प्रधानमंत्री जी! अर्थव्यवस्था तो महामारी के पहले से ही सुस्त है

संजीव पांडेय संजीव पांडेय
अर्थव्यवस्था Updated On :

देश में वो सब कुछ हो रहा है, जिसे शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। सपने में तो सोचा गया था कि देश की अर्थव्यवस्था जल्द ही 5 ट्रिलियन डालर की होगी। लेकिन देश की जीडीपी 23.9 प्रतिशत सिकुड़ गई है। यह अलग बात है कि सख्त लॉकडाउन और महामारी के काल में भी मुकेश अंबानी की संपत्ति में भारी इजाफा हुआ। जबकि दूसरी तरफ देश के बाकी कारपोरेट घरानों की हालत खराब है। बैंकों का कर्ज तक कई कारपोरेट घराने नहीं चुका पा रहे है। उधऱ इसका लाभ उठाकर मुकेश अंबानी कर्जदार कंपनियों के अधिग्रहण में लगे हुए है। वर्तमान सरकार की आर्थिक नीतियो ने अर्थव्यवस्था की हालत खासी खराब कर दी है।

अर्थव्यवस्था में सुस्ती तो महामारी से पहले ही दिख रही थी। महामारी के पहले ही जीडीपी की ग्रोथ रेट 4 से 5 प्रतिशत तक रह गया था। बैंकों के एनपीए बढ़ने के संकेत मिलने लगे थे। इसके बाद भी बिना सोचे समझे सख्त लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। उस समय एक अरब से ज्यादा आबादी वाले देश भारत में कोरोना के हजार मरीज भी सामने नहीं आए थे। लेकिन सख्त लॉकडाउन ने करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया। लॉकडाउन के दौरान करोड़ों लोग सड़कों पर धक्के खाते नजर आए। पुलिस की लाठियां खायी। कई भूख से मर गए। उसके बाद भी केंद्र सरकार को पूरे देश में हर जगह हरियाली नजर आ रही थी।

प्रधानमंत्री ने कहा था लॉकडाउन नहीं हुआ तो देश कई साल पीछे चला जाएगा। लेकिन अब सख्त लॉकडाउन का परिणाम आ गया है। देश 50 साल पीछे चला गया है। जीडीपी में 23 प्रतिशत की सिकुडन है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 50.3 की सिकुड़न है। ट्रासंपोर्ट, होटल, ट्रेड आदि में 47 प्रतिशत की सिकुड़न है। मैनुफैक्चरिंग में 39 प्रतिशत की सिकुड़न है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 6 से 7 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है।

टूरिज्म, होटल, ट्रासपोर्ट में भी 5 से 6 करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। जिन सेक्टरों में हालात काफी खराब नजर आ रही है वहां रोजगार की क्या हालात होगी, यह आराम से समझा जा सकता है। आने वाले कुछ महीनों में देश में करोड़ों औऱ बेरोजगार होंगे। प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि देश में हर साल 2 करोड़ नए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। लेकिन कोरोना लॉकडाउन ने लगभग 15 करोड़ आबादी के रोजगार खत्म कर दिए।

देश में लगभग 47 करोड़ लोग कामकाजी है। इसमें फार्म सेक्टर में 20 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। वहीं नॉन फार्म सेक्टर में लगभग 27 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध है। लॉकडाउन का असर दिख रहा है। अब जल्द ही रोजगार के आंकड़े भयावह नजर आएंगे। मुल्क की आबादी के हिसाब से अगले दस सालों में 10 करोड़ और रोजगार के अवसर पैदा करने की जरूरत है। लेकिन हालात कुछ ज्यादा ही खराब है।

रोजगार के अवसर कम होंगे। यह तो किस्मत अच्छी है कि लॉकडाउन के दौरान कृषि क्षेत्र ने देश को बचाया। कृषि क्षेत्र का ग्रोथ 3.4 प्रतिशत है। इस साल अगर कुछ इकनॉमी बचेगी तो सिर्फ कृषि क्षेत्र के कारण। जिस पर वर्तमान सरकार का ध्यान बिल्कुल नहीं है। कृषि क्षेत्र में सरकार किसानों को खत्म कर कारपोरेट खेती बढ़ाने की साजिश रच रही है।

सीमा की सुरक्षा में नरेंद्र मोदी सबसे कमजोर प्रधानमंत्री साबित हुए है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी हिम्मत के साथ चीन से युद लड़ा था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी तो चीन का नाम लेने से डरते है। लद्दाख सेक्टर में चीन भारतीय इलाके में घुसपैठ कर बैठा हुआ है। हमारी सेना चीन से लगातार बातचीत कर रही है।

डिप्लोमैटिक स्तर पर भी बातचीत हो रही है। चीन धमका रहा है। बातचीत का कोई भी हल नहीं निकला है। चीन भारतीय इलाके को छोड़ने को तैयार नहीं है। खबर है कि चीन ने दुबारा से पैंगोंग लेक के दक्षिण किनारे पर घुसपैठ की कोशिश की। पैंगोंग के उतरी किनारे पर चीन पहले ही घुसपैठ कर बैठा हुआ है। देपशांग प्लेन के भारतीय क्षेत्र में चीन के सैनिक घुसपैठ कर बैठ गए है। लेकिन प्रधानमंत्री इस घुसपैठ की चर्चा तक नहीं कर रहे है। वे चीन का नाम लेने से भी डर हे है। सारी दुनिया कह रही है कि चीन कोरोना वायरस के लिए जिम्मेवार है। लेकिन भारतीय हुक्मरान चीन से इतना डरते है कि देश की वित्त मंत्री कोरोना को भगवान की देन बता रही है।

मन की बात में प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, सीमा की सुरक्षा पर कोई बात नही की। जबकि जनता वास्तव में इन क्षेत्रों के हालात पर प्रधानमंत्री की जुबान से कुछ सुनना चाहती है। मन की बात में प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत अभियान करते है। आत्मनिर्भर भारत अभियान में वे डिजिटल गेम्स औऱ खिलौने के क्षेत्र की बात करते है। जबकि इस मुल्क की बड़ी आबादी के पास खिलौने को खरीदने के लिए पैसे नहीं है।

डिजिटल गेम्स को समझने और खेलने के लिए जरूरी मोबाइल, लैबटॉप नहीं है। इंटरनेट पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं है। महामारी के दौरान देश की बड़ी आबादी तो सरकार के सस्ते अनाज पर अपना जीवन काट कर रही है। सरकारी स्कूलों के बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा के लिए जरूरी मोबाइल और लैपटॉप नहीं है। लॉकडाउन ने गरीबों के बच्चों की शिक्षा चौपट कर दी है।

देश की इकनॉमी 5 ट्रिलियन की हो जाएगी, इसे फिलहाल सपना समझिए। 2.75 ट्रिलियन की इकनॉमी वर्तमान वित्त वर्ष के अंत में 1.50 ट्रिलियन की जरूर हो सकती है। अब बड़ी चुनौती बैंकों का एनपीए होगा। अर्थव्यवस्था की पहली तिमाही की रिपोर्ट बैंकों के कर्जदारों की हालत बताने के लिए काफी है। अब बैंकों को चिंता अपने कर्ज को लेकर है। कर्जदार तबाह हो गए है। कर्ज कहां से लौटाएंगे? कंपनियां बैंक के कर्ज चुकाने में विफल रहेंगी। इन कंपनियों ने बैंकों से कर्ज के तौर पर आम जन का पैसा लिया है।

बैंकों का एनपीए 15 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है। सख्त लॉकडाउन का नतीजा यह आएगा कि अब आम लोगों का पैसा डूबेगा। गरीबों की मेहनत की कमाई बैंक डूबा सकते है। दिलचस्प बात है कि इस आपदा और संकट के दौर में भी सरकार का ध्यान सिर्फ निजीकरण की तरफ है। रेलवे, एयरपोर्ट से लेकर तेल कंपनियों को बेचा जा रहा है। लोगों को उम्मीद थी कि महामारी के इस काल में राज्य सरकारों की खराब होती हालात से बचने के लिए केंद्र से आर्थिक मदद मिलेगी। गरीबों को कुछ धन मिलेगा। लेकिन सरकार की चिंता सरकारी संपतियों को बेचकर खजाने में कुछ पैसा डालना है।

राज्यों की आर्थिक हालात खराब है। कई राज्यों के पास वेतन देने के लिए पैसे नहीं है। राज्यों को जीएसटी का मुआवजा राशि केंद्र नहीं दे रहा है। राज्यों को सलाह दी जा रही है कि वे आर्थिक संकट से बचने के लिए खुद कर्ज ले। राज्यों के पास टैक्स लगाकर आमदनी करने का जरिया काफी कम है। लेकिन राज्यों के सामाजिक उत्तरदायित्व पर खर्च काफी ज्यादा है। टैक्स से ज्यादा आमदनी केंद्र सरकार को होती है। लेकिन राज्यों को सामाजिक उतरदायित्व के खर्च में केंद्र कोई सहयोग देने को राजी नहीं है।