पटना। गरीब राज्य में जन-प्रतिनिधि बनने के उम्मीदवारों की अमीरी लगातार बढ़ती गई है। इन चुनावों में अमीर उम्मीदवारों की संख्या पहले से कहीं अधिक है। यह भी साफ हुआ है कि पांच वर्षों में आमलोगों की संपत्ति भले नहीं बढ़ी हो, लेकिन उनके द्वारा चुनकर सदन में भेजे गए जनप्रतिनिधियों की संपत्ति लगभग दोगुनी हो गई है।
राज्य में 2005 से अब तक हुए चुनावों के उम्मीदवारों और निर्वाचित विधायकों और सांसदों की संपत्ति के विश्लेषण में यह बात सामने आई है। विश्लेषण इलेक्शन वाच और एडीआर ने किया है।
रिपोर्ट के अनुसार इन चुनावों में हिस्सा ले रहे उम्मीदवारों की संपत्ति औसतन 1.9 करोड़ रुपए थी। जितने के पांच साल बाद सांसदों की संपत्ति का आकलन किया गया तो वह बढ़कर 2.25 करोड़ रुपए हो गई थी। इस दौरान 2005 में बिहार की प्रति व्यक्ति आमदनी 7813 रुपए थी जो चालू वर्ष में 47 हजार 541 रुपए हुई है।
बिहार के चुनावों में धन के साथ ही बल की भी बड़ी भूमिका होती है। उम्मीदवार आपराधिक प्रवृत्ति का है तो उसके जीतने की संभावना 15 प्रतिशत होती है, वहीं साफ छवि के उम्मीदवारों के जीतने की संभावना महज पांच प्रतिशत होती है। दागी होने के साथ ही अगर अमीर हो तो जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 71 सीटों के लिए मैदान में उतरे उम्मीदवारों में 35 प्रतिशत यानी 375 उम्मीदवार करोड़पति हैं। गौरतलब है कि जिस राज्य में प्रति व्यक्ति औसत आय 46,664 रुपए है, वहीं इस चरण के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 1.99 करोड़ रुपए है।
यह खुलासा बिहार चुनाव के बारे में इलेक्शन वाच एवं एसोसिएशन फॉर डिमोक्रेटिक रिफार्म (एडीआर) की रिपोर्ट में हुआ है। यह भी साफ हुआ है कि इन चुनावों में शामिल 31 प्रतिशत यानी 328 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 23 प्रतिशत यानी 244 पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
यह रिपोर्ट पहले चरण के 71 सीटों के 1066 उम्मीदवारों में से 1064 के शपथपत्र पर आधारित है। इनमें राजद के 41 उम्मीदवारों में से 30 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं तो भाजपा के 29 उम्मीदवारों में 21 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। लोजपा के 41 में से 24 पर, कांग्रेस के 21 में से 12 पर, जदयू के 35 में से 15 पर और बसपा के 31 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।