विकास दुबे एनकाउंटर: 35 साल का ‘साम्राज्य’ महज आठ दिन में ध्वस्त


मात्र 17 साल की उम्र में विकास दुबे ने वर्ष 1985 में जरायम की दुनिया में प्रवेश किया था। कानपुर जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी दूर चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव का मूल निवासी विकास 1986 में गांव से शहर आया और वहां छात्र राजनीति के बहाने दबंगई करने लगा। इस दौरान सफेदपोश लोगों के बूते शहर से लेकर गांव तक उसने दहशत का माहौल बनाया।


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लखनऊ। कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की जघन्य हत्या करने वाले कुख्यात अपराधी विकास दुबे ने अपने जिस साम्राज्य को 35 साल में खड़ा किया था, वह महज नौ दिन में शुक्रवार को उसके एनकाउंटर के साथ ही ध्वस्त हो गया।  मात्र 17 साल की उम्र में विकास दुबे ने वर्ष 1985 में जरायम की दुनिया में प्रवेश किया था। कानपुर जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी दूर चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव का मूल निवासी विकास 1986 में गांव से शहर आया और वहां छात्र राजनीति के बहाने दबंगई करने लगा। इस दौरान सफेदपोश लोगों के बूते शहर से लेकर गांव तक उसने दहशत का माहौल बनाया।

वर्ष 1994 में उस पर कन्नौज के एक किसान की हत्या का आरोप लगा। इसके बाद क्षेत्र के नौजवानों को अपनी दबंगई के सफर में शामिल करके वह विवादित जमीनों पर कब्जा कर सम्पत्ति अर्जित करने लगा। जमीनी विवाद में ही उसने वर्ष 2000 में अपने गुरु और कानपुर देहात के शिवली स्थित इंटर कालेज के सहायक प्रबंधक की हत्या कर दी। इसके एक साल बाद शिवली थाने के अंदर ही प्रदेश के तत्कालीन दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री और भाजपा नेता संतोष शुक्ला को सरेआम मौत के घाट उतारा।  

ये है नौ दिन का घटनाक्रम
1- दो जुलाई की रात दुर्दांत अपराधी विकास दुबे के गांव बिकरू में क्षेत्राधिकारी और थानाध्यक्ष समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या
2- तीन जुलाई को विकास दुबे के मामा प्रेम प्रकाश पांडेय और चचेरे भाई अतुल दुबे पुलिस मुठभेड़ में ढेर
3- चार जुलाई को विकास का बिकरू गांव स्थित किलानुमा मकान जमींदोज। चौबेपुर के थानाध्यक्ष विनय कुमार तिवारी मुखबिरी के आरोप में निलंबित

4- पांच जुलाई को पुलिस ने विकास के करीबी दयाशंकर उर्फ कल्लू अग्निहोत्री को मुठभेड़ में दबोचा। 

उसने दो जुलाई की पूरी साजिश का खुलासा किया। थानाध्यक्ष से गठजोड़ की बात भी बताई।
5- छह जुलाई को पुलिस ने अमर की मां और दयाशंकर की पत्नी समेत तीन को गिरफ्तार किया। दो जुलाई की घटना के दौरान पीठ दिखाकर भागने वाले दो दरोगा निलंबित। शहीद क्षेत्राधिकारी का पत्र वायरल हुआ।
6- सात जुलाई को विकास को दबोचने के लिए फरीदाबाद के एक होटल में छापा। वहां न मिलने पर दिल्ली व नोएडा में घेरबंदी। शहीद क्षेत्राधिकारी का पत्र वायरल होने के क्रम में कानपुर के पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का तबादला। चौबेपुर थाने के सभी पुलिसकर्मियों को लाइन भेजा गया।  
7- आठ जुलाई को एसटीएफ ने विकास के भतीजे अमर दुबे को मार गिराया। प्रभात मिश्रा समेत कई बदमाश गिरफ्तार। चौबेपुर के निलंबित थानाध्यक्ष विनय कुमार तिवारी और हलका प्रभारी केके शर्मा भी मुखबिरी के आरोप में गिरफ्तार कर भेजे गये जेल।
8- नौ जुलाई को दुर्दांत विकास दुबे उज्जैन से गिरफ्तार किया गया। कानपुर और इटावा में मुठभेड़ के दौरान प्रभात मिश्रा और प्रवीन दुबे मारे गए। इसी दिन विकास की पत्नी और बेटे को लखनऊ से हिरासत में लिया गया।
9- दस जुलाई को मध्य प्रदेश से कानपुर लाते वक्त विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया।

इसके बाद विकास दुबे पर वर्ष 2002 में शिवली नगर पंचायत के तत्कालीन अध्यक्ष के घर पर बमबाजी करने का आरोप लगा। वर्ष 2004 में एक व्यापारी दिनेश दुबे की हत्या में भी इसका नाम सामने आया। इस बीच विकास ने नेताओं और अधिकारियों से गठजोड़ कर अपने दुस्साहसिक साम्राज्य का जमकर विस्तार किया। 

बताया जाता है कि वर्ष 2005 से 2020 तक उसने अकूत सम्पत्ति जुटाई। कानपुर के अलावा राजधानी लखनऊ और देश के अन्य महानगरों में भी उसके आलीशान मकान व फ्लैट होना बताये जाते हैं। इस दौरान राजनीति में भी उसने अपनी दखल बढ़ाई। क्षेत्र में ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक बगैर उसकी मर्जी के नहीं चुने जाते थे।

विकास का क्रूरतम रूप दो जुलाई की रात देखने को मिला, जब उसे पकड़ने के लिए गांव पहुंची पुलिस टीम पर उसने अपने गुर्गों के साथ हमला कर दिया। इस हमले में क्षेत्राधिकारी और थानाध्यक्ष समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। सूबे में शायद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में पुलिस वाले किसी मनबढ़ अपराधी द्वारा मारे गये।

करीब 71 मुकदमे फिर भी रहा बेखौफ

पुलिस रिकार्ड के अनुसार करीब 35 साल के आपराधिक सफर में विकास के खिलाफ 71 मुकदमे दर्ज हुए। इनमें हत्या, अपहरण, लूट, डकैती और हत्या के प्रयास जैसे जघन्य अपराध भी शामिल हैं। बावजूद इसके उसका कोई बाल-बांका न कर सका। प्रदेश में जिस दल की भी सरकार रही हो उसका दबदबा सदैव बरकरार रहा। तमाम अधिकारियों को भी वह और उसके लोग उपकृत करते रहे। नतीजा यह हुआ कि साक्ष्यों के अभाव में कई संगीन अपराधों में वह कोर्ट से भी बरी भी हो गया।

एनकाउंटर पर उठ रहे सवाल

विकास दुबे गुरुवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर से पकड़ा गया। गिरफ्तारी के महज 24 घंटे के अंदर उसे पुलिस ने मुठभेड़ में ढेर कर दिया। हालांकि इस मुठभेड़ में चार पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं, लेकिन विपक्ष इस एनकाउंटर को लेकर सवाल खड़ा कर रहा है। विपक्ष के नेता सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच की मांग भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ दो जुलाई की रात शहीद हुए आठ पुलिसकर्मियों के परिजन विकास के अंत को लेकर संतोष व्यक्त कर रहे हैं।  

पुलिस ने विकास के पहले उसके गैंग के पांच सदस्यों को भी मुठभेड़ में मार गिराया है। दो जुलाई की घटना के कुछ घंटे के अंदर ही पुलिस ने विकास के मामा प्रेम प्रकाश पांडेय और चचेरे भाई अतुल दुबे को ढेर किया था। इसके बाद एसटीएफ ने उसके भतीजे अमर दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया। फिर गुरुवार को 50-50 हजार के इनामी प्रभात मिश्र और प्रवीन दुबे ढेर किया । पुलिस ने विकास के कई साथियों को गिरफ्तार भी किया है। चौबेपुर के निलंबित थानाध्यक्ष विनय कुमार तिवारी और हलका प्रभारी केके शर्मा भी मुखबिरी के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजे जा चुके हैं।

प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था प्रशांत कुमार का कहना है कि दो जुलाई की घटना के संबंध में विकास दुबे समेत छह नामजद अभियुक्त अभी तक मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं और तीन को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि इस मामले में 21 लोगों को नामजद किया गया था। ऐसे में पुलिस को अभी विकास दुबे गैंग के कई और सदस्यों की तलाश है।