चिराग पासवान का बयान क्या बिहार के राजनीतिक मौसम में बदलाव का संकेत है?


चिराग पासवान नीतीश कुमार पर आक्रमक हैं। एनडीए का एजेंडा सिर्फ नीतीश कुमार तय करें, चिराग यह नहीं चाहते हैं। लेकिन चिराग पासवान एनडीए के एजेंडे में क्या कुछ नया करना चाहते है? क्या उनके एजेंडे में बिहार की भलाई है। दरअसल चिराग की सक्रियता बिहार की जनता में तो ज्यादा दिखी नहीं है। अभी तक स्पष्ट नहीं है कि आखिर चिराग क्या चाहते हैं।



बिहार में इस समय मानसून सक्रिय है। बिजली भी गिरने की खबर आ रही है। कुछ जगहों से बाढ़ आने की भी सूचना है। लेकिन बिहार की राजनीति में गर्मी है। राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद  सिंह ने महागठबंधन को संकट में डालने की कोशिश की तो इधऱ एनडीए में रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान ने गर्मी ला दी है। चिराग पासवान अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को यह लगातार कह रहे है कि वे किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहे। मतलब क्या वे एनडीए गठबंधन से बाहर निकलेंगे? या महागठबंधन का रूख करेंगे?

वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति इन दोनों संभावनाओं को रद्द करती है। केंद्र में मंत्री पद छोड़ रामविलास पासवान महागठबंधन का रूख तो करने से रहे। फिर एनडीए गठबंधन से अलग निकल बगैर महागठबंधन अकेले लड़ने की क्षमता रामविलास पासवान की पार्टी में नहीं है, ये भलीभांति रामविलास पासवान और उनके पुत्र चिराग पासवान जानते हैं। फिर भी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के राजनीतिक मौसम में गरमाहट है। वैसे चिराग लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर है।

कोरोना संकट के दौरान भी नीतीश कुमार को उन्होंने टारगेट किया था। बिहार सरकार को कोरोना के फ्रंट पर फेल बताने में वे कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। चिराग ने बिहार के 15 लाख लोगों को राशन न मिलने के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेवार ठहराया था। चिराग ने आरोप लगाया था कि बिहार सरकार में इनके नाम राशनकार्ड की सूची में नहीं जोड़ा, इससे लोगों को राशन का लाभ नहीं मिल रहा है।

चिराग पासवान नीतीश कुमार पर आक्रमक हैं। एनडीए का एजेंडा सिर्फ नीतीश कुमार तय करें, चिराग यह नहीं चाहते हैं। लेकिन चिराग पासवान एनडीए के एजेंडे में क्या कुछ नया करना चाहते है? क्या उनके एजेंडे में बिहार की भलाई है। दरअसल चिराग की सक्रियता बिहार की जनता में तो ज्यादा दिखी नहीं है। अभी तक स्पष्ट नहीं है कि आखिर चिराग क्या चाहते हैं। क्या एनडीए के एजेंडे के नाम पर नीतीश पर चिराग पासवान दबाव बना रहे है। वे आक्रमक होकर विधानसभा की सीटों पर अपनी हिस्सेदारी आगे बढ़ाना चाहते है? या भाजपा के इशारे पर चिराग पासवान अपना खेल कर रहे है? 

क्या भाजपा पीछे से चिराग को आगे कर नीतीश पर दबाव बनाए रखना चाहती है? दरअसल नीतीश की राजनीतिक दावपेंच के सामने रामविलास पासवान कहीं नहीं टिकते। नीतीश की सत्ता प्राप्ति करने की कला के सामने रामविलास पासवान काफी कमजोर है। इस कला को नीतीश के राजनीतिक खेल से समझा जा सकता है। उन्होंने 2005 में मजबूत लालू यादव को बिहार से उखाड़ दिया। फिर 2015 में एक साथ नरेंद्र मोदी और लालू यादव दोनों की राजनीति को पटखनी दे दी। वे बिहार की राजनीति में छा गए। 2015 में नीतीश कुमार ने लालू यादव को साथ चलने के लिए मजबूर किया। 2014 में भारी बहुमत से जीतने वाले नरेंद्र मोदी को बताया कि बिहार की राजनीति इतनी आसान नहीं है, जितना मोदी समझते है। नीतीश बिहार में एकमात्र पिछड़े नेता है जिनकी पकड़ हर जाति में कुछ न कुछ है। उन्हें अगड़े भी वोट करते है, पिछड़े भी वोट करते है, दलित भी वोट करते है।

अंदर की राजनीति क्या कहती है यह जानना काफी जरूरी है। दरअसल नीतीश कुमार चिराग पासवान को यह बताना चाहते है कि एनडीए में वही होगा जो नीतीश चाहेंगे। यह भी सच्चाई है कि भाजपा नीतीश कुमार को मजबूरी में नेता मान रही है। बिहार में नीतीश कुमार भाजपा की मजबूरी है। भाजपा अपने दम पर बिहार में सत्ता में नहीं आ सकती है। यह सच्चाई भाजपा को 2015 में समझ में आ गया था। उधर नीतीश भाजपा से समर्थन लेने के बावजूद स्वतंत्र होकर सहयोगियों को चिढ़ाते रहते है। जिस नेता को नीतीश निशाने पर लेते है, उन्हें ठिकाने भी लगाते है। 

नीतीश ने यह तय किया है कि चिराग पासवान का कद बिहार में वे कम करेंगे। इस खेल में उन्होंने दलित जातियों की अंदरूनी राजनीति को नए तरीके से हवा दी है। सबसे पहले उन्होंने कांग्रेस के दलित नेता और विधायक अशोक चौधरी को अपने पाले में किया। अशोक चौधरी दलितों की एक मजबूत जाति से आते है। वहीं अब नीतीश कुमार जीतन राम मांझी को एनडीए कैंप में लाना चाहते है। जीतन राम मांझी दलितों के एक मजबूत जाति मूसहर जाति से संबंधित है। जीतन राम के एनडीए कैंप में आते ही चिराग पासवान का कद घटेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। अब चिराग को नीतीश की यही राजनीति पसंद नहीं आ रही है। उधर भाजपा भी नीतीश का खेल समझ रही है। लेकिन भाजपा खुद सामने आकर नीतीश को नाराज नहीं करना चाहती है। 

यह सच है कि बिहार में सक्रिय सारे राजनीतिक दलों की कोई विचारधारा नहीं है। अवसरवाद यहां के नेताओं की प्रमुख विचारधारा है। इस अवसरवादी विचारधारा से दोनों राष्ट्रीय पार्टियां भी मुक्त नहीं है। सत्ता प्राप्ति के लिए रामविलास पासवान, नीतीश कुमार और लालू यादव ने अपनी उस मूल विचारधारा को अक्सर एक तरफ रख विपरित विचारधारा से समझौता किया। 

1990 में बिहार में सरकार बनाने के लिए लालू प्रसाद यादव को भाजपा और कम्युनिस्ट दोनों का समर्थन मिला था। जब लालू यादव से नीतीश अलग हुए तो उन्होनें भी वाम विचारधारा के साथ कुछ समय के लिए गठबंधन किया। लेकिन अंत में नीतीश कुमार भाजपा के पाले में चले गए। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बन गए। नीतीश कुमार ने 2005 में भाजपा के समर्थन से बिहार में लालू यादव की पार्टी को उखाड़ दिया। अब नीतीश से अलग लालू यादव की राजनीति देखे। लालू यादव जिन्होंने किसी वक्त वीपी सिंह के साथ कांग्रेस के भ्रष्टाचार खिलाफ लड़ाई लड़ी, वे कांग्रेस के शरण में चले गए। केंद्र में 2004 में आयी यूपीए-1 की सरकार में केंद्रीय मंत्री बन गए।

अब बिहार के एक और नेता रामविलास पासवान का वैचारिक आधार भी दिलचस्प है, जिनके पुत्र चिराग पासवान इस समय नीतीश कुमार पर हमलावर है। क्योंकि चिराग पासवान लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रहे है कि आगामी विधानसभा चुनावों में बिहार में एनडीए का एजेंडा नीतीश नहीं तय करेंगे। एनडीए का एजेंडा सारे दल मिलकर तय करेंगे। 

दिल्ली के लूटियंस में पले बढ़े चिराग पासवान का बिहार में अपना कुछ नहीं है। वे अपने पिता की जाति के आधार पर बिहार चुनाव में एजेंडा फिक्स करना चाहते है। काबिले गौर है कि रामविलास पासवान बिहार की राजनीति में सिर्फ अपनी पासवान जाति के नेता रहे है। अन्य जातियों में इनकी स्वीकार्यता न के बराबर है। इसका एक कारण यह भी है कि इनकी पार्टी में परिवार के सदस्य ही सारे पदों को बांट लेते है। इनके परिवार से बाहर के इनकी जाति के नेताओं को पार्टी में उचित स्थान नहीं मिलता है। रामविलास पासवान गैर पासवान दलित जातियों की वोट भी हासिल नहीं कर पाते है। उन्हें बिहार में न अति पिछड़ी जाति वोट करती है, न पिछडी जातियां वोट करती है। अगड़ीं जातियों के कुछ दबंग नेता इनके साथ, जरूर है, अपने प्रभाव वाले इलाके में रामविलास पासवान की पार्टी को थोड़ा बहुत वोट दिलवा देते है।

चिराग पासवान बिहार में रामविलास पासवान की राजनीति के उतराधिकारी है। रामविलास पासवान की वैचारिक पृष्ठभूमि भी दिलचस्प है। जेपी आंदोलन से निकले पासवान बिहार की राजनीति में मौसम विज्ञानी के तौर पर जाने जाते है। लालू यादव रामविलास पासवान को मौसम विज्ञानी बताते है। बकौल लालू यादव किस दल को सत्ता मिलने वाली है यह रामविलास पासवान को पहले ही पता हो जाता है। इसलिए वे पाला बहुत ही समझदारी से बदलते है। लालू यादव के अनुसार पासवान राजनीति के मौसम वैज्ञानिक है। खैर इसमें सच्चाई भी है। रामविलास पासवान वीपी सिंह के साथ रहे। उनके मंत्रिमंडल में थे। वीपी सिंह की राजनीति खत्म होने के बाद भी रामविलास ने अपनी राजनीति को जिंदा रखा। वे देवगौड़ा सरकार में भी मंत्री थे। बाद में जब उन्हें लगा कि मंडल की राजनीति दिल्ली से खत्म हो रही है तो उन्होंने कमंडल पक़ड़ लिया। 

अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में रामविलास शामिल हो गए।। फिर देखिए वाजपेयी सरकार जाएगी इसका अंदाजा रामविलास पासवान को पहले ही हो गया था। वो कांग्रेस के पाले में आ गए थे और मनमोहन सिंह की सरकार में वे मंत्री बन गए। जब 2014 में उन्हें लगा कि दिल्ली में फिर से एनडीए में आ रही है तो एनडीए के पाले में चले गए। नरेंद्र मोदी सरकार में पासवान फिर से मंज्ञी बन गए। बिहार विधानसभा में भी वे सत्ता के हिसाब से अपनी राजनीति बदलते रहे है। कभी एनडीए और कभी लालू यादव के साथ उन्होंने मिलकर चुनाव लड़ा। 2010 विधानसभा चुनाव रामविलास पासवान ने लालू यादव के साथ मिलकर लड़ा। 2015 में एनडीए के खेमें में आकर विधानसभा चुनाव लड़ा। सत्ता में कैसे बना रहना है, यह रामविलास पासवान से  बेहतर कोई नहीं जानता।