पटना। अस्पताल के बिस्तर पर पड़े-पड़े रघुवंश बाबू दनादन चिट्ठियां लिख रहे हैं। इसबार उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश को तीन पत्र लिखे हैं जिसमें मनरेगा कानून में लंबित संशोधन करने, भगवान बुध्द का अस्थि-भस्म व स्मृति चिंन्ह वैशाली लाने और वैशाली में स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल द्वारा झंडा फहराने की व्यवस्था करने की मांग की है। मनरेगा कानून में संशोधन का मामला तो चुनाव-आचार संहिता लागू होने के पहले किया जाना चाहिए ताकि आमलोगों को इसका फायदा तत्काल मिलना शुरु हो सके।
अपने लेटरहेड पर लिखे इस पत्र में पूर्व केंन्दीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने हैं कि इन तीन कामों को वे पूरा नहीं कर पाए थे। मुख्यमंत्री के साथ ही उन्होंने सिंचाई मंत्री और प्रधान सचिव को भी पत्र लिखा है। पहला काम मनरेगा कानून में संशोधन से संबंधित है। यह कानून उन्हीं दिनों लागू हुआ था जब रघुवंश बाबू केंन्द्रीय ग्रामीण कार्य मंत्री थे। इसलिए उन्हें इस कानून का रचनाकार भी माना जाता है।
मनरेगा कानून में उल्लेख है कि ”सरकारी और एससी, एसटी की जमीन पर काम होगा”। अब इसमें अगर आम किसानों की जमीन पर भी काम होगा, जोड़ दिया जाए तो काफी फायदेमंद होगा। इससे किसानों को मजदूर गारंटी और मजदूरी सब्सिडी में कमी आएगी और सरकार का खर्च घटेगा। जैसे मुखिया से मजदूर काम मांगता है उसीतरह किसान भी मुखिया से मजदूर मांग सकेंगे। किसानों की जमीन के रकबा के आधार पर मजदूरों की संख्या निर्धारित की जा सकती है। मजदूरी में आधी सरकार और आधी मजदूरी किसान दे। यह कानून लागू करते समय ध्यान में नहीं आया और बाद में छूट गया। इसे करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी।
दूसरे पत्र में उन्होंने कहा है कि ”वैशाली जनतंत्र की जननी और विश्व का प्रथम गणतंत्र है। लेकिन सरकार ने इस लिहाज से कुछ विशेष नहीं किया है। मेरा आग्रह है कि जिसतरह झारखंड राज्य बनने से पहले 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पटना में और 26 जनवरी को रांची में राष्ट्र ध्वज फहराते थे। इसी प्रकार राज्यपाल 26 जनवरी को पटना में और 15 अगस्त को रांची में ध्वज फहराते थे। उसी तरह 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पटना में और राज्यपाल विश्व के प्रथम गणतंत्री वैशाली में राष्ट्रध्वज फहराने का निर्णय करें। इसी प्रकार 26 जनवरी को राज्यपाल पटना में और मुख्यमंत्री वैशाली गढ़ के मैदान में राष्ट्रध्वज फहराए। इसतरह एक इतिहास की रचना होगी क्योंकि वैशाली विश्व का प्रथम गणतंत्र है, उसे सम्मान प्राप्त होगा। इस आशय की सारी सरकारी औपचारिकताएं पहले ही पूरी की जा चुकी हैं। फाइल मंत्रिमंडल सचिवालय में लंबित है। केवल पुरातत्व सर्वेक्षण से अनापत्ति प्रमाण पत्र आना बाकी था, जो आ गया है। आग्रह है कि इसे इस वर्ष से आरंभ किया जाए। वैशाली गढ़ के मैदान में दस-बारह वर्षों से राष्ट्रध्वज फहराया जा रहा है। उसे सरकारी समारोह बनाने हेतु शीघ्र निर्णय कर दें।
भगवान बुद्ध की अस्थि अवशेष की स्थापना हेतु वैशाली में 432 करोड़ की जमीन अर्जित कर 3-4 सौ करोड़ का स्तूप का निर्माण आपकी पहल पर हो रहा है। झंडा फहराया जाना आरंभ होने से विश्व में संदेश जाएगा कि विश्व के प्रथम गणतंत्र को समुचित सम्मान मिल रहा है।
रघुवंश बाबू की तीसरी मांग भगवान बुद्ध का पवित्र भिक्षापात्र अफगानिस्तान के कंधार से वैशाली लाने के बारे में है। लोकसभा में शून्यकाल में मेरे सवाल पर विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने लिखित उत्तर में कहा कि भगवान बुद्ध का पवित्र भिक्षापात्र अब कंधार में नहीं, सुरक्षा कारणों से काबुल म्यूजियम में रखा हुआ है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के माध्यम से उसे वैशाली लाया जाएगा। भगवान बुद्ध ने अंतिम वर्षावास में वैशाली छोड़ने के समय अपना भिक्षापात्र वैशालीवालों को दे दिया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की लाल फीताशाही और गुटबंदी के कारण पर्याप्त साक्ष्य नहीं होने का बहाना बनाकर मामले को ठप करवा दिया गया, जबकि अफगानिस्तान काबुल म्यूजियम भगवान बुद्ध को भिक्षापात्र लिख कर स्वीकार कर रहा है।
रघुवंश बाबू के तीनों मांग जायज लगते हैं और दूसरी पार्टी का सरकार से भी इसकी मांग करने में पहली नजर में कोई एतराज नहीं दिखता। पर विपक्षी पार्टी के वरीय नेता का अपनी पार्टी से इस्तीफा देने के तुरंत बाद इस मांग को लेकर पत्र लिखने के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।
इसबीच, रघुवंश बाबू के इस्तीफे को लेकर बिहार के राजनीतिक हलकों में विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। खासतौर से एनडीए नेताओं ने इसे लेकर राजद में बुजुर्गों के सम्मान नहीं होने का आरोप लगाते हुए पार्टी के नए नेताओं को घेरा है। जदयू नेता व सांसद लल्लन सिंह ने कहा है कि रघुवंश बाबू ने इस्तीफा देकर अपना सम्मान बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि बिहार के सम्मान की बात करने वाला राजद अपनी पार्टी के धरोहर का ही सम्मान नहीं कर सका, यह इस्तीफा यहा बता रहा है। भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा कि यह तो होना ही था। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार तेजप्रताम में उन्हें समुद्र में एक लोटा पानी कहा, उससे अधिक अपमानजनक बात क्या हो सकती है। जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि राजद के वरीय नेताओं का लालू के पुत्र अपमान करते रहे हैं, ऐसे में उस पार्टी में रहना आत्मसम्मान खोना ही है। यही कारण है कि राजद के अधिकतर विधायक जदयू और नीतीश कुमार की ओर टकटकी लगाकर देख रहे हैं।
