
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर आयोजित रैलियों में भी लोगों को निराशा हाथ लगी है। मोदी ने बिहार के मतदाताओं को सासाराम और गया की चुनावी रैली में निराश किया है। महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित बिहारियों को प्रधानमत्री से कुछ ठोस भाषण की उम्मीद थी। लेकिन प्रधानमंत्री तो राष्ट्रवाद पर अटक गए। आर्टिकल 370 पर अटक गए।
ग्रैंड एलांयस ने इस बार एजेंडा फिक्स कर दिया है। ग्रैंड एलांयस ने 10 लाख लोगों को रोजगार देने के वादे को चुनावी मुद्दा बना दिया है। सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार को चुनावी मुददा बना दिया है। ये मुद्दा लोगों में जमकर बोल रहा है। उधर भाजपा और जद यू को इसका जवाब देने में काफी मुश्किल हो रही है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सासाराम और गया में अपने भाषण को राष्ट्रवादी मोड में रखा। क्योंकि उन्हें पता था कि बेरोजगारी और गरीबी के मुद्दे पर बिहार के मतदाताओं को समझाना मुश्किल है।
वाट्सएप और फेसबुक की दुनिया ने भारत सरकार की उपलब्धियों की पोल दी है। भूखमरी के इंडेक्स में भारत काफी नीचे है। वैसे में प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी भाषण को जंगलराज, आर्टिकल 370, गलवान घाटी तक सीमित रखा। मोदी के पास तेजस्वी यादव के 10 लाख लोगों को नौकरी दिए जाने के वादे का कोई मजबूत जवाब नहीं था। उन्होंने यही कहा कि ये नौकरियां रिश्वत लेने का माध्यम बनेगी।
गया में भाजपा एक निराश कार्यकर्ता एनडीए की खराब होती स्थिति के लिए अकेले नीतीश कुमार को जिम्मेवार नहीं मानते। नाम न बताने के शर्त पर भाजपा कार्यकर्ता बताते है कि गया में 28 अक्तूबर को चुनाव है। प्रधानमंत्री 23 अक्तूबर को गया में आए। उन्होंने नक्सली समस्या और जंगलराज पर अपना भाषण केंद्रित रखा। लेकिन इस समय गया शहर के लोगों को आलू 50 रुपये किलो खरीदना पड़ रहा है। प्याज 100 रुपये किलो खरीदना पड़ रहा है।
भाजपा कार्यकर्ता के अनुसार विपक्षी दल प्रचार कर रहे है कि मोदी जी ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवर्तन कर जमाखोरी को कानूनी रूप से वैध कर दिया है। आलू और प्याज में भी अडानी और अंबानी पैसे कमा रहे है। भाजपा के करीबी लोग पूरे देश में प्याज और आलू की होर्डिंग कर बैठे है। इसलिए आलू और प्याज की महंगाई बढ़ गई है। भाजपा कार्यकर्ता के अनुसार लोगों को जवाब देना मुश्किल हो गया है। भाजपा कार्यकर्ता आगे बताते है कि कोरोना के नाम पर सड़कों पर पुलिस जमकर चुनाव के दौरान भी लाठियां भांज रही है।
गया में प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषण में जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। उन्होंने गया के भाषण में नक्सली समस्या पर केंद्रित किया। गया नक्सल प्रभावित एरिया रहा है। हालांकि अब गया जिले में नक्सली काफी कमजोर पड़ गए है। गया के इमामगंज और बाराचट्टी इलाके में नक्सली सीमित हो गए है। स्थानीय पत्रकारों के अनुसार नक्सली समस्या बीते समय की बात हो गई है। क्योंकि गांवो में नक्सलियों के निशाने पर आने वाली ऊंची जातियां अब गरीबी से जूझ रही है।
पिछले बीस सालों में हालात में काफी बदलाव आए है। जो जातियां जमींदार मानी जाती थी उनकी जमीनें बंट गई है। सामंती कहे जाने वाले ऊंची जातियों के लोगों की आर्थिक हालात खराब है। ऊंची जातियों के युवा महानगरों में रोजगार की तलाश में जा रहे है। छोटे-मोटे काम को हासिल करने के लिए भी ऊंची जातियों के युवाओं को महानगरों में संघर्ष करना पड़ रहा है। वैसे में गया के भाषण में नक्सली समस्या को केंद्रित कर प्रधानमंत्री ने लोगों को निराश किया है।
एक पत्रकार के अनुसार नक्सली पहले के मुकाबले कमजोर है, वहीं नक्सिलयों के निशाने पर अब बड़े कारपोरेट घराने है, जिनका कामकाज बिहार के बजाए झारखंड में है। दरअसल सासाराम की रैली में भी प्रधानमंत्री ने रोजगार, भूखमरी, गरीबी आदि पर खास बात नहीं की। कोरोना से इससे सबसे ज्यादा प्रभावित बिहारी लोग हुए है। प्रधानमंत्री के अप्रत्याशित लॉकडाउन से सबसे ज्यादा परेशानी बिहारियों को हुई। स़ड़कों पर बिहार के प्रवासी लोग पुलिस की लाठियां खाते रहे। हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचे। कई बिहारियों की रास्ते में मौत हो गई। इस प्रधानमंत्री चुप रहे।
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 19 लाख रोजगार देने की घोषणा की है। अगर बिहार के लोगों ने उन्हें सत्ता दिया तो कोरोना की वैक्सीन भी फ्री में दी जाएगी। भाजपा ने यह वादा बिहार के लोगों से किया है। भाजपा के घोषणापत्र का मजाक भाजपा के स्थानीय नेता ही उड़ा रहे है। पटना पार्टी कार्यालय में अक्सर मौजूद रहने वाले एक भाजपा नेता अपने राष्ट्रीय नेताओं का मजाक उड़ाते हुए कहते है कि भाजपा के घोषणापत्र में 19 लाख लोगों को रोजगार देने की बात की गई है। अब लगता है कि बिहार के लोगों को भाजपा ने पूरी तरह से मूर्ख समझ रखा है।
भाजपा ने पहले 2 करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष रोजगार देने की घोषणा की थी। जैसे प्रति वर्ष देश भर में 2 करोड़ लोगों को सरकार ने रोजगार उपलब्ध करवाया है, वैसे ही बिहार में 19 लाख लोगों को रोजगार एनडीए सत्ता में आने के बाद देगी। कोरोना वैक्सीन मुफ्त में उपलब्ध करवाए जाने की बात का मजाक उड़ाते हुए भाजपा नेता कहते है कि लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों सें स्पेशल ट्रेनों में रेल मंत्रालय ने सामान्य से ज्यादा किराया वसूल लिया। जो लोग गरीब मजदूरों से महामारी में मुनाफा कमाते है वे लोगों को फ्री में वैक्सीन देंगे? अगर फ्री वैक्सीन जनता पर बड़ा अहसान है तो कांग्रेस को कभी हराना ही नहीं चाहिए। देश में अबतक कई जरूरी वैक्सीन कांग्रेस की सरकारों ने जनता को मुफ्त में उपलब्ध करवायी है।
बिहार के प्रति भाजपा का विशेष प्रेम तो इसी से दिखता है कि त्योहारों पर चलायी जा रही स्पेशल ट्रेनों में सामान्य से ज्यादा किराया रेलवे वसूल रही है। इसकी तुलना लालू यादव के कार्यकाल वाले रेल मंत्रालय से की जा रही है। लालू यादव ने एयरकंडिशन गरीब रथ एक्सप्रेस में लोगों राजधानी एक्सप्रेस से सस्ती यात्रा करवायी थी। आज सामान्य ट्रेन में सामान्य से ज्यादा किराया रेलवे वसूल रही है। आपदा में अवसर के नाम पर स्पेशल ट्रेन चलायी जा रही है। जब पटरी वही है, ट्रेन वही है जो इसे स्पेशल ट्रेन का नाम क्यों दिया जा रहा है ? सिर्फ लोगों से ज्यादा किराए वसूलने के लिए?
दरअसल एनडीए का सारा दारोमदार अब लव कुश समीकरण पर है। अति पिछड़े वोटों के वोटिंग प्रतिशत पर है। अभी भी भाजपा औऱ जद यू के पाले में अति पिछड़ा वोट है जो यादवों की आक्रमकता से चिढ़ता है। उन्हें इस बात की परशानी नहीं है कि तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते है। अति पिछड़ों की परेशानी यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद यादव जाति की आक्रमकता से है जिसका आसान शिकार अति पिछड़ी जातियां होती है।
नीतीश कुमार का यह आधार वोट अभी भी नीतीश कुमार के पास अच्छी संख्या में है। नीतीश कुमार और भाजपा की जीत-हार काफी हद तक लव-कुश (कुर्मी-कोयरी) की जोडी पर भी निर्भर करेगी। अगर लव-कुश की जोड़ी टूटी और कोयरी जाति निकल गई तो नीतीश-भाजपा गठबंधन की सत्ता हाथ से जा सकती है। क्योंकि भाजपा और नीतीश की कटटर समर्थक अगड़ी जातियों के वोटों में बिखराव तय है। अगड़ी जातियों ने जनता दल यूनाइटेड को खासा परेशान कर दिया है। भूमिहार भाजपा के विरोध मे नहीं है, लेकिन खुलकर जनता दल यूनाइटेड का विरोध कर रहे है।