ठेके पर बहाली करने की कवायद में बिहार की नई सरकार

चुनावी घोषणापत्र में राजद ने जहां 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वायदा किया, वहीं सरकार में हिस्सेदार भाजपा ने 19 लाख रोजगार देने का वायदा किया था। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू रोजगार के मुद्दे पर खामोश रही।

पटना। सरकार बनते ही दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी मिलने की उम्मीद में महागठबंधन की सभाओं में भीड़ लगाने वाले नौजवानों में गहरी निराशा है। यह निराशा तब अधिक गहरी और दोगुनी हो गई है जब पता चला कि वर्तमान सरकार वर्षों से खाली पड़े पदों पर फिर से संविदा पर ही अस्थाई बहाली करने की कवायद में लग गई है।

नीतीश सरकार ने विभिन्न विभागों में 2007 से खाली पड़ी रिक्तियों के बारे में पूरी जानकारी मांगी है। सरकार इन पदों पर संविदा के आधार पर नियुक्ति करने की कोशिश में है ताकि सरकार 19 लाख लोगों को रोजगार देने के चुनावी वायदें को पूरा करने की दिशा में बढ़ती दिख सके।

सरकार गठन के फौरन बाद अपने पहले आदेश में नीतीश सरकार ने ठेके पर बहाली के बारे में विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया है। बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने 17 नवंबर 2020 को सभी विभागीय प्रमुखों को पत्र लिखकर 2007 से खाली पदों की पूरी सूची भेजने का निर्देश दिया है। यह काम प्राथमिकता के आधार पर करने का निर्देश दिया गया है ताकि नियुक्तियां शीघ्र की जा सके।

विभागीय प्रमुखों को उन पदों का विवरण भी अलग से देने का निर्देश दिया गया है जिन पदों पर ठेके पर नियुक्ति नहीं की जा सकती। इसके साथ ही विभिन्न विभागों में पहले से ठेके पर काम कर रहे लोगों की सूची भी मांगी गई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी बिहार सरकार के विभिन्न विभागों में लगभग चार लाख से अधिक पद वर्षों से खाली पड़े हैं।

इसके अलावा सरकारी स्कूलों में चार लाख से अधिक संविदा पर कार्यरत शिक्षक, हजारों स्वास्थ्यकर्मी, ग्रामीण विकास विभाग में हजारों कर्मी और अन्य विभागों में संविदा पर कार्यरत कर्मचारी वर्षों से समान काम के लिए समान वेतन की मांग कर रहे हैं। पिछले साल इस मामले को लेकर कई बार आंदोलन हुए। शिक्षकों का मामला अदालत में भी पहुंचा। पर सरकार ने इसकी परवाह नहीं की।

चुनावी घोषणापत्र में राजद ने जहां 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वायदा किया, वहीं सरकार में हिस्सेदार भाजपा ने 19 लाख रोजगार देने का वायदा किया था। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू रोजगार के मुद्दे पर खामोश रही। पर बिहार में बेरोजगारी की भयानक समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। कोरोना-काल में हुई देशबंदी के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में रोजगार कर रहे लोगों के वापस लौट आने से यह समस्या अधिक विकराल हो गई।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार लगभग 21 लाख कामगर विभिन्न जगहों से वापस आए। उनकी आजीविका का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने की सारी सरकारी घोषणाओं के बावजूद कामगरों का वापस दूसरे राज्यों की ओर जाना आरंभ हो गया है।

देशबंदी के दौर में ही मुख्यमंत्री ने कई बार प्रवासी मजदूरों को आश्वासन दिया कि उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया कराया जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 22 मई के विडियो कांफ्रेंसिग के माध्यम से एकांतवास शिविरों में बाहर से आए कामगरों को संबोधित करते हुए यहीं रहने और अपने श्रम व कौशल से बिहार का विकास करने की अपील की। उन्होंने बाहर से आए सभी लोगों के रोजगार देने का निर्देश अधिकारियों को दिया।

नरेगा योजना के तहत काम देने के लिए शिविरों में ही जॉबकार्ड बनाने का निर्देश भी दिया गया। बाहर से आने वाले मजदूरों की कौशल-क्षमता जांचने के लिए बकायदा सर्वेक्षण आरंभ किया गया। उस समय मुख्यमंत्री का कहना था कि कौशल क्षमता की जांच इस गति से हो कि एकांतवास पूरा कर लेने वाले कामगरों को तत्काल काम पर लगाया जा सके।

इस बारे में उन्होंने मुख्यसचिव समेत विभिन्न वरीय अधिकारियों के साथ कई बार बैठकें की। मजदूरों के कौशल के आंकडे को स्कील डाटा बेस तैयार करने की बात भी सामने आई थी। पर उस कौशल जांच और स्कील डाटा बेस की आज क्या हालत है, यह कोई नहीं जानता।

बाद में जब चुनावों की डुगडुगी बजने लगी तब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के आहवान पर बेरोजगार नौजवानों ने ताली और थाली पीटकर अपनी बेरोजगारी ओर ध्यान खींचने की कोशिश की।

इस अभियान में वामपंथी पार्टियों के छात्र-संगठनों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। पांच सितंबर को शाम पांच बजे ताली-थाली पीटने के इस अभियान में सात लाख नौजवानों के हिस्सा लेने की जानकारी है। अब देखना यह है कि ठेके पर बहाली की सरकारी कवायद पर विपक्षी पार्टियों की प्रतिक्रिया क्या होती है।

First Published on: November 24, 2020 5:31 PM
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