अनुपमा गुलाटी मर्डर केस: पति राजेश को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, उम्रकैद की सजा बरकरार

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देहरादून के बहुचर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पति और सॉफ्टवेयर इंजीनियर रहे राजेश गुलाटी की आपराधिक अपील खारिज कर दी है। बुधवार को दिए गए फैसले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पूरी तरह सही ठहराया और उसमें किसी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि भले ही इस मामले में कोई प्रत्यक्षदर्शी या सीधे सबूत मौजूद न हों, लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य आपस में पूरी तरह जुड़े हुए हैं और एक स्पष्ट श्रृंखला बनाते हैं, जो आरोपी की ओर ही इशारा करती है। कोर्ट के मुताबिक मृतका की गुमशुदगी, आरोपी द्वारा अलग-अलग लोगों को दिए गए विरोधाभासी बयान, उसके घर से शव की बरामदगी और जंगल से शरीर के अंगों की बरामदगी जैसे तथ्य मिलकर यह साबित करते हैं कि अपराध राजेश गुलाटी ने ही किया।

कोर्ट ने विशेष रूप से इस सवाल को अहम माना कि आरोपी यह स्पष्ट करने में पूरी तरह असफल रहा कि उसकी पत्नी का शव उसी के घर में रखे डीप फ्रीजर से कैसे बरामद हुआ। अदालत ने कहा कि इस तथ्य का कोई संतोषजनक जवाब आरोपी की ओर से नहीं दिया गया, जिससे उस पर संदेह और गहराता है।

मामले के अनुसार, 17 अक्टूबर 2010 की रात देहरादून में किराए के मकान में रहने वाले राजेश गुलाटी और उसकी पत्नी अनुपमा के बीच मामूली कहासुनी हुई थी। आरोप है कि गुस्से में राजेश ने अनुपमा को थप्पड़ मार दिया, जिससे उसका सिर दीवार से टकराया और वह बेहोश हो गई।

इसके बाद डर के चलते आरोपी ने रुई और तकिए से गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। अगले दिन उसने शव को 72 टुकड़ों में काटा, पॉलिथीन बैग में पैक कर डीप फ्रीजर में छिपा दिया और बाद में शहर के अलग-अलग इलाकों तथा जंगल में शरीर के हिस्से फेंक दिए।

घटना के बाद राजेश ने बच्चों और पड़ोसियों को यह कहकर गुमराह किया कि अनुपमा दिल्ली चली गई है। लेकिन मृतका के भाई सूरज कुमार प्रधान को शक हुआ। 12 दिसंबर 2010 को जब उन्होंने राजेश से बहन के बारे में सवाल किए और संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो पुलिस में गुमशुदगी दर्ज कराई गई।

जांच के दौरान आरोपी ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल किया और उन स्थानों पर भी ले गया, जहां उसने शव के टुकड़े फेंके थे। इसके आधार पर वर्ष 2017 में देहरादून की निचली अदालत ने राजेश गुलाटी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

हाईकोर्ट में अपील के दौरान आरोपी के वकील ने दलील दी कि घर से शव की बरामदगी संदिग्ध है, डीप फ्रीजर को देर से सीज किया गया और न तो फिंगरप्रिंट रिपोर्ट पेश की गई और न ही कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद है। वकील ने हत्या के मकसद पर भी सवाल उठाए। हालांकि, हाईकोर्ट ने इन सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य इतने मजबूत हैं कि आरोपी की दोषसिद्धि में कोई संदेह नहीं रह जाता।



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