अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प हो गया है। ट्रंप लगातार अमेरिकी वोटिंग सिस्टम पर हमला बोल रहे है। उन्हें आशंका है कि डेमोक्रेट चुनावों के दौरान फ्राड करेंगे। मेल इन वोटिंग के जरिए डेमोक्रेट फर्जी वोट भी डलवा सकते है। लेकिन ट्रंप खुद ही “मेल इन वोटिंग” को लेकर भी असमंजस में है। दिलचस्प बात है कि ट्रंप अब मेल इन वोटिंग को लेकर फ्लोरिडा में कुछ बोलकर आए है। वहीं नेवाडा स्टेट में मेल इन वोट का विरोध किया है। एक राज्य में समर्थन और दूसरे राज्य में विरोध ट्रंप की परेशानियों को दिखा रहा है। ट्रंप को यह डर सता रहा है कि उनके विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी मेल-इन वोटिंग के जरिए फर्जीवाड़ा करेगी।
दरअसल कोरोना महामारी के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में अच्छी संख्या में अमेरिकी मतदाता मेल-इन वोटिंग का इस्तेमाल करेंगे। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव टालने की मांग की थी। हालांकि इसका समर्थन उन्हें अपनी पार्टी के अंदर ही नहीं मिला। रिपब्लिकन पार्टी से समर्थन न मिलने के बाद वे चुनाव टालने की मांग से तो पीछे हट गए। लेकिन उन्होंने फर्जी वोटिंग की आशंका जताकर अमेरिकी चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा किया। हालांकि ट्रंप की चुनाव टालने संबंधी मांग असंवैधानिक थी। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव 3 नवंबर को तय है और चुनाव टालने की शक्तियां सिर्फ अमेरिकी कांग्रेस के पास है। अमेरिकी कांग्रेस के निचले सदन में ट्रंप का प्रस्ताव की मंजूरी असंभव थी क्योंकि वहां डेमोक्रेट बहुमत में है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम क्या होंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप की घबराहट बता रही है कि जनता में उनकी लोकप्रियता खासी गिर है। उनका बड़बोलापन उनपर खासा भारी पड़ा है। अंतराष्ट्रीय कूटनीति में ट्रंप ने अमेरिका की खासी फजीहत करवायी है। पिछले चार सालों में ट्रंप ने लंबे-लंबे दावे किए। लेकिन अमेरिकी जनता फिलहाल ट्रंप के दावे को महज बड़बोलापन मान रही है। ट्रंप ने शांति स्थापना के लिए उतर कोरिया से बातचीत शुरू की थी। बातचीत का कोई परिणाम नहीं निकला। ट्रंप ने ईरान से हुए परमाणु करार को रद्द कर दिया। ईऱान फिर भी नहीं डरा। अमेरिका को आज भी खुल कर चुनौती दे रहा है।
अफगानिस्तान में उन्होंने तालिबान के साथ शांति वार्ता को सिरे चढ़ाया। लेकिन शांति वार्ता के परिणाम सुखद नहीं है। शांति समझौते का बाद लगभग 3500 अफगान सैनिक तालिबानी हमले में मारे गए है। शांति समझौता के बाद अफगान सरकार कमजोर नजर आ रही है। तालिबान और मजबूत हो गया है। ट्रंप ने चीन से ट्रेड वार की शुरूआत की। इसके बावजूद अमेरिकी हितों की रक्षा नहीं हो पायी है। चीन से ट्रेड वार के बीच ट्रंप पर आरोप लगे कि वे अंदरखाते चीन से मिले हुए है, वे चीन से राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए सहायता चाहते है। वे चीन से अंदरखाते अपने विरोधी उम्मीदवार जो बाइडेन के खिलाफ जांच की मांग कर रहे थे। ट्रंप की फजीहत में जो कसर बची थी, उसे कोरोना ने पूरी कर दी है। अभी तक पूरे विश्व में कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें अमेरिका में हुई है। कोरोना ने अमेरिकी हेल्थ सिस्टम की पोल खोल दी है। कोरोना के इलाज को लेकर भी ट्रंप बड़बोले दिखे।
कोरोना ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंची है। एक सर्वे के मुताबिक लगभग 3 करोड़ अमेरिकियों ने स्वीकार किया है कि कोरोना के दौर में खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें कभी-कभी खाने के लिए भी मोहताज होना पड़ा। दुनिया की सबसे बड़ी इकनॉमी के 3 करोड़ लोगों की हालत अगर ये हुई तो समझ सकते है कि हालात कितने खराब है। कोरान संकट के बाद की अमेरिकी इकनॉमी की रिपोर्ट भी खासी बुरी आयी है।
कोरोना के प्रभाव के कारण अमेरिकी इकनॉमी में लगभग 32 प्रतिशत सिकुडऩ के संकेत है। यह खतरनाक है। शायद अमेरिकी इतिहास में पहली बार अमेरिकी इकनॉमी को इतना बड़ा झटका लगा है। कम से कम 1940 के बाद अमेरिकी इकनॉमी इस कदर कभी नीचे नहीं गई। 1958 में अमेरिकी राष्ट्रपति डेविड आइजनहावर के कार्यकाल में अमेरिकी इकनॉमी में 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी। अमेरिका में अप्रैल में बेरोजगारी दर 15 प्रतिशत थी। जून में राहत मिली, बेरोजगारी दर 11 प्रतिशत रही। अमेरिका में अप्रैल महीने में लगभग 2.31 करोड़ लोग बेरोजगार थे। ये संख्या 2008-09 में आई आर्थिक मंदी से कहीं बहुत ज्यादा है।
2008-09 की आर्थिक मंदी के दौरान अमेरिका में 1.54 करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे। कोरोना के कारण जून महीनें में स्थायी बेरोजगारों की संख्या 29 लाख पहुंच गई। अप्रैल महीने में यह संख्या 20 लाख थी। कोरोना के कारण टूरिज्म, होटल और पब्लिक इवेंट से संबंधित बिजनेस को भारी नुकसान पहुंचा। इससे खासे अमेरिकी बेरोजगार हुए। हालांकि अमेरिकी सरकार दवारा दिए गए पैकेज के बाद कुछ राहत लोगों को मिली। पैकेज दिए जाने के बाद उपभोक्ता खर्च में तेजी दिखी। ट्रंप को कोरोना से निपटने की विफलता के कारण जनता का गुस्सा साफ महसूस हो रहा है। समय के साथ यह गुस्सा कम हो सकता है, इसलिए ट्रंप चुनाव टालने की मांग कर रहे थे।