तमिल फिल्म मुन्द्रम पिराई की रीमेक सदमा की गिनती अब कल्ट फिल्मो में की जाती है। अफसोस की बात ये है कि जब ये फिल्म रिलीज हुई थी तब इसे दर्शको का प्यार नही मिल पाया था। सदमा की कहानी इसको बनाने वाले बालू महेंद्र के निजी जीवन से प्रेरित है जब उन्होंने एक मासूम छोटी बच्ची का ध्यान रखा, आगे चलकर उससे प्रेम हुआ और बाद में उसे खो दिया। गौर करने वाली बात यह है की उसी साल कन्नड़ भाषा में मानसा सरोवर नाम की एक फिल्म आई थी जिसकी कहानी लगभग सदमा जैसी ही थी।
पुणे के एफटीआईआई से पढाई करने वाले बालू महेंद्र ने जब तमिल में फिल्में बनानी शुरू की तो उनकी फिल्में हवा के ताज़ा झोंके के सामान था। बेसिर पैर की कमर्शियल फिल्मों से उनकी फिल्मो का ग्रामर काफी अलग था और इसी के चलते लोगो ने उनको सर आंखों पर बिठा लिया था। बालू की फिल्मों को देखकर पता चलता था कि वो विश्व पटल के सिनेमा से कितने परिचित थे।
सदमा की शूटिंग बैंगलोर और ऊटी के पास केथी में हुई थी और पूरी फिल्म को महज तीस दिनों में पुरा कर लिया गया था। जब बालू ने कमल हसन को फिल्म का नरेशन दिया था तब 20 मिनट कहानी सुनने के बाद ही उन्होंने फिल्म के लिए अपनी हामी दे दी थी। बाद में पूरी कहानी सुनने के बाद उन्होंने बालू को ये सलाह भी दी की फिल्म के क्लाइमेक्स के ऊपर थोड़ा काम करना पड़ेगा और इसको इन्तहा पर ले जाना पड़ेगा।
अखबार द हिन्दू के एक इंटरव्यू में कमल हसन ने फिल्म के क्लाइमेक्स के शूटिंग के बारे में कहा था की जब क्लाइमेक्स फिल्माने की बारी आयी थी तब बारिश का कही नामोनिशान तक नहीं था। लेकिन आखरी वक़्त में एक लम्बे इंतज़ार के बाद जब बारिश आयी तब सभी की जान में जान आयी। कहने की जरुरत नहीं की इस बारिश ने फिल्म के क्लाइमेक्स को एक यादगार सीन का रूप दे दिया था जिसकी गुंज आज भी सिनेमा की दुनिया मे सुनाई देती है।
सदमा को फिल्माने के पहले ही बालू और कमल हसन ने ये तय कर लिया था की सोमू और रेशमी के रिश्ते में सेक्स की कही जगह नहीं होंगी और वो पुरी तरह से प्लैटोनिक रिश्ता होगा। फिल्म में कमल हसन का किरदार खुद बालू के ऊपर केंद्र्ति था जबकि श्रीदेवी के किरदार की रूप रेखा बालू की प्रेमिका शोभा के ऊपर आधारित की गयी जो खुद साउथ की फिल्मों मे काम करती थी। गौरतलब है की जब कमल हसन फिल्म एक दूजे के लिए की शूटिंग कर रहे थे तब उसी दौरान शोभा ने आत्महत्या कर ली थी।
बालू महेंद्र ने क्लाइमेक्स के लिए कुछ और सोचा था लेकिन उसको ठीक से मूर्त रूप कमल हसन ने दिया था. बालू के हिसाब से क्लाइमेक्स बिना किसी ड्रामे के था जब श्रीदेवी चुपके से अपने परिवार के साथ वासु को छोडकर चली जाती है। क्लाइमेक्स की शूटिंग के दौरान श्रीदेवी को मेकअप के नाम पर महज एक नारियल दिया गया था अपने चेहरे पर मलने के लिए।
फिल्म पूरी शूटिंग के लिए महज 12 लोग थे यूनिट में और कमल के फ़िल्मी करियर में ये अब तक की सबसे छोटी यूनिट वाली फिल्म है। फिल्म में कमल हसन और सिल्क स्मिता के ऊपर फिल्माया गया एक मादक गाना भी था जिसके बारे में बाद में बालू महेंद्र ने कहा था की उस गाने के बिना भी फिल्म चल सकती थी। ख़ास बात ये थी की एक हाईलाईट गाना होने के बावजूद इसके के ऊपर किसी भी तरह का खर्च नहीं किया गया था। फिल्म में सिल्क स्मिता को उनके स्टारडम के लिए लिया गया था लेकिन जब गाने को फिल्माने की बारी आयी तब लोगो को पता चला की सिल्क स्मिता को डांस करना नहीं आता है। इस परेशानी को ट्रबलशूट करने के लिये प्रभु देवा के पिता सुंदरम मास्टर को गाने के फिल्मांकन के लिए चेन्नई से खास बुलाया गया और उनकी बदौलत ही गाना पूरा हो सका।
इस फिल्म में हिंदी फिल्मो के ‘बैड मैन’ गुलशन ग्रोवर का भी एक अहम रोल था और वो फिल्म उनको इत्तेफ़ाक़ से मिली थी। उन्ही दिनों अनिल कपूर एक कन्नड़ फिल्म की शूटिंग कर रहे थे और साथ में गुलशन ग्रोवर को भी अपने साथ लोकेशन पर ले गए थे। उसी फिल्म के कैमरामैन थे बालू महेंद्र जो उन दिनों मुन्द्रम पिराई बनाने की तैयारी में जुटे थे। जब उनकी मुलाकात गुलशन से हुई तब लगे हाथ उन्होंने उनको फिल्म में काम करने का न्योता दे दिया।
जब मुन्द्रम पिराई को हिंदी में बनाए का फैसला लिया गया तब श्रीदेवी को फिल्म के लिए नहीं चुना गया था। यूनिट की पहली पसंद थी डिंपल कपाडिया लेकिन फिल्म सागर की शूटिंग में व्यस्त होने की वजह से उन्होंने फिल्म को ना कह दिया था जिसके बाद ये तय किया गया की मुन्द्रम पिराई की ओरिजिनल कास्ट के साथ ही हिंदी फिल्म को बनाया जायेगा।
फिल्म जब रिलीज़ हुई थी तब कोशिश, अचानक और मिली जैसी सधी हुई फिल्मों का निर्माण करने वाले रोमू एन सिप्पी को बड़ा झटका लगा था। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई थी और उनको इस फिल्म के लिये अच्छा खासा घाटा सहना पडा था।
हिंदी सिनेमा के ये बदकिस्मती कही जाएगी की श्रीदेवी और कमल हसन के लिए ये पहली और आखिरी हिंदी फिल्म साबित हुई और फ्लॉप होने की वजह से दोनों को किसी और फिल्म में लेने की कोशिश बॉलीवुड के निर्माता ने फिर कभी नहीं की। लेकिन ये फिल्म एक और वजह से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान गीतकार गुलज़ार और ए आर रहमान पहली बार एक दुसरे से मिले थे। सदमा के गाने गुलज़ार की कलम से निकले थे और रहमान उस वक़्त फिल्म के संगीतकार इलैयाराजा के सहायक हुआ करते थे। सदमा हिंदी फिल्मो के इतिहास में एक माइलस्टोन फिल्म मानी जाती है और इसके लिए निर्देशक बालू महेंद्र धन्यवाद के पात्र हमेशा के लिए रहेंगे।