बहुसंख्यक मतदाताओं की नाराजगी नहीं झेलना चाहती कांग्रेस


प्रियंका की कोशिश है कि किसी तरह से कांग्रेस इस प्रदेश में फिर से मजबूत बने और इसके लिए हिन्दू वोट बैंक को साधना बहुत जरूरी है। वैसे भी आज के जो हालात हैं उसमें मंदिर मुद्दे का विरोध करने वाली पार्टी को बहुसंख्यक मतदाताओं की नाराजगी झेलने के लिए तैयार रहना ही होगा जो कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी।



अयोध्या में राम मंदिर के भूमिपूजन समारोह से कांग्रेस एक बार फिर बैकफुट पर आ गई है। माना जा रहा है कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वढेरा के उस बयान ने पार्टी को बैकफुट पर ले जाने में उत्प्रेरक का काम किया है जिसमें उन्होंने अयोध्या के भूमिपूजन कार्यक्रम का स्वागत करने का आह्वान पार्टी जन से किया था। प्रियंका कांग्रेस की उत्तर प्रदेश मामलों की प्रभारी हैं और देश के इस सबसे बड़े राज्य में अगले लोकसभा चुनाव से पहले राज्य विधान सभा के चुनाव होने हैं। बिहार और बंगाल के विधान सभा चुनाव के बाद 2022 में इस राज्य में चुनाव होने हैं। 

बिहार और बंगाल में प्रियंका और कांग्रेस का उतना दबाव और असर नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश प्रियंका के लिए इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इसी राज्य की रायबरेली संसदीय सीट से उनकी मां सोनिया गांधी लोकसभा की सदस्य हैं और उनके भाई राहुल गांधी भी अतीत में इसी राज्य की अमेठी सीट से लोकसभा के सांसद रह चुके हैं। राहुल ने लोकसभा का पिछला चुनाव भी अमेठी से लड़ा था लेकिन केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी से हार गए थे। राहुल ने अमेठी के साथ ही केरल के वायनाड से भी लोकसभा का चुनाव लड़ा था और वहां उनकी जीत हुई थी। इस तरह वो अब वायनाड के सांसद हैं। 

इसके अलावा उत्तर प्रदेश लम्बे समय से नेहरु-गांधी परिवार के आकर्षण का प्रमुख केंद्र भी रहा है।इसलिए भी उत्तर प्रदेश को लेकर प्रियंका का विशेष आग्रह होना स्वाभाविक ही है। देर सबेर उनको इसी राज्य के किसी विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किसी विधायी निकाय में करना ही है। माना कि पिछले कई दशक से कांग्रेस का इस प्रदेश में राजनीतिक दखल कम हुआ है लेकिन प्रियंका की कोशिश है कि किसी तरह से कांग्रेस इस प्रदेश में फिर से मजबूत बने और इसके लिए हिन्दू वोट बैंक को साधना बहुत जरूरी है। वैसे भी आज के जो हालात हैं उसमें मंदिर मुद्दे का विरोध करने वाली पार्टी को बहुसंख्यक मतदाताओं की नाराजगी झेलने के लिए तैयार रहना ही होगा जो कांग्रेस  कभी नहीं चाहेगी। इसी वजह से प्रियंका गांधी ने भी कुछ सोच समझ कर ही भूमिपूजन कार्यक्रम का स्वागत करने संबंधी वह बयान देना पड़ा होगा लेकिन उनका वही बयान पार्टी को बेकफुट पर लाने का कारक बन गया।

प्रियंका के इस बयान का उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज इसलिए भी कोई महत्त्व नहीं है क्योंकि इस राज्य में अगले कई दशक तक मंदिर विरोध का नारा बिलकुल भी नहीं चलेगा, जहां तक मंदिर का समर्थन करने का सवाल है इस पर भारतीय जनता पार्टी के अलावा किसी अन्य पार्टी का दावा नहीं हो सकता। इसलिए मंदिर मामले में कांग्रेस के विरोध करने का तो कोई मतलब भी नहीं रह जाता और समर्थन करना इसलिए भी बेमानी कहा जाएगा क्योंकि कांग्रेस पार्टी ने आज तक मंदिर मुद्दे का समर्थन ही किया है।

1948 -49 से लेकर आज तक अयोध्या मामले में जितने भी घटना क्रम हुए हैं उन सभी में कांग्रेस की भूमिका इस मंदिर बनाम मस्जिद विवाद में हमेशा ही मंदिर समर्थक की ही रही है। इसीलिए प्रियंका गांधी के ताजा बयान के बाद एआईएएम एम के नेता असदुद्दीन ओवैसी को यह कहने का मौका भी मिल गया कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास कार्यक्रम का श्रेय भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ ही कांग्रेस को भी दिया जाना चाहिए। 

ओवैसी के मुताबिक राजीव गांधी समेत कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। उनके मुताबिक राजीव गांधी ने मंदिर के ताले खुलवाये थे तो पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष पीवी नरसिंह राव तो अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद का विध्वंश देखते ही रह गए। यही बात संघ परिवार से जुड़े भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी भी कहते हैं। स्वामी तो मंदिर निर्माण के लिए विगत बुधवार 5 अगस्त 2020 को शुरू हुई पहल का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कहीं ज्यादा श्रेय  कांग्रेस नेता राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव को देते हैं। 

असदुद्दीन ओवैसी और सुब्रह्मण्यम मंदिर को लेकर कांग्रेस के बारे में आज जो कुछ भी कह रहे हैं उसका सच सब जानते हैं और यह सब घटनाक्रम इतिहास में दर्ज भी है। कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि वो खुद को अल्पसंख्यक ख़ास कर देश के मुस्लिम समुदाय के पक्ष में खड़ा होते हुए दिखाना तो चाहती है लेकिन बहुसंख्यक मतदाताओं की नाराजगी भी उसकी परेशानी का सबब बन जाती है। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों को खुश करने के चक्कर में वो कहीं की भी नहीं रह जाती।

मौजूदा दौर में कांग्रेस को परेशान करने वाली परिस्थितियां कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। अब वो ज़माना नहीं रहा जब समाज में बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं के दलित और पिछड़े तबके के साथ ही सवर्ण हिन्दुओं के एक वर्ग के साथ ही अल्पसंख्यक मुस्लिम और आदिवासी तबकों का कांग्रेस को समर्थन हुआ करता था, तब कांग्रेस को बहुसंख्यक तबके के एक वर्ग की नाराजगी से भी कोई फर्क नहीं पड़ता था। 

पिछले पांच- छः दशक में कांग्रेस के हिसाब से स्थितियां बुरी तरह बदली हैं। कांग्रेस का एक बड़ा तबका दलित, पिछड़ा वर्ग जैसे सामाजिक आधार के साथ ही धार्मिक आधार पर भी कांग्रेस से अलग होकर बसपा, सपा जैसी अनेक पार्टियों का हिस्सा बना है। उधर पहले जनसंघ फिर भाजपा ने अयोध्या मंदिर जैसे धार्मिक मुद्दों की आड़ में बहुसंख्यक हिन्दू तबके में अपनी पहचान और पैठ और मजबूत बनाई है, इसलिए कांग्रेस के नेताओं की समझ में नहीं आ रहा है कि जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए उन्हें क्या करना और कहना चाहिए?