बिहार विधानसभा चुनाव के साथ जुड़ी है झारखंड की भावी राजनीति

गौतम चौधरी
बिहार चुनाव 2020 Updated On :

बिहार विधानसभा का चुनाव होना अब लगभग तय हो गया है। बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही संभवतः झारखंड के दो खाली पड़े विधानसभा का भी उपचुनाव संपन्न कराया जाएगा और इसके परिणाम के बाद शर्तिया तौर पर झारखंड की राजनीति एक बार फिर से करवट लेगी। कोविड-19 संक्रमण काल में चुनाव आयोग बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगा है। सारे सरकारी महकमों को इस काम में लगाया गया है। इधर जो खबर आ रही है उससे अब यह लगने लगा है कि बिहार विधानसभा और झारखंड के दो विधानसभाओं का उपचुनाव 26 अक्टूबर. से लेकर 10 नवंबर के बीच करा लिया जाएगा।

चुनाव आयोग ने इस बात के संकेत भी दे दिए हैं। इसलिए अब कभी भी बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो सकती है। झारखंड में विधानसभा की दो खाली सीटों दुमका और बेरमो उपचुनाव के मतदान 26 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच कराने की तैयारी की जा रही है। चुनाव आयोग ने इसके संकेत दिए हैं। इस हिसाब से हफ्ते भर बाद कभी भी उपचुनाव के तारीखों की घोषणा हो सकती है। यह घोषणा बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही होगी। दुमका सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बेरमो सीट कांग्रेस के राजेंद्र सिंह के निधन के कारण खाली हुई है।

26 अक्टूबर से लेकर 10 नवम्बर के बीच चुनाव कराने के कई कारण हैं। चुनाव आयोग त्योहारों और बिहार में नई सरकार के गठन के हिसाब से कार्यक्रमों की प्रारंभिक रूप रेखा तैयार कर रहा है। इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है। बिहार में वर्तमान सरकार 30 नवंबर, 2015 को बनी थी। इसलिए वैधानिक रूप से 29 नवंबर तक हर हाल में मतगणना के बाद चुनाव परिणाम आ जाने चाहिए। 13 नवंबर को धनतेरस, 16 नवंबर को दीपावली और 21 नवंबर को छठ है। छठ के बाद मात्र आठ दिन में 21 से 29 नवंबर के बीच मतदान और मतगणना दोनों कराना चुनाव आयोग के लिए बेहद कठिन होगा।

17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच नवरात्र है। इस दौरान भी मतदान और मतगणना की प्रक्रिया से चुनाव आयोग परहेज करना चाहेगा। 17 अक्टूबर से पहले मतदान कराने के लिए अब समय नहीं बचा है। क्योंकि चुनाव घोषणा से मतदान के बीच कम से 45 दिन की अवधि होनी चाहिए। 17 सितंबर तक वैसे भी पितृपक्ष और उसके बाद मलमास है। इस कारण से चुनाव आयोग के लिए व्यवधान रहित अवधि केवल 26 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच का बच में ही बचता है।

इधर बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही झारखंड के दो विधानसभाओं का उपचुनाव संभवतः होना है। यही कारण है कि दुमका और बेरमो उपचुनाव को लेकर पार्टियां रेस हो गई हैं। दोनों विधानसभा क्षेत्रों में जमीनी कवायद से लेकर पार्टियों के वार रूम में अंकगणित के अलग-अलग फॉर्मूलों पर चुनौतियों की परीक्षा हो रही है। उम्मीदवारी की दावेदारी को लेकर पार्टियों के दरवाजे खटखाए जाने लगे हैं। भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों में तो दिल्ली दरबार तक की दौड़ प्रारंभ हो गयी है। सूत्रों की मानें तो दावेदार अपनी दावेदारी सुनिश्चित कराने के लिए कई बार दिल्ली की यात्रा कर आए हैं।

झारखंड के इस उपचुनाव के कई किरदार हैं। चूंकि दुमका सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा खाली किया गया है इसलिए सोरेन इस सीट के बेहद महत्वपूर्ण किरदार हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री और प्रदेश में यूपीए का चेहरा होने के कारण सत्ता पक्ष के उम्मीदवार की जीत के लिए बेरमो में भी दारोमदार मुख्यमंत्री सोरेन के उपर ही है। हेमंत सोरेन के इस्तीफे के कारण ही दुमका सीट खाली हुई है। इसलिए झामुमो उम्मीदवार के लिए जनसमर्थन बनाए रखने की जिम्मेवारी भी मुख्यमंत्री पर है। यही नहीं यह उपचुनाव मुख्यमंत्री का लिटमस टेस्ट भी है। यदि दोनों सीटें जीत गए तो फिर मुख्यमंत्री सोरेन प्रचंड प्रभावशाली होकर उभरेंगे। यदि वे हार गए तो फिर प्रतिपक्षी भाजपा उनकी सत्ता तक को चुनौती दे सकती है।

झारखंड के इन दोनों विधानसभा सीटों के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी एक अहम किरदार की भूमिका में हैं। हाल ही में फिर से भाजपा में लौटे और आनन-फानन में विधयक दल का नेता बनाए जाने के बाद से बाबूलाल बुरी तरह सक्रिय दिख रहे हैं। चूकि वे भाजपा विधायकदल के नेता हैं और दुमका उनका कार्यक्षेत्र रहा है। हालांकि बाबूलाल इन दिनों कई प्रकार के राजनीतिक गतिरोध में फंसे हुए हैं। झारखंड विकास मोर्चा का उन्होंने भाजपा में विलय तो कर लिया है लेकिन झारखंड विधानसभा में उन्हें मान्यता नहीं मिली है। इस कारण उनका प्रतिपक्ष के नेता पर भी विवद बरकरार है लेकिन दुमका विधानसभा के लिए बाबूलाल अहम हैं। यह उपचुनाव बाबूलाल के भविष्य की राजनीति को भी तय करेगा। वैसे मरांडी के खुद भी दुमका से चुनाव लड़ने के कयास भी लगाए जा रहे हैं। हालांकि उन्हेंने इस बात से इन्कार किया है।

इस पटकथा के एक किरदार पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता रघुबर दास भी हैं। रघुबर इसलिए महत्वपूर्ण किरदार हैं क्योंकि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में दास ने संथाल परगना में झारखंड मुक्ति मोर्चा को कमजोर करने में उन्होंने जबरदस्त रूचि दिखाई थी। रघुबर दास अभी भी भाजपा के लिए अपरिहार्य बने हुए हैं। विगत दिनों संपन्न प्रदेश कार्यसमिति के गठन में उन्होंने अपनी ताकत दिखाई है। वैसे दास को बेरमो से विधानसभा उम्मीदवार बनने की संभावना भी जताई जा रही है।

इस उपचुनाव की एक अहम किरदार पूर्व मंत्री लोईस मरांडी भी हैं। यह इसलिए कि मरांडी, रघुबर सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। यही नहीं 2014 में उन्होंने झामुमो के कद्दावर नेता और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मात दी थी। भाजपा इस बार भी लोईस मरांडी पर दांव खेल सकती है। कुल मिलाकर बिहार विधानसभा चुनाव के तारीख की अब कभी भी घोषण हो सकती है। इस चुनाव के साथ ही झारखंड के दो विधानसभाओं का उपचुनाव भी संपन्न कराया जाएगा। झारखंड का यह उपचुनाव इसलिए बेहद महत्वपूर्ण है कि इसी उपचुनाव के बाद झारखंड के भावी राजनीतिक उलटफेर का गणित सेट हो पाएगा।