बिहार में कोरोना संक्रमण की भयावहता और जेडीयू-भाजपा सरकार का नकारापन


कोरोना संक्रमण बिहार में तेजी से फैला क्योंकि कोरोना काल के दौरान भाजपा के कार्यकर्ता नेता आम लोगों से मिलते रहे और कोरोनावायरस बांटते रहें। यदि सचमुच बिहार में डब्ल्यूएचओके निर्देशों का पालन किया गया होता, तो अन्य प्रदेशों की तरह बिहार में भी करोना की स्थिति भयावह नहीं होती।



सरकारी आंकड़ों के अनुसार कोरोना के कारण बिहार में अभी तक तीन सौ लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीमारी की चपेट में अभी तक 46000 लोग आ चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहर तक लोग परेशान हैं। मेडिकल सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। और तो और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बिहार के मेडिकल सेवा से विश्वास उठ चुका है। यही कारण है कि उन्होंने अपने सरकारी आवास पर अलग से कोरोना अस्पताल का निर्माण करवा लिया है। मुख्यमंत्री आवास पर बनाए गए करुणा अस्पताल में मुख्यमंत्री के अलावा उनके सगे-संबंधियों का इलाज सुनिश्चित किया गया है।  

इस समय राज्य की सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य विभाग है। स्वास्थ्य विभाग में अभी तक दो अधिकारियों को बदला जा चुका है। अब तीसरे अधिकारी प्रत्यय अमृत विभाग को देख रहे हैं। बिहार की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे बिहार भाजपा के अध्यक्ष भी रहे हैं। जानकार सूत्रों से जो खबरें मिली है उस पर यदि भरोसा करें तो बिहार में स्वास्थ्य विभाग में जितनी भी समस्याएं हैं उसके लिए केवल स्वास्थ्य मंत्री जिम्मेदार है। अभी हाल ही में संपन्न कैबिनेट की बैठक में स्वास्थ्य मंत्री ने साफ-साफ कहा की चुकी स्वास्थ्य सचिव हमारी बात नहीं मान रहे हैं इसीलिए इन्हें अविलंब विभाग से विमुक्त कर दिया जाए। मंत्री के कहने पर मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य सचिव को हटाकर उसकी जिम्मेवारी प्रत्यय अमृत को सौंप दिया। बावजूद इसके कोरोना में कोई सुधार नहीं है।

कोरोना संक्रमण के बाद जहां एक ओर पड़ोसी राज्य झारखंड और उत्तर प्रदेश अपने प्रवासियों को बुलाने के लिए केंद्र सरकार से बार-बार निवेदन कर रही थी वही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी प्रवासियों को वुलाने में ना नुकर करते रहे। इसका परिणाम यह हुआ की प्रवासी मजदूर पैदल ही बिहार की ओर प्रस्थान कर गए। कई मजदूर भूख प्यास और कई दुर्घटना के कारण रास्ते में ही मर गए। बाद में लौटने वाले मजदूर करोना के संवाहक भी बने। उस दौरान नीतीश सरकार ने नया स्कीम निकाला जो भी बाहर से लोग आए बिना किसी मेडिकल जांच के कोरोना केन्द्र भेज दिए गए। 

कोरोना केन्द्र में ना तो मेडिकल सुविधा है और ना ही जांच की कोई व्यवस्था है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में 25 लाख प्रवासी, ट्रेन के माध्यम से और 10 लाख प्रवासी, खुद की व्यवस्था से बिहार लौटे लेकिन यह आंकड़ा प्रामाणिक नहीं है। विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों से प्राप्त सूचना में बताया गया है की बिहार में कम से कम 50 लाख प्रवासी लौटे। जो लौटे उसमें से किसी का मुकम्मल तौर पर कोरोना टेस्ट नहीं किया गया। कोरोना केंद्र से बाहर जाने वालों का भी टेस्ट नहीं किया गया। बिना टेस्ट के ही वे सभी अपने घर चले गए। ऐसे में जो कोरोना लेकर बाहर से आए वे कोरोना संक्रमण के अग्रदूत बन गए। वही गलती अब कोरोना मरीज बनकर सामने आ रहा है। 

बिहार सरकार को इसकी सूचना पहले से थी लेकिन सरकार ने इसके लिए कोई योजना नहीं बनाई। इस मामले में सबसे गंभीर बात यह है कि कोरोना कालखंड में भारतीय जनता पार्टी जो सरकार के साथ गठबंधन में शामिल है उसने आने वाले समय में विधानसभा चुनाव की तैयारी प्रारंभ कर दी। बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं का लोगों से मिलना जुलना हुआ। यही नहीं कोरोना काल में भाजपा के कार्यकर्ता बिना किसी चिकित्सकीय निर्देश के लोगों से मिलते रहे और पार्टी के द्वारा दिए गए कार्यों जैसे डिजिटल रैली, मोदी आहार आदि का कार्य करते रहें। इसके कारण बड़े पैमाने पर भाजपा के कार्यकर्ता और नेता भी कोरोना से संक्रमित हुए।

यह संक्रमण समाज में भी तेजी से फैला क्योंकि कोरोना काल के दौरान भाजपा के कार्यकर्त नेता आम लोगों से मिलते रहे और कोरोना वायरस बांटते रहें। यदि सचमुच बिहार में डब्ल्यूएचओ के निर्देशों का पालन किया गया होता, तो अन्य प्रदेशों की तरह बिहार में भी करोना की स्थिति भयावह नहीं होती। लेकिन बिहार के कुछ उत्साही नेता इस बात से अनभिज्ञ रहे और करोना काल में भी सामान्य दिनों की तरह काम करते रहे।   

यदि सरकार कोरोना के प्रति गंभीर होती तो बिहार में जितने भी निजी अस्पताल हैं, उनको एक फरमान जारी कर यह कह सकती थी कि सभी अस्पतालों में अब कोरोना के मरीजों का निशुल्क इलाज किया जाएगा। सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का घोर अभाव है। बिहार सरकार अगर जल्द इस ओर ध्यान नहीं देती है तो बिहार की स्थिति और ज्यादा भयावह होगी और इसका खामियाजा केवल जनता को ही नहीं सरकार को भी उठाना पड़ेगा।