पटना। उम्मीदवारों की घोषणा होते ही पार्टी टिकट से वंचित नेताओं की उछलकूद आरंभ हो गई है। इस प्रवृत्ति की सबसे अधिक शिकार एनडीए गठबंधन हुआ है। भाजपा और जदयू दोनों पार्टियों के कई नेताओं ने टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोड़ दी है और दूसरी पार्टी से टिकट लेकर चुनाव लड़ने का जुगाड़ बिठा लिया है। कुछ नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी भी की है।
दूसरी पार्टियों से चुनाव लड़ने वाले नेताओं को विद्रोही करार देकर मूल पार्टी से निष्कषित करने की प्रक्रिया भी शुरु हो गई है। पहले दौर में भाजपा ने अपने नौ नेताओं को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया है। इनमें राजेन्द्र सिंह, उषा विद्यार्थी, रामेश्वर चौरसिया जैसे जाने माने नेता शामिल हैं। वे सभी उनकी सीटों के जदयू के हिस्से में चले जाने पर बेटिकट होकर लोजपा की ओर से उम्मीदवार बन गए हैं।
पार्टी ने उन्हें नामांकन वापस नहीं लेने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी थी। नामांकन वापसी की तारीख बीत जाने पर नाम वापस नहीं लेने पर उन्हें छह साल के लिए निकाल दिया गया है। जिन नेताओं को भाजपा से निकाल दिया है, उनमें राजेन्द्र सिंह- दिनारा, रामेश्वर चौरसिया-सासाराम, उषा विद्यार्थी-पालीगंज, श्वेता सिंह-संदेश, रवीन्द्र यादव-झाझा, इंदू कश्यप-जहानाबाद, मृणाल शेखर-अमरपुर,अनिल कुमार-विक्रम, अजय प्रताप-जमुई शामिल हैं।
जदयू के जिन नेताओं ने बगावत करके दूसरी पार्टी या निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, ऐसे 15 नेताओं को पार्टी से निकाल दिया गया है। इनमें जदयू विधायक ददन पहलवान, पूर्व मंत्री भगवान सिंह कुशवाहा और रामेश्वर पासवान आदि 15 नेता शामिल हैं। इनके साथ ही जदयू ने अपने सात पूर्व पदाधिकारियों को भी पार्टी से निकाल दिया है।