
कोयला बिजली संयंत्रों से बहुत अधिक वायु प्रदूषण होता है, जो मनुष्यो और जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। हाल ही में, स्टैनफोर्ड डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के डॉ. कीरत सिंह और उनके साथियों ने बताया है कि भारत में कोयला बिजली संयंत्रों से होने वाले नाइट्रोजन डाईऑक्साइड और ओज़ोन उत्सर्जन के कारण गेहूं और धान जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार में कमी आती है। नाप-जोख कर उन्होंने अनुमान लगाया है कि भारत के कुछ हिस्सों में पैदावार का वार्षिक नुकसान 10 प्रतिशत से अधिक है। यह नुकसान पिछले छह वर्षों में उपज में हुई औसत वृद्धि के लगभग बराबर है। उन्नत किस्मों, बेहतर सिंचाई और मशीनीकरण के कारण हमारी फसलों की उत्पादकता बढ़ी है, और प्रदूषण के कारण उपज में आ रही यह कमी चिंता का विषय है।
गेहूं मुख्यत: भारत के मध्यवर्ती और उत्तरी राज्यों में उगाया जाता है, जबकि धान मुख्यत: दक्षिणी और पूर्वी राज्यों में।
कोयला मंत्रालय का अनुमान है कि इन क्षेत्रों की खदानों में बचा हुआ कोयला अगले 120 सालों तक चलेगा। भारत में कोयले से बिजली आपूर्ति की शुरुआत 1920 में निज़ाम शासन के दौरान हैदराबाद के हुसैन सागर में हुई थी, जिसे बनाने के लिए ब्रिटिश उपकरणों का इस्तेमाल किया गया था। तब से लेकर अब तक भारत में कोयले से बिजली बनाई जा रही है, हालांकि पिछले कुछ सालों में इसके तरीकों में थोड़ा सुधार हुआ है। लेकिन ज़रूरत है कि हम बिजली बनाने के अन्य तरीकों के बारे में सोचें।
स्वच्छ विकल्प
बिजली बनाने का एक विकल्प है पवन ऊर्जा। इसमें पवन चक्कियां लगाकर पवन ऊर्जा से बिजली पैदा की जाती है। भारत के नौ पवन समृद्ध राज्य 50 गीगावाट बिजली पैदा करते हैं। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा निर्माता है। कई निजी कंपनियों ने पवन चक्कियां लगाई हैं जो शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बिजली बनाती हैं।
दूसरी विधि है सौर ऊर्जा, जिसमें बिजली बनाने के लिए सूर्य के प्रकाश की ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें घरों और इमारतों पर, या बड़े पैमाने पर सौर खेतों में सौर पैनल लगाए जाते हैं। ये पैनल सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं और इसे बिजली में बदल देते हैं। ये सौर छतें पहले से ही काफी प्रचलित हैं, और केंद्र और राज्य सरकारें सौर पैनल लगाने वालों को सब्सिडी देती हैं।
तीसरी विधि है नदी बांधकर बिजली बनाना। इसमें नदी के एक हिस्से को रोककर बिजली बनाई जाती है। साथ ही नदी के बहाव वाले इलाकों में नहरों के ज़रिए खेती के लिए पानी दिया जाता है। जब नदी के पानी को बांध बनाकर रोका जाता है और फिर छोड़ा जाता है, तो इस ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली पैदा करने में किया जाता है। भारत में मौजूद शीर्ष पांच बांध मिलकर 50 गीगावाट तक पनबिजली पैदा करते हैं।
बिजली बनाने का चौथा तरीका हो सकता है जब नदी समुद्र में मिलती है। नैनो रिसर्च एनर्जी में प्रकाशित एक पेपर बताता है कि जब नदी का पानी समुद्र के खारे पानी में मिलता है, तब उससे बिजली कैसे पैदा की जा सकती है। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय के स्वच्छ इंजीनियरिंग प्रौद्योगिकी केंद्र में डॉ. जावेद सेफई ने बिजली बनाने के लिए परासरण दाब में इस अंतर का इस्तेमाल किया है। परासरण दाब पानी (या विलायक) में विभिन्न सांद्रता पर घुले अणुओं, खासकर लवण, के कारण लगने वाला दाब होता है।
इसी तरह, अमेरिका के पेन स्टेट के इंजीनियरों ने परासरण दाब में अंतर से बिजली पैदा की है। भारत की तटरेखा 7500 किलोमीटर लंबी है, जहां पश्चिम, दक्षिण और पूर्व से नदियां आकर समुद्र में मिलती हैं। भारत में यह तकनीक प्रभावी रूप से बिजली पैदा कर सकती है। भारतीय वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के लिए यह चुनौती स्वीकार करने का अवसर है।
और पांचवा तरीका है परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपयोग करना। परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली बनाने के लिए परमाणु विखंडन से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग पानी को गर्म करके भाप बनाने और उससे टर्बाइनों को घुमाने के लिए किया जाता है। भारत में आठ परमाणु ऊर्जा संयंत्र मिलकर 3.5 गीगावाट बिजली पैदा करते हैं।
समय की ज़रूरत है कि हम प्रदूषणकारी कोयले को त्याग बिजली उत्पादन के स्वच्छ विकल्प अपनाएं।
(डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन का लेख)