कहानी उस फिल्म के बनने की… जिसमें पहली बार जेम्स बांड के रूप में दिखे शॉन कॉर्नरी

1962 का साल वो समय था जब विश्व युद्ध को खत्म हुए लगभग दो दशक बीत गए थे और शीत युद्ध की शुरुआत हो रही थी। सोवियत रूस ने क्यूबा के साथ एक व्यापार संधि पर साइन करके विश्व पटल पर हलचल मचा दी थीऔर क्यूबा मिसाइल क्राइसिस की वजह से दुनिया परमाणु युद्ध की कगार पर खड़ी हो गयी थी। विश्व की इन घटनाओं के बीच जेम्स बांड का किरदार पर्दे पर पहली बार अमेरिका मे 8 मई 1963 को आया (ब्रिटेन मे ये फिल्म 5 अक्टूबर 1962 को रिलीज़ हुई थी)।

58 साल के इतिहास में जेम्स बांड फिल्मों के बारे में ऐसा कहा जाता है की विश्व की आधी आबादी ने इस सीरीज की एक फिल्म जरूर देखी है। सिनेमा के इतिहास में सबसे लम्बे फिल्म फ्रैंचाइज़ी ने अब तक अपने रोमांचक कहानियों के अलावा 55 बांड गर्ल्स, 130 विलन, 55 देशों की सैर और 100 से भी ऊपर बंदूकों की वैरायटी दिखाकर दर्शकों को बांधने में सफल रहा है।

58 साल पहले पर्दे पर पहली बार जेम्स बांड से दर्शक रुबरु हुये थे। शायद उस वक्त किसी को इस बात का अंश भर भी अंदाजा नहीं रहा होगा की आने वाले समय मे ये फ्रैंचाइज़ी बहुतों की किस्म बदलने वाला है।

डॉ. नो की कहानी एक ब्रिटिश एजेंट के बारे में थी जो अपने सहयोगी के अचानक गायब हो जाने के बाद उसकी तलाश में जमैका जाता है। एजेंट के गायब होने के तार अमेरिका के एक स्पेस प्रोग्राम से जुड़े हुए है। जमैका पहुंच पर जेम्स बांड को पता चलता है की वहाॅ के एक द्वीप पर रहने वाले डॉ. जूलियस के इरादे नेक नहीं है और वो सब कुछ तबाह करना चाहता है।

जेम्स बांड सीरीज की इस पहली फिल्म ने अपनी लागत से सोलह गुना कमाई बॉक्स ऑफिस पर की थी। जितनी दिलचस्प डॉ नो फिल्म है, उससे भी ज्यादा दिलचस्प इसके बनने की कहानी है। जेम्स बांड के रचयिता इयन फ्लेमिंग की नौवीं कहानी थंडरबॉल को पहली बांड फिल्म बनाने का निर्णय लिया गया था लेकिन इस कहानी के सह लेखक केविन मैकक्लोरी के साथ कानूनी लड़ाई की वजह से बांड सीरीज के छठवें नावेल डॉ. नो को पहली बांड फिल्म बनाना पडा। डॉ. नो नावेल पहली बार 1958  में पाठकों से रुबरु हुआ था।

शाॅन कॉर्नरी जो अब जेम्स बांड के पर्याय बन चुके है फिल्म के निर्माताओं की पहली पसंद नहीं थे। उस ज़माने के सुपरस्टार कैरी ग्रांट, जेम्स मेसन, ग्रेगरी पेक, पीटर सेलर्स और डेविड नीवेन को बांड बनने का न्योता पहले दिया गया था। गौरतलाब है की डॉ. नो के मुख्य किरदार के लिए मैक्स वाॅन सिडो (जिनका निधन कुछ दिनों पहले हुआ) को सबसे पहले सोचा गया था।

ऐसा कहा जाता है की इयन फ्लेमिंग अपने चचेरे भाई क्रिस्टोफर ली को फिल्म में बतौर विलेन और ब्रिटिश अभिनेता डेविड नीवेन को फिल्म में जेम्स बांड के रोल में लेना चाहते थे। डॉ. नो के रिलीज़ के पहले शाॅन कानेरी को लोग नहीं पहचानते थे। बांड के रोल के लिए फिल्म के निर्माताओं ने ‘फाइंड जेम्स बांड कांटेस्ट’ के तहत फिल्म के मुख्य सितारे को ढूंढ़ने की कोशिश की थी लेकिन शाॅन ने उस कांटेस्ट में शिरकत नहीं की थी। उस कांटेस्ट के विजेता थे पीटर एंथोनी, लेकिन आगे चल कर बांड के रोल के लिए उनको इसलिए खारिज कर दिया गया था क्योंकि उनके अंदर बांड वाली खूबिया मौजूद नहीं थी।

शाॅन कानेरी को फिल्म तब मिली जब इसके निर्माता अल्बर्ट ब्रॉकोली फिल्म ‘डार्बी ओ जिल एंड द लिटिल पीपल’ की स्क्रीनिंग में बैठे थे। फिल्म के क्लाइमेक्स में जब शाॅन कानेरी फिल्म के विलन से हाथों से लड़ाई करते है तब उस सीन को देखकर उनको यही लगा की उनको जेम्स बांड मिल गया है। अब जेम्स बांड के अंदर सेक्स अपील है या नहीं इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने वो फिल्म अपनी पत्नी को भी दिखाई जिसका जवाब उनको हां में मिला।

ऐसा नहीं था की फिल्म के अनाउंसमेंट के बाद स्टूडियोज ने फिल्म के लिए अपनी तिजोरी खोल दी थी। यूनाइट आर्टिस्ट ने इस फिल्म के सेक्सुअल नेचर की वजह से इसमें पैसे डालने से शुरु मे मना कर दिया था। स्टूडियो को सीन कनेरी की कास्टिंग से भी परेशानी थी लेकिन आगे चलकर अल्बर्ट ब्रॉकोली ने स्टूडियो को मना लिया था।

इस फिल्म में बांड गर्ल बानी थी उर्सुला अनड्रेस। फिल्म के निर्माता अल्बर्ट ब्रॉकली और हैरी साल्जमैन को उस रोल के लिए ज्यादा पैसे खर्च नहीं करने थे लिहाजा जब उन्होंने उर्सुला की गीले टी-शर्ट में एक तस्वीर देखी तब ही उन्होंने उर्सुला को फिल्म के लिए साइन करने का मन बना लिया था। डाॅ नो मे काम करने के लिये उर्सुला को 6000 डॉलर दिये गये थे।

फिल्म जब रिलीज़ हुई तब ये निर्माताओं के लिए कामधेनु गाय साबित हुई। लेकिन इस फिल्म को लेकर ब्रिटिश मीडिया के पास कहने को कुछ अच्छे शब्द नहीं थी। मशहूर मैगज़ीन स्पेक्टेटर में जब इसकी समीक्षा प्रकाशित हुई तब वो महज 50 शब्दों का था और उसमे सिर्फ फिल्म की बुराई की गयी थी। गौर करने वाली बात ये थी की समीक्षक इयन कैमरोन ने फिल्म से जुड़े एक भी कलाकार का नाम अपने रिव्यू में नहीं लिखा था।

13वी जेम्स बांड फिल्म की शूटिंग के लिए फिल्म की टीम भारत आयी थी। ऑक्टोपुस्सी फिल्म में अभिनेता कबीर बेदी ने खलनायक की भूमिका निभाई थी इसके बाद से और किसी देसी अभिनेता को बांड फिल्मों में काम करने का मौका अभी तक नहीं मिल पाया है।

58 सालों के बाद जेम्स बांड सीरीज अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। लगभग 6 दशकों में 32 बेहतरीन फिल्में खुद ही इसकी सफलता का परिचय देती है। थायलैंड से लेकर क्यूबा और जापान से लेकर अमेरिका – बांड ने अपने जौहर इन सभी देशो में दिखाए है। एक बात पक्की है की जब तक दुनिया में अशांति है बांड की उपस्थिति तब तक जरूर रहेगी।

First Published on: May 8, 2020 5:30 AM
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