मंजू वर्मा को फिर से जदयू टिकट मिलने से बालिका आश्रय-गृह कांड चुनावी-चर्चा में शामिल


बालिका आश्रय-गृहों की नारकीय अवस्था का पर्दाफाश एक शोध-अध्ययन के दौरान हुआ। सबसे पहले मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय-गृह में अत्याचार-यौनाचार का मामला सामने आया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई सीबीआई जांच के बाद इसके संचालक ब्रजेश ठाकुर को आजीवन कारावास की सजा हुई।


अमरनाथ झा
बिहार चुनाव 2020 Updated On :

पटना। स्मृति की खोह से निकलकर बालिका आश्रय-गृह कांड चुनावी-चर्चा में शामिल हो गया है। शुरुआत मंजू वर्मा को फिर जदयू उम्मीदवार बनने से हुई जिन्हें इस कांड के उजागर होने पर मंत्री पद छोड़ना पड़ा था और पार्टी से निकाला गया था। वे नीतीश कुमार सरकार में समाज कल्याण विभाग की मंत्री थी जिसकी देखरेख और वित्तीय अनुदान पर आश्रय-गृह संचालित होते हैं।

बालिका आश्रय-गृहों की नारकीय अवस्था का पर्दाफाश टाटा इंस्टिच्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) के शोध-अध्ययन के दौरान हुआ। सबसे पहले मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय-गृह में अत्याचार-यौनाचार का मामला सामने आया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई सीबीआई जांच के बाद इसके संचालक ब्रजेश ठाकुर को आजीवन कारावास की सजा हुई और उनकी अकूत संपत्ति को खोज-खोजकर जब्त किया जा रहा है। दूसरे अभियुक्तों की तलाश हो रही है और राज्य के दूसरे आश्रय-गृहों की जांच मंद गति से ही सही, पर चल रही है।

आश्रय-गृह की निगरानी करने में लापरवाही के आरोप में समाज कल्याण विभाग के नौ अधिकारी अगस्त 2018 में ही निलंबित कर दिए गए। बाद में दिल्ली की एक अदालत ने संचालक ब्रजेश ठाकुर समेत 19 लोगों को दोषी करार दिया। सीबीआई जांच के आधार पर अन्य अनेक अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। सीबीआई ने राज्य के 17 आश्रय-गृहों की जांच की। कुछ मामलों की जांच पूरी नहीं हुई है।

टाटा इंस्टिच्यूट ने अपनी पहली रिपोर्ट 26 मई 2018 को बिहार सरकार को सौंपी थी। राज्य के 110 आश्रय-गृहों की छानबीन में 17 आवास-गृहों में गंभीर गड़बड़ी पाई गई थी। इसमें मुजफ्फरपुर आवास-गृह की स्थिति सबसे अधिक खराब बताई गई थी। पर इस रिपोर्ट पर कोई खास कार्रवाई नहीं होनों पर इसे हाईकोर्ट में उठाया गया। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया और अदालत ने सीबीआई को जांच का जिम्मा दे दिया।

हालांकि बिहार सरकार के वकील मामले को सीबीआई को सौपने का विरोध कर रहे थे। पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 फरवरी 2018 से सीबीआई जांच की निगरानी करना भी शुरू कर दिया। फरवरी 2019 में इस मामले को मुजफ्फरपुर की अदालत से दिल्ली की पोस्को अदालत में भेज दिया। मामले की सुनवाई प्रतिदिन हुई और 30 मार्च को आरोप निर्धारित हुए।

आश्राय-गृह की बालिकाओं के साथ अत्याचार, यौनाचार के साथ साथ हत्या के आरोप भी थे। ग्यारह लडकियों की हत्या के मामले की सीबीआई ने छानबीन की। जिसकी जानकारी उसने सुप्रीम कोर्ट को भी दी थी। हत्या के बारे में आवास-गृह में रहने वाली लड़कियों ने जांच-अधिकारी को बताया था। पर हत्या का मामले पर मुकदमा नहीं चलाया गया, अभियुक्तों के खिलाफ बेहद कमजोर धाराए लगाई गई।

इसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता निवेदिता झा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। हालांकि सीबीआई ने कहा छानबीन में हत्या का पुख्ता सबूत नहीं मिला। जबकि आवासियों के बयान के आधार पर आवास-गृह परिसर और दूसरी जगहों पर लाशों की तलाश में खुदाई भी की गई।

इस वर्ष 20 जनवरी को मामले की सुनवाई कर रही पोस्को अदालत ने आश्रय गृह के संचालय ब्रजेश ठाकुर को आखिरी सांस तक कैद की सजा सुनाई। पांच अन्य अभियुक्तों को भी आजीवन कारावास की सजा हुई। छह अभियुक्तों को दस साल कैद और दो को तीन साल कैद व छह महीने कैद की सजा हुई। अदालत ने कैद के साथ ही ब्रजेश ठाकुर पर 30 लाख रुपए का आर्थिक दंड भी लगाया।

आवासी बालिकाओं ने एक अन्य खुलासा यह किया था कि एक तोंद वाले अंकल और एक मूंछ वाले अंकल अक्सर आते थी। यह तोंद वाले अंकल कौन हैं। कहा जाता कि संकेत मंत्री मंजू वर्मा के पति चंद्रेश्वर वर्मा की ओर हैं।

हालांकि इस दिशा में अधिक छानबीन नहीं हुई। मंजू वर्मा का मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद चेरिया बरियार पुर गांव में उनके घर पर छापा जरूर पड़ा जिसमें कुछ गैर कानूनी हथियार बरामद हुए। अवैध हथियार रखने के आरोप में वे गिरफ्तार भी हुई। पर जल्दी ही छूट गई। लेकिन आवास-गृह में अक्सर जाने वाले लोगों के बारे में अब तक छानबीन नहीं हुई है।

zxzअवैध हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार मंजू वर्मा के रिहा हो जाने के आधार पर ही उन्हें इस बार जदयू का टिकट दे दिया गया है, पर आवास-गृह में अक्सर जाने वालों के बारे में छानबीन नहीं होने से कुछ रहस्य अभी उजागर नहीं हुए हैं। क्या इनकी जांच नहीं होनी चाहिए? बताते हैं कि आवास-गृह की बालिकाएं इन्हीं अनजान लोगों के सामने परोसी जाती थी और उनके साथ यौनाचार होता था।