पटना। बिहार विधानसभा के इन चुनावों में दलित और महिला वोटरों का रुख निर्णायक हो गए हैं। इन दोनों समूहों के वोट पिछले कई चुनावों से जदयू को मिलते रहे हैं। पर क्या इसबार भी ऐसा हो सकेगा। परिस्थितियां इसके विपरीत हैं। महिलाओं की स्थिति अधिक विकट है। पंचायतों में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण देने और शराबबंदी की वजह से महिलाओं में नीतीश कुमार लोकप्रिय हो गए थे। पर लोकप्रियता में गिरावट के कई कारण दिखते हैं।
शराबबंदी के बावजूद गांव-गांव में शराब उपलब्ध होना वल्कि उसकी होम डिलिवरी शुरू हो जाने से इसे लेकर मिली लोकप्रियता में निश्चित रूप से गिरावट आई है। नीतीश सरकार ने पहले तो शराब की बिक्री को खूब बढ़ावा दिया, गांव-गांव में लाइसेंसी दुकानें खुल गई। जब इसे लेकर विरोध व्यापक हुआ तो पिछले चुनाव में इसे बंद करने घोषणा की और सरकार बनने ही शराबबंदी कानून को लागू कर गिया। इससे अवैध कारोबार को बढ़वा मिला, इसमें कोई संदेह नहीं। जिसे नियंत्रित करना काफी कठिन होगा। सरकारी राजस्व में हजारों करोड़ रुपयों का नुकसान अलग से हुआ।
पंचायतों में महिला आरक्षण तो पूरे देश में लागू हुआ, बिहार में पहले और थोड़ा अधिक है, यह सही है। पर क्या महिला जन प्रतिनिधियों को स्वतंत्र निर्णय लेने की सुविधा मिल सकी। उत्तर नकारात्मक होगा क्योंकि सरकारी अमले संबंधित महिलाओं के घर के पुरुष-पति या पुत्र से ही काम निकालते हैं। इसी तरह आशाकर्मियों को वेतनभत्ते का भुगतान नहीं होना, नियोजित शिक्षकों को समान वेतन के लिए लंबा आंदोलन करना भी महिलाओं के बीच सरकार के अलोकप्रिय होने के कारण हो सकते हैं।
इन सबसे बढ़कर बालिका-गृहों में बालिकाओं के साथ अत्याचार-यौनाचार का मामला उजागर होना, उसे दबाने की हर प्रकार से कोशिश करना, मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर को आजीवन कारावस हो जाने के बाद भी उसके सहायक रहे आला अधिकारियों और राजनेताओं को बचाने की कोशिशें लगातार जारी रही। तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के खिलाफ बेहद कमजोर मामला दर्ज करना औऱ छूट जाने पर फिर पार्टी उम्मीदवार बना देने से भी महिलाओं में नाराजगी है। उपरोक्त सभी मुद्दों को विपक्षी पार्टियां अपने प्रचार-अभियान में शामिल कर रही हैं। बालिका-गृह मामले को लेकर नीतीश सरकार से अधिक नाराजगी है।
महिलाओं के मुद्दे पर पहलटवार करते हुए नीतीश कुमार ने लालू यादव को घेरने की कोशिश की है। कहा है कि अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बनाने के अलावा लालू ने महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया है। कोई नाम लिए बिना नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि जो लोल राजनीति का क,ख भी नहीं जानते, वे भी दिन-रात आरोप लगा रहे हैं। उनका इशारा राजद के तेजस्वी यादव और लोजपा के चिराग पासवान की ओऱ था।
वैसे अभी कई महिला संगठन राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग लेकर भी एनडीए के विरोध में मुखर हैं। संसद और विधानसभाओं में 30 से लेकर 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग लेकर महिला संगठन शक्ति की ओर से विभिन्न राजनीतिक दलों के जुड़ी महिलाओं की परिचर्चा में यह मांग जोरदार तरीके से उठी। उनका कहना है कि विधायिका में महिलाओं की संख्या यथेष्ट नहीं होने से उनसे जुड़े मुद्दों पर ठीक से विचार नहीं हो पाता। सुरक्षा का मामला भी उपेक्षित रह जाता है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इन चुनावों में महिला मतदाताओं का रुख क्या होता है। पिछले तीन चुनावों से नीतीश कुमार के पक्ष में वोट करती रही महिलाएं इसबार भी उन्हें ही पसंद करती हैं या किसी युवा नेता का पक्ष लेती हैं।