गीता जयंती पर हम आलोक प्रताप सिंह और अब्दुल जब्बार को भी याद करें

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मध्य प्रदेश Updated On :

गीता जयंती के अवसर पर मैं देश के कुछ महान नेताओं और चिंतकों का स्मरण करना चाहूंगा। महात्मा गांधी को जितनी गीता प्रिय थी उतना प्रिय उनके लिए कोई अन्य ग्रंथ नहीं था। आचार्य विनोबा भावे ने गीता की जो व्याख्या की है वह अद्भुत है। आचार्य विनोबा भावे कहते थे कि मैं अनेक जन्म लेने के बाद भी गीता के रहस्य को नहीं समझ पाउंगा। लोकमान्य तिलक ने गीता का हमेशा स्मरण किया।

सबसे मौलिक और देशवासियों को जागृत करने के लिए जो बात हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कही थी वह अद्भुत थी। उनको लगता था कि कहीं देशवासी अंग्रेजों से अपनी आजादी की लड़ाई लड़ते-लड़ते थक न जाएं। तो पंडित नेहरू अपनी कई सभाओं में कहते थे कि अंग्रेजों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखो और किसी फल की जल्दी आशा न करो। यह कहते हुए वह गीता के इस महत्वपूर्ण संदेश को दोहराते थे कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”, जिसका अर्थ है कि आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, कर्म के फल में नहीं।

हमारे देश के उन लोगों का मैं आभारी हूं जो गीता को याद कर रहे हैं। परंतु इसके साथ ही उनको हमारे देश के इन चार महापुरूषों-महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे, लोकमान्य तिलक और पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी याद करना चाहिए।

गैस पीड़ितों के संघर्ष के दो हीरो

इसी तारतम्य में मैं भोपालवासियों को दो संघर्षरत व्यक्तियों की याद दिलाना चाहूंगा। मैं चाहता हूं कि भोपाल के गैस पीड़ित इन दो लोगों को हमेशा याद रखें। यूनियन कार्बइड की त्रासदी के बाद जो संघर्ष हुआ था उसमें इन दोनों के नाम बहुत अग्रणी है। पहला नाम है अब्दुल जब्बार। इन्हें पूरे भोपाल के लोगों को याद करना चाहिए। अब्दुल जब्बार ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी-चाहे कानूनी लड़ाई हो या जमीनी लड़ाई हो, चाहे स्वास्थ्य संबंधी लड़ाई हो।

यूनियन कार्बाइड के संबंधित सभी लड़ाईयों में वे अग्रणी रहे। बड़े दुख की बात है कि वे इस दुनिया को छोड़कर चले गए हैं। अब हमारा कर्तव्य है कि हम उनको याद रखें और संभव हो तो हम उनके लिए स्मारक बनाएं। गैस पीड़ितों के साथ-साथ मैं भोपाल के अन्य संगठनों से अनुरोध करूंगा कि वे अब्दुल जब्बार को कदापि न भूलें और उनको गैस पीड़ितों से संबंधित लड़ाई में सबसे अग्रणी मानें।

दूसरा नाम है आलोक प्रताप सिंह का। मुझे याद है कि यूनियन कार्बाइड त्रासदी के एक-दो दिन बाद मैं उस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ जो आलोक प्रताप सिंह ने आयोजित किया था। बुधवारा, इतवारा आदि चौराहों पर सर्वप्रथम आलोक प्रताप सिंह ने यूनियन कार्बाइड की घटना के खिलाफ आवाज उठाई थी। मैं भी उस आवाज में शामिल था। आज मैं भी आलोक प्रताप सिंह को अपनी श्रंद्धाजलि अर्पित करता हूं और तमाम गैस पीड़ितों से अपील करता हूं कि वे आलोक प्रताप सिंह और अब्दुल जब्बार को याद रखें।

(एल.एस. हरदेनिया सेकुलर मोर्चा के संयोजक हैं)



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