बाल दुर्व्यापार के खात्में के लिए सख्त कानून की दरकार


बालदुर्व्यापार, हथियार और ड्रग्स के बाद दुनिया के सबसे संगठित अवैध कारोबारों में से एक है। भारत की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि वह मानव दुर्व्यापार की संभावनाओं को बढ़ाती हैं। भारत वैश्विक स्तर पर इस अपराध से सबसे ज्यादा जूझने वाला देश भी है। अर्थशास्त्र के नियमानुसार ही दुर्व्यापार भी बाजार संचालित उद्योग है जो मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर आधारित है।



कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से लेकर मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। सौ साल बाद यह पहला मौका है जब किसी महामारी ने विकराल रूप लेकर पूरी दुनिया को इतनी बुरी तरह प्रभावित किया है। हमारा अनुभव यह बताता है कि प्राकृतिक आपदा या महामारी से सबसे ज्यादा बच्चे ही प्रभावित होते हैं। करोड़ों मजदूर बेरोजगार हो चुके हैं। उनके गांव वापस लौट आने से उनके बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है। इससे बाल मजदूरी बढ़ेगी और लाखों बच्चे दासता और गुलामी के शिकार हो जाएंगे। 

कोरोना महामारी की वजह से उपजे आर्थिक संकट के चलते सस्ते श्रम के चक्कर में बड़े पैमाने पर बच्चों को काम पर लगाया जाएगा। सस्ते श्रम के लिए बच्चों की ट्रैफिकिंग (दुर्व्यापार) की जाएगी। दलालों द्वारा गरीब राज्यों से बड़े पैमाने पर बच्चो को खरीद कर फैक्ट्रियों, दुकानों और घरों में में काम करने के लिए मालिकों को बेचा जाएगा। लॉकडाउन के दौरान बचपन बचाओ आंदोलन जैसे गैर-सरकारी संस्थाओं के सहयोग से पुलिस ने ऐसे कई मामलों का भंडाफोड़ भी किया है।

बाल दुर्व्यापार, हथियार और ड्रग्स के बाद दुनिया के सबसे संगठित अवैध कारोबारों में से एक है। भारत की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि वह मानव दुर्व्यापार की संभावनाओं को बढ़ाती हैं। भारत वैश्विक स्तर पर इस अपराध से सबसे ज्यादा जूझने वाला देश भी है। अर्थशास्त्र के नियमानुसार ही दुर्व्यापार भी बाजार संचालित उद्योग है जो मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर आधारित है। यह एक मांग-संचालित अपराध है, जिसमें दुर्व्यापारियों द्वारा बच्चों को उनके राज्योंं से बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में लाया जाता है। फिर उन नियोक्ताओं को उन्हें बेच दिया जाता है जो सस्ते श्रम की तलाश में रहते हैं।

बच्चों के खरीद-फरोख्त के इस अवैध कारोबार का खतरनाक पहलू यह है कि यह एक ऐसी आर्थिक गतिविधि है, जिसमें आपूर्ति हमेशा मांग के हिसाब से तय होती है। इसलिए दुर्व्यापार के मांग और आपूर्ति पक्षों की गतिशीलता को समझना निहायत ही जरूरी है। दुर्व्यापारियों का संगठित गिरोह ऐसी मांगों को पूरा करने के लिए देश के दूर-दराज क्षेत्रों और हाशिए के गरीब लोगों को अपना लक्ष्यं बनाता है। गरीबी और अशिक्षा की वजह से पिछड़े और वंचित लोग दुर्व्यापारियों के आसान शिकार भी बन जाते हैं। 

आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से पिछड़े क्षेत्र, लिंग असमानता की उच्च दर वाले इलाके, राजनीतिक अस्थिरता वाले राज्य और नौकरी के अवसरों की कमी जैसे कारक कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो दुर्व्यापार को बढ़ाने का काम करते हैं। गौरतलब है कि बच्चों का दुर्व्यापार जबरिया बाल मजदूरी, भिक्षावृत्ति, बाल वेश्यावृत्ति, सेक्स, टूरिज्म,पोर्नोग्राफी, अवैध अंग व्यापार आदि अवैध धंधों के लिए किया जाता है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि बच्चों को बहला-फुसलाकर या उनके माता-पिता को पैसों का लालच और प्रलोभन देकर धोखा दिया गया और उन्हें बाल और बंधुआ मजदूरी के दलदल में ढकेल दिया गया है।

केवल वयस्क या फिर बच्चा ही मानव दुर्व्यापार का शिकार नहीं होता है, बल्कि शिशु भी इस अवैध कारोबार की भेंट चढ़ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि अवैध रूप से गोद लेने के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए शिशुओं का दुर्व्यापार किया जाता है। इसे व्यापक रूप से ‘‘चाइल्ड लॉन्ड्रिंग’’ के रूप में जाना जाता है। इसमें होता यह है कि बच्चे को उसके माता-पिता से गैर-कानूनी तरीके से खरीदा या प्राप्त’ किया जाता है। कुछ साल पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की एक जांच में रांची में मिशनरीज ऑफ चैरिटी द्वारा शिशुओं व छोटे बच्चे के अवैध तरीके से गोद देने का खुलासा हुआ था।

‘‘निर्मल हृदय’’ के नाम से अविवाहित माताओं के लिए स्थापित आश्रय गृह में पाया गया कि वहां कई सालों से अवैध रूप से गोद देने की गतिविधियां चल रही थीं। पुलिस ने वहां से गोद लेने के लिए बेचे गए चार बच्चों का पता लगाया। बाद में 58 अन्य मामले भी जांच के दायरे में आए। अवैध रूप से बच्चों को गोद देने का कारोबार मानव दुर्व्यापार का ही हिस्सा है। खरीदे गए इन बच्चों को बड़ा होने पर बाल मजदूरी, वेश्यावृत्ति, भिक्षावृत्ति व पोर्नोग्राफी आदि के धंधे में धकेल कर कमाई की जाती है। दुर्व्यापार का एक दूसरा भयानक पहलू लोगों का शोषण है। खासकर ऐसे बच्चों  का जो प्राकृतिक आपदाओं, नस्लीय हिंसा या फिर गृह युद्द आदि संकटों के शिकार हैं। दुनिया में ऐसे बच्चों की तादाद भी लाखों में है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुर्व्यापार के मूल कारणों का पता लगाने के लिए पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उदाहरण के लिए जबरिया श्रम के लिए दुर्व्यापार करना सबसे आम बात है। दुर्व्यापारी ऐसे गरीब और वंचित लोगों को मुख्य रूप से अपना निशाना बनाते हैं, जिन्हें रोजी-रोटी की तलाश रहती है। इसके अलावा असुरक्षित प्रवासन के कारण भी मानव दुर्व्यापार की संभावनाएं बढ़ती हैं। आज नीति-निर्माताओं और कानून बनाने वालों को बाल दुर्व्यापार की गतिशीलता और असुरक्षित प्रवासन यानी रोजगार की तलाश में नगरों और महानगरों की ओर पलायन के अंधेरे पक्ष से अवगत कराने की सख्त जरूरत है। भारत की कानून प्रणाली भी ऐसी नहीं है कि वह बच्चों के व्यावसायिक शोषण को रोकने के लिए प्रभावी उपाय की बात करे। ऐसे कानूनी उपाय करने होंगे जिससे बच्चों को एक उत्पाद समझकर खरीदने वाले ग्राहकों को कठोर सजा दी जा सके।

 

दुर्व्यापार के खतरे को रोकने के लिए हमारे देश का मौजूदा तंत्र सिर्फ कुछ दंडात्मक उपायों और योजनाओं तक ही सीमित है। वे दुर्व्यापार के कारण पैदा होने वाली बहुआयामी समस्याओं को हल करने के दृष्टिकोण से अपर्याप्त हैं। दूसरी ओर यह दुर्व्यापार के पीड़ितों की पुनर्वास आवश्यकताओं को पूरा करने के दृष्टिकोण से भी पर्याप्त नहीं है। यह न तो निवारक उपायों की आवश्यकता पर बल देता है और न ही यह समयबद्ध पुनर्वास और दुर्व्यापार के पीडि़तों को उसके परिवार और समाज से मिलाने की प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है। जबकि दुर्व्यापार के शिकार बच्चे के मन-मस्तिष्क पर शोषण का गहरा असर होता है। अगर उसका उचित मानसिक इलाज और सामाजिक पुनर्वास नहीं किया गया तो उसका जीवन तबाह हो सकता है।

दुर्व्यापार की व्यापकता, विशेषकर इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रकृति को देखते हुए इसके सभी पहलुओं से निपटने के लिए देश में एक व्यापक और समग्र कानून की आवश्य कता है। इससे एक समृद्ध आपराधिक न्याय प्रणाली विकसित होगी,जो जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्वास तंत्र, दुर्व्यापार की रोकथाम,समयबद्ध जांच,परीक्षण और बच्चों  को उनके परिवार और समाज से मिलाने को सुनिश्चित करने का काम करेगी। पीड़ितों और गवाहों दोनों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए ‘‘पीड़ित-गवाह संरक्षण प्रोटोकॉल’’ की भी आवश्यकता है,ताकि अपराधियों को दंडित किया जा सके।

बाल दुर्व्यापार और बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ एक सख्त और मजबूत कानून बनाने की मांग को लेकर सितंबर 2017 में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) ने अपनी सहयोगी संस्था बचपन बचाओ आंदोलन के साथ मिलकर “भारत यात्रा” के नाम से देशव्यापी जन-जागरुकता यात्रा का आयोजन किया था। तब 35 दिनों तक चली और 22 राज्यों से गुजरी इस यात्रा में 12 लाख लोग शामिल हुए थे। मानव दुर्व्यापार मानवीय गरिमा पर न केवल एक गहरा आघात है, बल्कि मानवता के माथे एक कलंक है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और मानवता के माथे पर लगे इस कलंक को मिटाने के लिए उसे एक सख्त दुर्व्यापार विरोधी कानून बनाना चाहिए।

(लेखिका दिल्ली में अधिवक्ता और मानव दुर्व्यापार मामलों की विशेषज्ञ हैं)