अपोलो टायर्स – जिसके भरोसे देश आगे बढ़ता है


टायरों की दुनिया के सरताज अपोलो टायर्स ने अपने पांचवें मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का शुभारम्भ आंध्र प्रदेश के चित्तुर में कर दिया है। लगभग 256 एकड़ में फैला ये प्लांट बेहद ही अत्याधुनिक है और इस बात के कयास लगाए जा रहे है की 2022 तक ये प्लांट हर दिन 15000 पैसेंजर कार टायर्स और 3000 ट्रक बस रेडियल्स का उत्पादन शुरू कर देगा। अपोलो का दुनिया में ये सातवाँ प्लांट अपने आप में अपोलो टायर्स के सफलता की कहानी बयां करता है और सीखाता है कि जब इरादे बुलंद हो मंज़िल आसान हो जाती है।



अपोलो टायर्स लिमिटेड भारत की अग्रणी टायर निर्माण कंपनी है और ये सब कुछ संभव हो पाया कंपनी के चेयरमैन ओंकार सिंह कंवर के अथक प्रयास और दूरदर्शिता की वजह से। 1979 ने जब ओंकार सिंह कंवर ने कंपनी की कमान संभाली थी तब अपनी अलग सोच की वजह से इनको हर ओर से विरोध के स्वर सुनने पड़े थे।

ये अस्सी के दशक की बात है जब ओंकार कंवर को अमेरिकी टायर प्रमुख कूपर टायर एंड रबर कंपनी को नजदीक से अध्ययन करने का मौका मिला था। कंपनी के काम के सिलसिले मे कंवर को अमेरिका जाने का मौका मिला। ओंकार कंवर की कंपनी अपोलो टायर्स का जनरल टायर इंटरनेशनल कंपनी के साथ तकनीकी अनुबंध था। कंवर जब भी अमेरिका जाते थे तब हमेशा उनको कूपर कंपनी के बारे में कुछ न कुछ सुनने का मौका मिलता था। इस कंपनी से वो इतने प्रभावित हुये कि उन्होंने निश्चय किया की भारत जा कर वो अपने लोगो को इस कंपनी के बारे में बताएँगे और कूपर के गुणो को सीखने की कोशिश करेंगे। ये वो समय था जब कुछ समय पहले ही अपोलो टायर्स बंद होने के कगार पर आ गयी थी।

तीस साल के बाद एक ऐसा भी मौका आया जब अपोलो टायर ने कूपर टायर को 2.5 बिलियन डॉलर में पूरी कंपनी का अधिग्रहण कर लिया। ये उस वक़्त ऑटो सेक्टर की दुनिया में सबसे बड़ा अधिग्रहण था और इस वजह से अपोलो विश्व में टायर बनाने वाली कंपनियों की टॉप टेन श्रेणी में आ गयी। ये कहानी ओंकार कंवर के बारे में बहुत कुछ कहती है और सीख देती है। इस वाक्या ने कंवर की इमेज एक ऐसे व्यवसायी के रुप मे लोगो के सामने रखी जो जिस किसी पर भी अपनी निगाहें टिका देता है उसको पूरी मेहनत से हासिल करने की पूरी कोशिश करता है। ओंकार कंवर हिंदुस्तान के उन गिने चुने उद्योगपतियों में से है जिनकी दूरदर्शिता और सूझबूझ से देश के साथ-साथ देश की जनता का भी जबरदस्त फायदा हुआ है।  

जब ओंकार कंवर ने 1979 में अपने पिता रौनक सिंह से अपोलो टायर की कमान संभाली थी तब कंपनी की स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी। कंपनी के सर्वे सर्वा बनने के बाद जब उन्होंने पहली बार अपने लोगो के सामने भविष्य मे कंपनी की दशा और दिशा बदलने बाबत एक प्रेजेंटेशन दिया तब लोगो ने उनका माखौल उड़ाया था। उस प्रेजेंटेशन के दौरान ओंकार कंवर से इतने सवाल पूछे गए की उसका अंत परिवार में बटवारे से हुआ। लेकिन अपनी सोच पर ओंकार को पूरी तरह से विश्वास था और यही आत्मविश्वास उनका सबसे बड़ा हथियार आगे चल कर बना। उनकी दूरदर्शिता ने उनको ग्लोबलाईजेशन की राह दिखाई जब बाकी कंपनियों का ध्यान तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार की ओर था। ओंकार कँवर ने जो नीव डाली थी उसके ऊपर उनके बेटे नीरज कंवर जो कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर भी है, ने पूरी इमारत खड़ी कर दी। अपोलो टायर को विश्वस्तर पर ले जाने में नीरज का बहुत बड़ा योगदान है। ओंकार कंवर ने कूपर टायर के अधिग्रहण के बाद जो कंपनी को लेकर सपना देखा था उसको नीरज और उंचाईयो पर ले गये। 

अपोलो टायर की स्थापना सन 1972 में हुई थी और तीन साल के ही अंदर यानी की सन 1975 में कंपनी ने अपना पहला पब्लिक ऑफर निकाल दिया। दो साल के बाद केरल के थ्रिसुर में उनकी पहले मैन्युफैक्चरिंग प्लांट की नीव पड़ी। साल 1991 में कंपनी अपना दूसरा प्लांट गुजरात के लिम्डा में बनाने में सफल रही। साल 1995 में अपोलो ने प्रीमियर टायर्स लिमिटेड का अधिग्रहण कर लिया जो आगे चल कर कम्पनी का तीसरा प्लांट बना। 2008 में अपोलो टायर्स ने एक और प्लांट की स्थापना चेन्नई में की। अगले ही साल अपोलो टायर्स का कारवां और आगे बढ़ा जब हॉलैंड की एक टायर बनाने वाली कंपनी का इन्होने अधिग्रहण कर लिया।  

अगर टायर की दुनिया में इनोवेशन की बात करे तो अपोलो टायर्स के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। राजधानी के नाम से ट्रक टायर को बनाने वाली अपोलो टायर्स पहली कंपनी थी। 1996 में उनका दायरा विदेशो में भी फ़ैल गया जब उन्होंने डनलप टायर के अफ्रीका संचालन की कमान अपने हाथो में ले ली। 2015 में अपोलो टायर्स ने जर्मनी के रैफेनकॉम कंपनी को 45 मिलियन डॉलर में हथिया लिया। लेकिन चरम पर वो तब पहुंचे जब उनका वैश्विक अनुसंधान और विकास केंद्र की स्थापना चेन्नई में हुई। 2017 में हंगरी के प्रधानमंत्री ने हंगरी में कंपनी के नए प्लांट का उद्धघाटन किया और इसके अगले साल ही अपोलो टायर्स के के नए फैक्ट्री का शिलान्यास चित्तुर में किया गया जो कुछ दिन पहले क्रियाशील हो गया। 

व्यवसाय की दुनिया में 48 सालो का सफर कोई लम्बा सफर नहीं माना जाता है लेकिन अपोलो टायर्स की सफलता की गति को देखकर यही लगता है की कंपनी के लिए मंज़िलें और भी बाकी है।