पटना। दिल मिले या न मिले हाथ जरूर मिलना चाहिए। बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा औऱ जनता दल यूनाइटेड के बीच संबंध कुछ इसी मिजाज का है। टिकटों का बंटवारा हो गया है। दोनों दलों के बीच सीटों का बंटवारा सफलतापूर्वक हो गया है। एनडीए गठबंधन ने प्रेस कांफ्रेंस कर एकजुटता भी दिखायी है। लेकिन दोनों दलों के बीच तल्खी साफ दिख रही है। बंद कमरे में गठबंधन के नेताओं के बीच हुई बैठकों को लेकर कई बातें हो रही है। कई अफवाहें भी उड़ रही। खैर सच्चाई तो बैठकों में भाग लेने वाले नेता ही बता सकते है। अफवाहें तो राजनीति में उड़ती रहती है।
एक चर्चा यह है कि बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को भाजपा के कुछ नेता बक्सर से ही भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़वाने चाहते थे। चूंकि गुप्तेश्वर पांडेय डीजीपी पद से इस्तीफा देने के बाद जद यू में शामिल हो गए थे और उन्हें उम्मीद थी कि नीतीश कुमार उनके लिए बक्सर की सीट भाजपा से छुड़वा लेगी, इसलिए वे बेफिक्र थे। लेकिन मौके पर खेल हो गया। भाजपा ने बक्सर विधानसभा सीट जद यू के कोटे में नहीं छोड़ी। दरअसल भाजपा में कई नेता किसी भी कीमत पर गुप्तेश्वर पांडेय को बक्सर से चुनाव लड़ने से रोकना चाहते थे। जब भाजपा ने यह जद यू के लिए सीट नहीं छोड़ी तो भाजपा में बैठे गुप्तेश्वर पांडेय के शुभचिंतकों ने उन्हें भाजपा से टिकट दिलवाने की कोशिश की।
लेकिन मौके पर बक्सर के सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे गुप्तेश्वर पांडेय के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठ गए। चौबे ने साफ कहा कि गुप्तेश्वर पांडेय को बक्सर से टिकट किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए। चौबे को गुप्तेश्वर पांडेय की महत्वकांक्षा की जानकारी थी। चौबे को पता था कि एक बार पांडेय चुनाव जीतकर अगर विधानसभा में पहुंच गए तो अगली दावेदारी उनकी बक्सर लोकसभा सीट पर होगी। क्योंकि वे वही गुप्तेश्वर पाडेंय है जो 2009 में बक्सर से भाजपा के तत्कालीन ताकतवर सांसद लालमुनी चौबे का लोकसभा टिकट उड़ाने की स्थिति में पहुंच गए थे। चौबे की टिकट अटल बिहारी वाजपेयी के हस्तक्षेप से बची। अश्विनी चौबे ने डीजीपी पांडेय की जगह बिहार पुलिस के एक कांस्टेबल को बक्सर से भाजपा का उम्मीदवार बनवा दिया।
पहले फेज के चुनाव के लिए हुए टिकट वितरण में महागठबंधन ने समाजिक संतुलन को पूरी तरह से साध लिया है। एनडीए सामाजिक संतुलन साधने में महागठबंधन से पिछड़ गया है। महागठबंधन के टिकट बंटवारे ने मैसेज दिया है कि वे बिहार में फारवर्ड-बैकवर्ड की राजनीति के बजाए सबको साधने की राजनीति करना चाहते है। महागठबंधन में कांग्रेस को ऊंची जातियों को साधने की जिम्मेवारी दी गई है। कांग्रेस ने अपने हिस्से में आई सीटों पर ऊंची जातियों से संबंधित उम्मीदवारों को एडजस्ट किया है। महागठबंधन में शामिल सीपीआई और सीपीएम ने भी टिकट बंटवारे में अगड़ी जातियों को एडजस्ट किया है। वहीं सीपीआई एमएल ने पिछड़े और दलित उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।
उधर राजद ने विशेष तौर पर यादव, राजपूत और कुशवाहा जाति को टिकट बंटवारे में संतुलित करने की कोशिश की है। उपेंद्र कुशवाहा के महागठबंधन से निकलने के बाद कुशवाहा जाति को भी राजद ने महत्व दिया है। गया जिले में महागठबंधन ने कायस्थ और वैश्य जाति से संबंधित उम्मीदवार भी उतारे है। इससे एनडीए परेशान है। अभी तक एनडीए गठबंधन दक्षिण बिहार में कायस्थों और वैश्यों का ज्यादातर वोट लेता रहा है। बेशक एनडीए में उन्हें टिकट बंटवारे में प्रतिनिधित्व न मिले।
गया शहर विधानसभा से महागठबंधन ने एनडीए के अति पिछड़ी जाति से संबंधित बिहार के मंत्री प्रेम कुमार के खिलाफ कायस्थ जाति के मोहन श्रीवास्तव को उतार दिया है। श्रीवास्तव गया के डिप्टी मेयर है। एनडीए की बड़ी परेशानी शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र है जहां राष्ट्रीय जनता दल ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की कार्यकर्ता मंजू अग्रवाल को टिकट दिया है। भाजपा से टिकट न मिलने के कारण मंजू अग्रवाल 2010 और 2015 में शेरघाटी विधानसभा से निर्दलीय लड़ी थी औऱ थोडे वोटों से ही दोनों बार हार गई थी। गया जिले में जहां एनडीए ने सिर्फ अगड़ी जाति के दो उम्मीदवार दिए है वहीं महागठबंधन ने अगड़ी जाति के चार उम्मीदवार उतारे है।
बिहार विधानसभा चुनावों की घोषणा के बाद भाजपा और जद यू के बीच अविश्वास साफ दिख रहा है। एनडीए गठबंधन के दल एक दूसरे को हराने के लिए जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार उतार रहे है। क्योंकि अंतिम समय में बिहारी मतदाता जातीय आधार पर ही वोट करते है। इसलिए बिहार में एनडीए से बाहर हो गई लोजपा ने जद यू की हार तय करने के लिए जद यू के पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों के खिलाफ अगड़ी जाति के उम्मीदवार खड़े कर दिए है। हालांकि इस तरह की परेशानी का सामना अब भाजपा को भी करना पड़ रहा है। लोजपा का गुणा-गणित एनडीए को मिलने वाले अपर कास्ट वोटों मे सेंध लगा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों को अनुमान है कि इससे जद यू को भारी नुकसान की संभावना है।
गया के अतरी विधानसभा क्षेत्र में जद यू की यादव महिला उम्मीदवार के खिलाफ लोजपा ने राजपूत उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में जद यू के कुशवाहा उम्मीदवार के खिलाफ लोजपा ने भूमिहार उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। टेकारी विधानसभा क्षेत्र में एनडीए के भूमिहार जाति के उम्मीदवार के खिलाफ लोजपा ने भूमिहार उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। जहानाबाद शहर विधानसभा क्षेत्र में जद यू के कुशवाहा उम्मीदवार के खिलाफ लोजपा ने भूमिहार उम्मीदवार खड़ा कर दिया है। औरंगाबाद जिले के ओबरा विधानसभा क्षेत्र में लोजपा ने जद यू के यादव उम्मीदवार के खिलाफ वैश्य समुदाय का उम्मीदवार खड़ा कर दिया है।
भाजपा की परेशानी भी कम नहीं है। भाजपा को अपने ही कई मजबूत बागियों का सामना करना पड़ रहा है। उधर नीतीश कुमार भाजपा के खेल को समझ चुके है। इसलिए नीतीश किसी भी कीमत पर भाजपा को छोटे भाई की भूमिका में ही रखने की कोशिश करेंगे। इसके लिए कई जगहों पर वे भाजपा को हराने की कोशिश करेंगे। भाजपा खेमा के नेता दबी जुबान से स्वीकार कर रहे है कि नीतीश कुमार भी भाजपा की कई सीटों पर खेल करेंगे। नीतीश कुमार के एक नजदीकी नौकरशाह जिनकी अपनी जाति में खासी पकड़ है, पटना शहर में अपने स्वजातीय समर्थकों को भाजपा के खिलाफ वोट डालने का संकेत दे चुके है।
बाढ़ और बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की जीत और हार नीतीश कुमार का वोट बैंक ही तय करेगा। उतर बिहार के कुछ जिले जहां कुर्मी और धानुक मौजूद है वहां भी भाजपा की किस्मत नीतीश ही तय करेंगे। कई और विधानसभा में नीतीश कुमार का खेल संभव है। औरंगाबाद जिले के गोह विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ नीतीश के दल के पूर्व विधायक रणविजय सिंह उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से ताल ठोक रहे है। गोह में भाजपा के उम्मीदवार भी रणविजय सिंह की जाति के है। इससे भाजपा मे घबराहट है।
भारतीय जनता पार्टी के नेता दबी जुबान से स्वीकार कर रहे है कि अगर नीतीश ने भाजपा का नुकसान तय कर लिया तो नुकसान होगा। भाजपा को कुछ सीटों पर अपने मजबूत बागियों का सामना करना पड़ रहा है। पटना जिले के विक्रम विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के एक पूर्व विधायक अपने ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ खड़े है। अरवल विधानसभा क्षेत्र में अपने भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ भाजपा के पूर्व विधायक खड़े हो गए है।