहले इसके स्याह पक्ष की बात करें तो यह बात इस तथ्य से ही आसानी से समझी जा सकती है कि शनिवार 11 जुलाई की शाम तक मिले आंकड़ों के हिसाब से देश में कोरोना संक्रमण के मरीजों की संख्या आठ लाख के पार पहुंच चुकी थी और इस मामले में तेजी का सिलसिला इसके बाद भी जारी था।

कोरोना संक्रमितों के सम्बन्ध में यह जानकारी मिलने के साथ ही इस तथ्य की भी पुष्टि हुई कि इस अवधि में 24 घंटे के दौरान ही कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड 27 हजार 114 नए मामले सामने आ चुके थे। राहत की बात यह रही कि इस अवधि में 19 हजार 87 संक्रमित ठीक भी हुए। आंकड़ों के हिसाब से इधर कोरोना बीमारी से होने वाली मौतों की दर भी पहले से कम हुई। इससे एक हफ्ते पहले तक कोरोना से होने वाली मृत्यु दर 2 दशमलव 86 प्रतिशत थी जो पिछले हफ्ते कम होकर 2.72 प्रतिशत हो गई थी। ये स्थिति तो भारत की है, दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो कोरोना संक्रमितों की संख्या करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है और लाखों लोग इसका शिकार होकर अपनी जान गवा चुके हैं। इसके अलावा कोरोना से बचाव के लिए मार्च के दूसरे और तीसरे सप्ताह से दुनिया भर में अलग-अलग समय पर दो से तीन महीने के लिए लागू किये गए लॉकडाउन के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी जबरदस्त चोट पहुंची और काम बंद होने से करोड़ों लोगों को रोजगार से भी हाथ धोना पड़ा है।

इसका यह स्याह पक्ष बहुत ही डरावना और जीवन को अवसाद से भर देने का पर्याय भी बना है। ऐसे ही और भी कई कारण हैं जो कोरोना दौर को उसकी नकारात्मकता में पेश करते हैं। पर इसके साथ ही इसका एक सकारात्मक पक्ष भी है। बात लॉकडाउन दौर की ही करें तो पूरी दुनिया में जब दो महीने से अधिक समय तक न किसी कारखाने में काम हुआ, न कोई वाहन सड़क पर दौड़ा और न ही रेल, हवाई जहाज की सेवाएं ही संचालित हुई तो कार्बन विसर्जन भी नहीं हुआ और पर्यावरण प्रदूषण से भी राहत मिली। प्रदूषण से राहत मिलने का असर इस रूप में भी देखने को मिला कि नदियों का पानी साफ़ हो गया, आकाश निर्मल और नीला दिखाई देने लग गया था

ऐसे कई दुर्लभ प्रजातियों के पशु-पक्षी भी नदी और समुद्र तट पर दिखाई देने लग गए थे जो कई दशक से प्रदूषण के चलते दिखाई देना ही बंद हो गए थे। इधर एक और सकारात्मक पहलू सामने आया है कि कोरोना की वजह से जनसंख्या नियंत्रण में भी जबरदस्त मदद मिली है। अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से मिली एक ताजा जानकारी के अनुसार कोरोना के असर से जनसंख्या दर में 50 फीसदी तक की कमी आने का अनुमान है। प्रसंगवश गौरतलब बात यह है कि मार्च-अप्रैल के दौरान कोरोना के शुरुआती दौर में यूनीसेफ़ समेत कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने अपने-अपने स्तर पर कराये गए अध्ययनों से यह अनुमान लगाया था कि लॉकडाउन की वजह से पूरी दुनिया में जनसंख्या वृद्धि दर में तेजी आयेगी और इसका आबादी पर साफ़ असर दिखाई भी देगा। 

इस अनुमान के पीछे संभवतः यह धारणा भी रही होगी कि जब लॉकडाउन में किसी के पास घर से बाहर जाने का कोई मौका ही नहीं होगा और करने के लिए जुछ काम भी नहीं होगा तो लोग घर में रह कर सहवास की गतिविधियों में ही ज्यादा लिप्त रहेंगे, जाहिर है इससे जनसंख्या वृद्धि को ही बढ़ावा भी मिलेगा पर इस धारणा के विपरीत मई, जून और जुलाई के महीनों में कोरोना का कहर बड़ी तेजी से हुआ तो ऐसा लगा कि कोरोना के चलते लोगों का ध्यान बच्चे पैदा करने से हट गया और ताजा अनुमानों के मुताबिक़ कोरोना के कहर ने अमेरिका, यूरोप समेत तमाम एशियाई देशों में जन्म दरमें 50 फीसदी की कमी आने का अनुमान लगाया गया है।

लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स द्वारा कराये गए एक सर्वेक्षण के हवाले से कहा गया है कि कोरोना काल जनसंख्या में उछाल के बजाय गिरावट का कारण बनेगा। इस रिपोर्ट के अनुसार इटली, फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और स्पेन सरीखे यूरोपीय देशों के 18से 34 साल की उम्र के 50 से 60 फीसदी युवाओं ने कोरोना कहर के चलते बच्चे पैदा कर परिवार बढ़ाने के योजना को फिलहाल आगे बढ़ा दिया है।

कहा जा रहा है कि इस सर्वेक्षण से जुडी लेखिका फ्रान्सेका लुपी का कहना है कि कोरोना दौर में सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य पाबंदियों के चलते बेबी बूम यानी बड़े पैमाने पर बच्चों के पैदा होने की कोई संभावना नजर नहीं आती। सर्वे के अनुसार फ्रांस और जर्मनी के पचास फीसदी से अधिक युवा दम्पति महामारी के चलते बच्चे की योजना को टाल रहे हैं। इसी तरह ब्रिटेन के 58 फीसदी युवा दम्पति परिवार बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। इन देशों के सिर्फ 23 फीसदी युवाओं ने यह कहा कि कोरोना के आतंक से परिवार बढ़ाने की उनकी योजना पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है।
इसी सर्वेक्षण में इटली के 38 फीसदी और स्पेन के 60 फीसदी से ज्यादा युवाओं ने यह भी कहा कि अभी उनकी आर्थिक और मानसिक स्थिति इतनी स्थिर नहीं है कि वो परिवार बढ़ाने के बारे में सोच भी सकें।इन परिस्थितियों में उनके लिए बच्चों की सही ढंग से परवरिश करना भी संभव नहीं हो पायेगा। इस तरह के अध्ययन से इस तरीके के नतीजे भी निकाले जा रहे हैं कि अमेरिका में पहले के एक अध्ययन के अनुसार इस साल के दौरान 40 लाख बच्चे पैदा होने का अनुमान लगाया गया था लेकिन ताजा रिपोर्ट के अनुसार अब अधिकतम 32- 33 लाख बच्चों के पैदा होने की बात की जा रही है।

इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में जनसंख्या वृद्धि दरशून्य तक पहुंचने के संकेत भी मिल रहे हैं। उधर तुर्की और इरान में भी जनसंख्या वृद्धि दर में इतनी गिरावट आ चुकी है कि इन देशों में गर्भ निरोधक दवा और उपकरण मिलना बंद हो गया है। यूनिसेफ ने एक सर्वेक्षण के हवाले से यह अनुमान लगाया था कि मार्च से दिसम्बर के बीच भारत में दो करोड़ और चीन में 1.3 करोड़ बच्चे पैदा होंगे लेकिन ताजा अनुमान के मुताबिक भारत में जन्म दर पहले के मुकाबले काफी नीचे आ चुकी है।