बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 432 परियोजनाओं की लागत 4.29 लाख करोड़ रुपये बढ़ी

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इन 1,670 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 20,58,193.26 करोड़ रुपये थी, जिसके बढ़कर 24,87,361.54 करोड़ रुपये पर पहुंच जाने का अनुमान है। इससे पता चलता है कि इनकी लागत मूल लागत की तुलना में 20.85 प्रतिशत यानी 4,29,168.28 करोड़ रुपये बढ़ी है।’’

नई दिल्ली।  बुनियादी ढांचा क्षेत्र की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 432 परियोजनाओं की लागत में तय अनुमान से 4.29 लाख करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई है। एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी मिली है। देरी और अन्य कारणों की वजह से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है।

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक लागत वाली बुनियादी ढांचा क्षेत्र की परियोजनाओं की निगरानी करता है।

मंत्रालय की जुलाई, 2020 की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की 1,670 परियोजनाओं में से 432 की लागत बढ़ी है जबकि 505 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इन 1,670 परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत 20,58,193.26 करोड़ रुपये थी, जिसके बढ़कर 24,87,361.54 करोड़ रुपये पर पहुंच जाने का अनुमान है। इससे पता चलता है कि इनकी लागत मूल लागत की तुलना में 20.85 प्रतिशत यानी 4,29,168.28 करोड़ रुपये बढ़ी है।’’

रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2020, तक इन परियोजनाओं पर 11,51,222.81 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 46.28 प्रतिशत है। हालांकि, मंत्रालय का कहना है कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें, तो देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या कम होकर 418 पर आ जाएगी। रिपोर्ट में 945 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है।

मंत्रालय ने कहा कि देरी से चल रही 505 परियोजनाओं में 120 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने की, 118 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 157 परियोजनाएं 25 से 60 महीने की तथा 110 परियोजनाएं 61 महीने या अधिक की देरी में चल रही हैं।

इन 505 परियोजनाओं की देरी का औसत 43.49 महीने है।

इन परियोजनाओं की देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण व वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी तथा बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख हैं। इनके अलावा परियोजना का वित्तपोषण, विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिये जाने में विलंब, परियोजनाओं की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि जैसे कारक भी देरी के लिए जिम्मेदार हैं।

First Published on: September 20, 2020 8:15 PM
Exit mobile version