तेल, गैस क्षेत्र के विवादों को समिति के जरिये सुलझाने की सरकार की पहल को लेकर कंपनियां उदासीन

सरकार सिर्फ यह तय नहीं कर रही है कि विवाद का हल कैसे होगा, बल्कि वह विवाद समाधान समिति में सदस्यों की नियुक्ति भी कर रही है और नियम और शर्ते की भी तय कर रही है।

नई दिल्ली। तेल एवं गैस क्षेत्र में अनुबंध से संबंधित विवादों का सरकार द्वारा विशेषज्ञ समिति के जरिये समयबद्ध तरीके से हल निकालने की पहल कंपनियों को आकर्षित नहीं कर सकती है। सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि इस तरह की प्रक्रिया में हितों के टकराव को देखते हुए बहुत अधिक लोग इसके पक्ष में नहीं हैं।

विवादों के लंबित रहने की वजह से निवेश प्रभावित हो रहा है।

सरकार ने पिछले साल दिसंबर में बाहर के प्रतिष्ठित लोगों/विशेषज्ञों की समिति का गठन किया था। इसमें पूर्व पेट्रोलियम सचिव जी सी चतुर्वेंदी, ऑयल इंडिया लि. के पूर्व प्रमुख विकास सी बोरा और हिंडाल्को इंडिया के प्रबंध निदेशक सतीश पाल शामिल हैं। समिति का गठन लंबी न्यायिक प्रक्रिया में जाए बिना विवादों का समाधान निकालना है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि अभी तक इस समिति को कोई बड़ा विवाद नहीं भेजा गया है।

यह समिति तेल एवं गैस कंपनियों में भरोसा पैदा नहीं कर पाई है। इसकी वजह यह है कि इन कंपनियों के ज्यादातर विवाद अनुबंध की व्याख्या तथा प्रक्रियागत मुद्दों की वजह से सरकार के साथ हैं।

इसके साथ ही सरकार सिर्फ यह तय नहीं कर रही है कि विवाद का हल कैसे होगा, बल्कि वह विवाद समाधान समिति में सदस्यों की नियुक्ति भी कर रही है और नियम और शर्ते की भी तय कर रही है।

सूत्रों ने कहा कि समिति को लेकर हितों के टकराव की स्थिति बन रही है जिसकी वजह से ज्यादातर कंपनियां समिति से दूरी बना रही हैं।

भारत का तेल एवं गैस क्षेत्र विवादों से बुरी तरह प्रभावित है। लागत निकालने से लेकर उत्पादन लक्ष्यों तक विवाद पैदा होते हैं। इसके चलते कंपनियों के साथ-साथ सरकार को भी लंबी और महंगी मध्यस्थता प्रक्रिया उसके बाद न्यायिक समीक्षा से गुजरना पड़ता है। इसके चलते कई बार विवादों का हल निकलने में बरसों लग जाते हैं।

आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार समिति किसी अनुबंध में भागीदारों के बीच विवाद या सरकार के साथ वाणिज्यिक और उत्पादन के मुद्दों का हल मध्यस्थता के जरिये करती है।

First Published on: November 15, 2020 2:56 PM
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