प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या को थामने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के प्रयास करीब-करीब विफल ही रहे हैं। जो थोड़ी-बहुत सफलता मिलती है वह इसके उत्पादन की मात्रा के सामने फीकी है। प्रति वर्ष करीब 46 करोड़ टन नए प्लास्टिक का उत्पादन होता है, और 2060 तक इसका उत्पादन तिगुना होने की संभावना है। इसमें भी एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिया जाने वाला प्लास्टिक अधिक होता है। प्लास्टिक प्रदूषण को थामने के प्रयासों में सफलता बहुत सीमित रही है – कुल उत्पादन का महज़ 10 प्रतिशत प्लास्टिक ही पुनर्चक्रित (रीसायकल) हो पाता है, बाकी समुद्रों में और यहां-वहां फेंक दिया जाता है। यह पर्यावरण, जीव-जंतुओं और मानव स्वास्थ्य के लिए समस्या पैदा करता है।
ऐसे में स्थानीय, राज्य या राष्ट्र के स्तर पर किए जा रहे प्रयासों से बढ़कर वैश्विक स्तर पर कार्रवाई की ज़रूरत लगती है। इस प्रयास में वर्ष 2022 में दुनिया भर के देशों ने मिलकर प्लास्टिक प्रदूषण को थामने के लिए एक वैश्विक संधि के तहत प्लास्टिक प्रदूषण को थामने के लिए नियम-कायदे तय करने की शुरुआत की थी। पिछले दिनों, दक्षिण कोरिया के बुसान में 175 देशों के वार्ताकार इस संधि के पांचवें और अंतिम सत्र के लिए एकत्रित हुए थे। उम्मीद की जा रही थी कि दक्षिण कोरिया के बुसान में जारी वार्ता के परिणामस्वरूप दुनिया को प्लास्टिक प्रदूषण से बचाने के लिए एक सशक्त संधि मिलेगी। लेकिन 1 दिसंबर को वार्ता बगैर किसी निर्णय के समाप्त हो गई। हालांकि, वैश्विक स्तर पर सहमति बनने तक कई शहर और देश अपनी-अपनी नीतियां बना रहे हैं।
बैठक में आए सभी प्रतिनिधियों के अपने-अपने मत हैं। वैज्ञानिकों समेत सहित कुछ समूह चाहते हैं कि गैर- ज़रूरी प्लास्टिक के उत्पादन को कम किया जाए, जो तेज़ी से अनियंत्रित स्तर तक बढ़ गया है। लेकिन कुछ राष्ट्र, विशेष रूप से पेट्रोकेमिकल्स उत्पादनकर्ता राष्ट्र चाहते हैं कि संधि में उत्पादन रोकने की बजाय रीसाइक्लिंग सहित अपशिष्ट प्रबंधन पर अधिक ज़ोर हो।
अब तक, 90 से ज़्यादा देशों ने एक बार उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों (जैसे पोलीथीन थैलियों) पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध लगाया है। ये प्रतिबंध काफी प्रभावी हो सकते हैं। एक विश्लेषण बताता है कि पांच अमेरिकी राज्यों और शहरों में इस तरह के प्रतिबंधों ने प्रति वर्ष एक बार उपयोग की जाने वाली लगभग छह अरब पोलीथीन थैलियों की खपत में कमी की है। जलनिकास मार्ग/जलमार्गों में बहने/फंसने वाले प्लास्टिक में भारी कमी भी दिखाई दी है।
प्लास्टिक उपयोग पर शुल्क वसूलना भी काम कर सकता है। यूके में एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि एक बार उपयोग वाली थैलियों के उपयोग पर शुल्क लगाने के बाद समुद्र तटों पर प्लास्टिक की थैलियों की संख्या में 80 प्रतिशत की कमी आई, हालांकि इससे अन्य तरह का कूड़ा बढ़ गया है। खराब डिज़ाइन किए गए या लागू किए गए प्रतिबंध अप्रभावी होने की संभावना भी होती है। इसका एक उदाहरण कैलिफोर्निया में देखने को मिला है: वहां दुकानों को मोटी और पुन: उपयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई थी – लेकिन लोगों ने पुन: उपयोग करने के बजाय उन्हें भी फेंक दिया, जिससे पहले की तुलना में प्लास्टिक कचरा बढ़ गया। इसलिए लागू की जानी वाली नीतियों की सतत निगरानी और समीक्षा की ज़रूरत है।
फिर, कई देशों में प्लास्टिक पैकेजिंग निर्माता कंपनियों से उनके द्वारा बनाए गए प्लास्टिक को पुनर्चक्रित करने के लिए पैसा लिया जाता है। ऐसा करने से पुनर्चक्रण की दर बढ़ी है। जैसे स्पेन ने ‘उत्पादक की विस्तारित ज़िम्मेदारी’ नीति शुरू की, जिससे कागज़ और प्लास्टिक के पुनर्चक्रण की दर 5 प्रतिशत से बढ़कर 81 प्रतिशत हो गई है। ऐसी नीतियों का उद्देश्य कंपनियों को अपनी पैकेजिंग को नए सिरे से, नए तरीके से डिज़ाइन करने के लिए प्रोत्साहित करना भी है।
लेकिन चूंकि पैकेज़िंग के लिए अधिकांश शुल्क वज़न के हिसाब से लिया जाता है इसलिए यह तरीका मुख्य रूप से सिर्फ पैकेजिंग की मात्रा को कम करने में प्रभावी होता है, न कि पैकेजिंग की सामग्री को बदलने में। विशेषज्ञों का सुझाव है कि ऐसी नीतियां अधिक कारगर हो सकती हैं जो पैकेजिंग को पुनर्चक्रित सामग्री से बनाने का प्रोत्साहन देती हों। जैसे यूके में प्लास्टिक उत्पादकों को प्रति टन प्लास्टिक पर कर देना होता है, लेकिन सिर्फ उन उत्पादों पर जिन्हें बनाने में 30 प्रतिशत से कम पुनर्चक्रित सामग्री का इस्तेमाल किया गया हो। ऐसे प्रोत्साहन प्लास्टिक मांग की सही तरीके से आपूर्ति कर सकते हैं।
ज़ाहिर है, हर नीति के कुछ फायदे-नुकसान होते हैं। पुनर्चक्रण की नीतियों में भी ऐसा ही देखने को मिलता है; इनसे पुनर्चक्रण केंद्र और पुनर्चक्रण की दर तो बढ़ जाती है लेकिन पुनर्चक्रण कर्मचारियों के लिए सुरक्षा मानक न के बराबर होते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे खतरनाक रूपों में से एक है माइक्रोप्लास्टिक।
प्लास्टिक के बारीक-बारीक टुकड़े जो कार के टायरों के घिसने से, कपड़ों की धुलाई से या सौंदर्य प्रसाधनों आदि के उपयोग से पर्यावरण में झड़ते रहते हैं। ऐसा अनुमान है कि हर साल समुद्र में छोड़े जाने वाले करीब 10 लाख टन प्लास्टिक में 15-31 प्रतिशत माइक्रोप्लास्टिक होता है। इसे कम करने के प्रयास में कई देशों ने सौंदर्य प्रसाधनों में माइक्रोबीड्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे कंपनियों पर इनका उपयोग बंद करने के लिए दबाव पड़ा है।
फ्रांस पहला ऐसा देश है जिसने नई वाशिंग मशीनों में माइक्रोफाइबर फिल्टर अनिवार्य कर दिया है। परीक्षणों में एक तरह का फिल्टर 75 प्रतिशत तक माइक्रोफाइबर कम करने में कारगर रहा। हालांकि कपड़ों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के प्रसार को थामने के लिए फिल्टर लगाना बहुत प्रभावी उपाय नहीं है क्योंकि कपड़े पहनते- रखते समय भी करीब उतने ही महीन रेशे झड़ते हैं। और तो और, फिल्टर से निकाल कर भी रेशे पर्यावरण में ही कहीं फेंके जाएंगे।
इसलिए बेहतर होगा कि कपड़ों को बनाने के तरीके में बदलाव किए जाएं, लेकिन राष्ट्रीय कानूनों के ज़रिए यह मुश्किल ही साबित हुआ है। इस तरह की अड़चनों और बाधाओं को कम करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि आवश्यक है। राष्ट्र संघ का प्रस्ताव था कि सभी राष्ट्र एक संधि पर सहमत हों। लेकिन कई मुद्दों पर राष्ट्रों के बीच मतभेदों के चलते वार्ता टूट गई। अब बात वार्ता के अगले दौर तक के लिए टल गई है जो अगले साल होगा।