भाजपा और जदयू का आरक्षण कार्ड कितना काम आएगा ?


लालू और नीतीश लोगों को यह समझाने में कामयाब रहे कि दलितों और अन्य पिछडी जातियों को मिल रहे आरक्षण को भाजपा और संघ खत्म करना चाहते हैं। लालू यादव तो इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने चलते चुनाव में ही कह दिया था कि भागवत का बयान बिहार में भाजपा की तकदीर का फैसला कर चुका है।


अनिल जैन अनिल जैन
बिहार चुनाव 2020 Updated On :

बिहार में विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भाजपा और जनता दल (यू) दोनों ने अलग-अलग तरीके से आरक्षण का दांव चला है। ध्यान रहे बिहार का पिछला पूरा चुनाव आरक्षण के मसले पर हुआ था। चुनाव से ऐन पहले आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा का एक बयान दिया था, जो बिहार चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया था।

उस समय लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों एक साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे थे और भाजपा उनसे अलग थी। पूरे चुनाव भाजपा सफाई देती रही कि किसी हाल में आरक्षण को खत्म नहीं होने दिया जाएगा।

यही नहीं, मोदी ने कुछ सभाओं में तो खुद को पिछड़ी जाति और दलित मां बेटा भी बताया और कहा कि उनके रहते कोई ताकत आरक्षण को खत्म नहीं कर सकती और वे इसे बचाने के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा देंगे। लेकिन उनकी कोई सफाई-दुहाई काम नहीं आई।

लालू और नीतीश लोगों को यह समझाने में कामयाब रहे कि दलितों और अन्य पिछडी जातियों को मिल रहे आरक्षण को भाजपा और संघ खत्म करना चाहते हैं। लालू यादव तो इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने चलते चुनाव में ही कह दिया था कि भागवत का बयान बिहार में भाजपा की तकदीर का फैसला कर चुका है।

चुनाव नतीजों ने उनके कहे को साबित भी कर दिया। भाजपा की करारी हार हुई। राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यू) और कांग्रेस के महागठबंधन को लगभग तीन चौथाई बहुमत हासिल हुआ। बाद में भाजपा के भी कई नेताओं ने माना था कि भागवत के बयान से उनकी पार्टी को नुकसान हुआ।

अब केंद्र सरकार ने ऐलान किया है कि अगले साल से देश के सैनिक स्कूलों में पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण मिलेगा। सैनिक स्कूलों में पहले से आरक्षण है। जिस राज्य में स्कूल हैं वहां के छात्रों के लिए 67 फीसदी सीटें आरक्षित होती हैं।

बाकी 33 फीसदी सीटों पर बाहरी छात्रों का दाखिला होता है। इसके लिए लिस्ट ए और बी बनती है। अब दोनों लिस्ट में 15 फीसदी सीटें अनुसूचित जाति के लिए साढ़े सात फीसदी अनुसूचित जनजाति के लिए और 27 फीसदी ओबीसी के लिए आरक्षित होंगी।

ध्यान रहे देश में कुल 33 सैनिक स्कूल हैं, जो अपनी बेहतरीन गुणवत्ता के लिए मशहूर हैं। इनका संचालन रक्षा मंत्रालय करता है। रक्षा सचिव अजय कुमार ने सभी सैनिक स्कूलों के प्राचार्यों को नोटिस भेज दिया है और अगले शैक्षणिक सत्र यानी 2021-22 से आरक्षण की यह व्यवस्था लागू हो जाएगी।

आरक्षण का दूसरा दांव उधर बिहार में नीतीश कुमार ने चला है। उन्होंने कहा है कि आबादी के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। यह ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के पुराने नारे का दोहराव है।

अनेक नेता पहले कहते रहे हैं कि आबादी के अनुपात में आरक्षण होना चाहिए। पप्पू यादव ने भी इस बार बिहार चुनाव में कहा है कि उनकी सरकार बनी तो आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा। पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह कहना ज्यादा महत्व का है।

इसका मतलब है कि एनडीए की सरकार बनी तो आरक्षण बढ़ सकता है। ध्यान रहे बिहार में 54 फीसदी के करीब आबादी पिछड़ी जाति की है। अगर आबादी के अनुपात में आरक्षण की बात हुई तो इसका मतलब होगा कि मौजूदा ओबीसी आरक्षण दोगुना हो जाएगा।

हालांकि भाजपा को लग रहा है कि नीतीश कुमार को इस समय यह बयान नहीं देना चाहिए था क्योंकि इससे अगड़ी जातियों में नाराजगी होगी, जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।

पर भाजपा ने खुद सैनिक स्कूल में ओबीसी आरक्षण की घोषणा की है। सो, ले-देकर दूसरा चरण आते आते भाजपा और जदयू दोनों आरक्षण के मसले पर वोट मांगने लगे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि रोजगार के मुकाबले आरक्षण का दांव कितना कारगर होता है।